तवील इश्क़ की चाहत थी मुख़्तसर न मिला
हमारे जैसों को ये तोहफ़ा उम्र भर न मिला
तमाम उम्र उलझता रहा मैं दुनिया से
समझ सके जो मुझे ,ऐसा हम-नज़र न मिला
ये सोचता हूँ के, क्या ही बिगाड़ लूँगा तेरा
तू इस दफ़ा भी मुझे वक़्त पर अगर न मिला
उदासियाँ हैं फ़क़त अर्ज़-ए-दिल में फैली हुई
वो शाख़ हूँ मैं जिसे ,कोई भी समर न मिला
किसी के दिल में मुकम्मल क़याम करने को
कोई भी नुस्ख़ा मुहब्बत से कारगर न मिला
Read Full