हमारी जान कर आख़िर कहानी क्या करोगे तुम
दिल-ए-मजरूह को होने दो फ़ानी क्या करोगे तुम
शिकस्ता हाल पर छोड़ो न पूछो ख़ैरियत मेरी
तुम्हारा मर गया आँखों का पानी क्या करोगे तुम
तुम्हारे हाथ से हर क़ीमती शय टूट जाती है
यही आदत तुम्हारी है पुरानी क्या करोगे तुम
मिले थे इत्तिफ़ाक़न राह में नज़रें झुका ली थीं
भला इससे ज़ियादा मेहरबानी क्या करोगे तुम
सदाएँ दी थीं 'ज़ाकिर' ने किया था अनसुना तुमने
समझ कर अब मेरे लफ़्ज़ों के मानी क्या करोगे तुम
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