इक इश्क़ जिसमें हिज्र की संभावना न हो
यानी वो पेड़ ढूँढ़ना जिसमें तना न हो
कितना उदास हो के रखी शर्त हिज्र की
इक दूसरे से फिर कभी भी सामना न हो
अक्सर इसी ख़्याल ने सोने नहीं दिया
हम देख जो रहे हैं कहीं कल्पना न हो
शायद हमारे जख़्म से वो भी हो मुब्तिला
या फिर हमारा जख़्म उसे देखना न हो
शायद इसीलिए हमें प्यासा रखा गया
शायद हमारे तौर का दरिया बना न हो
बेशक किसी भी फूल को तोड़े नहीं कोई
लेकिन किसी भी फूल को छूना मना न हो
इक दिन हमारी लाश कहीं पर पड़ी मिले
इक दिन यूँ हम मरें किसी को सूचना न हो
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