हम फ़क़त कुछ ख़्याल लिखते हैं
आप लेकिन कमाल लिखते हैं
शेर मक़बूल ज़िक्र से तेरे
हम कहाँ बेमिसाल लिखते हैं
हो चुका हिज्र आपसे अब हम
इश्क़ का इंतिक़ाल लिखते हैं
शेर बनते नहीं रईसी में
शायरी पाएमाल लिखते हैं
जंग से कम नहीं मोहब्बत सो
इश्क का रंग लाल लिखते हैं
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