Safeer Ray

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@Safeerrayy

gfh shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in gfh's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
ज़मीं ने फिर से तेरे ख़्वाब को जगाया है
सबा ने ग़ुंचों से हर राज़ को छुपाया है

यक़ीं में डूबे हैं दिल के तमाम अफ़साने
गुमाँ ने फिर भी तसव्वुर को क्या सुनाया है

शबों के लम्हे जो ज़हराब-ए-फ़िक्र बन बैठे
सितम को अश्क ने सीने में यूँ बसाया है

रहे रक़ीब तो माज़ी को भूलना चाहा
नज़र ने याद का एक-एक क़र्ज़ खाया है

गुलों का दर्द तो शायद हवा समझ लेती
मगर हिसाब वफ़ा आँख ने निभाया है

शबाब-ए-ज़िन्दगी मौजा-ए-ख़ार बन निकली
जिसे न देखना था वक़्त ने दिखाया है

रियाज़-ए-दिल का सुकूँ ग़म-ज़दा ही पाया है
तुझे भुलाने में हर तर्ज़ आज़माया है

वो आरज़ू में तेरी इक गली का शाइर था
सवाल तेरी वफ़ा ने उसे बनाया है
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रगड़ रगड़ के जो एड़ियों को अक़ीदे चक्कर लगा रहे हो
अजीब दुंबे हो ख़्वाह मख़ाह में बुला रही क्यों ही जा रहे हो

मज़ाक़ जानिब तुम्हारे करके वो हर सखी को बता रही है
ये देखो जाहिल गॅंवार आशिक़ है अपनी तफ़री करा रहे हो

ज़रा सी ग़ैरत की फाॅंक फाॅंको अमाॅं मियाॅं तुम ये बात समझो
बनो हो सैयाँ छबीले जानी यूँ अपने कुनबे सता रहे हो

रक़ीब हम को बता के तुमने बड़ी फ़ज़ीहत उड़ाई बेटा
न जाने कितनों का शोना बाबू जिसे तुम अपना बता रहे हो

हमारी मानो ये काम कर लो कि लेखपाली प्रपत्र भर लो
बनाओ ताज़ीर अपनी ज़ाहिद यूँ अपने सजदे गिना रहे हो

नसीब का ये हिसाब देखो ज़बाॅं से आगे ख़िलाफ़ निकले
जो चाँद चुम्बन में ढूँढते थे उसी को राहें दिखा रहे हो

बहार आई थी बाग़ में जब तो तुमने काँटे चुने थे जानिब
जो फूल मुरझा के गिर चुका है उसी को मज़हब बना रहे हो

ये इश्क़ दुनिया ये नामुरादी हमारी बातों पे ग़ौर कर लो
बचाओ रूहों का ताज तर्ज़ा ये फ़र्ज़ अपने भुला रहे हो
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दुश्मनी से वो हमें फिर यूँ सज़ा देने लगे
दोस्त बनकर वो हमें ज़ख्म-ए-वफ़ा देने लगे

इश्क़ करने का सिला कुछ इस तरह हमको मिला
लोग क़ातिल बनके फिर दिल की दवा देने लगे

जुर्म हमसे ये हुआ जो सच था उसको सच कहा
अब अदावत में हमें अपने सज़ा देने लगे

मेरे ज़ेर-ओ-बम पे जो बनते थे रश्क-ए-हूर वो
वो ही देखो अब हमें ज़हर-ए-वबा देने लगे

शहर के चौराहे पर चुपचाप बस हम थे खड़े
और जो मासूम थे सब बद-दुआ देने लगे

हर घड़ी झूठे बयानों के चले जो सिलसिले
जो वफ़ा के ख़ान-ए-ख़ानाँ वो खता देने लगे

सरपरस्ती में था जिनके घर मेरा ये फूस का
वो ही आँधी बनके शोलों को हवा देने लगे

मेरे इश्क़-ए-नूर के जो थे मज़म्मत दार सब
मेरी हालत देख कर वो भी दुआ देने लगे
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