"तुम कब आओगी"
कितने दिन गुज़रे तुम्हे गए हुए
तुमने मुड़कर देखे हुए
न कोई ख़त न कोई ख़बर ही भेजी तुमने
तुम जानती हो?
तुम्हारे बाद क्या हुआ
वो बिल्लियां जो तुम्हारे होते हुए
कोसों दूर रहती थी
मेरे आस-पास घूमने लगी हैं
कौए जो घर के ऊपर से
गुज़रते तक न थे
मुंडेर पर बैठे रहते हैं
जाले जो तुमने हटाये थे कभी
मकड़ियों ने फ़िर से बना लिए हैं सारे घर में
एक पेड़ जो सहन में
तुम लगाकर गई थी
दम तोड़ रहा है
उसे पानी देने वाला कोई भी तो नहीं
कुछ ख़बर भेजो अपनी
"घर कब आओगी?"
मैं थक चुका हूँ
इन बिल्लियों, कौओ को भगाता हुआ
जालों को हटाता पेड़ को बचाता हुआ
एक दिया जो मुंतज़िर है
बुझने को है
इसकी सांसों का तो इंतज़ाम भेजो
झूठा सही इक पैग़ाम भेजो
कि "तुम आओगी, तुम ज़रूर आओगी"
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