Ahsan Aazmi

Ahsan Aazmi

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Ahsan Aazmi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ahsan Aazmi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
तमाम शहर है अपना मगर अकेला हूँ
है मेरे साथ ज़माना मगर अकेला हूँ

अजीब कैफ़ियत-ए-बे-क़रारी-ए-दिल है
हुजूम-ए-ग़म का है नर्ग़ा मगर अकेला हूँ

तुम्हारे आने से ही दूर होगी तन्हाई
है तेरी यादों ने घेरा मगर अकेला हूँ

चला हूँ शहर-ए-सितम में पयाम-ए-अम्न लिए
बुलंद है मिरा जज़्बा मगर अकेला हूँ

तू साथ दे तो मैं छू लूँ बुलंदी-ए-अफ़्लाक
मिरा भी अज़्म है ऊँचा मगर अकेला हूँ

कुछ और प्यार के झरने बहें तो बात बने
मैं हूँ ख़ुलूस का चश्मा मगर अकेला हूँ

न जाने कैसी है क़िस्मत मुझ एक क़तरे की
हुआ हूँ शामिल-ए-दरिया मगर अकेला हूँ

रह-ए-वफ़ा में कोई हम-सफ़र नहीं मेरा
मैं कारवाँ का हूँ हिस्सा मगर अकेला हूँ

किया न तर्क जहाँ को हुआ न सहरा-नवर्द
बना है लोगों से रिश्ता मगर अकेला हूँ

न जाने खो गई अपनाइयत कहाँ 'अहसन'
लगा है अपनों का मेला मगर अकेला हूँ
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Ahsan Aazmi
शिकवा-ए-ग़म न मसाइब का गिला करते हैं
रब का हर हाल में हम शुक्र अदा करते हैं

वो इबादत नहीं करते हैं रिया करते हैं
जो दिखावे के लिए ज़िक्र-ए-ख़ुदा करते हैं

मा'रिफ़त इश्क़ की हो जाती है जिन को हासिल
सज्दा-ए-शौक़ वो तेग़ों में अदा करते हैं

ख़त्म होगी न कभी हक़ के चराग़ों की ज़िया
ये दिए तुंद हवा में भी जला करते हैं

अपने बेगाने की तफ़रीक़ नहीं उन का शिआ'र
जो भले लोग हैं वो सब का भला करते हैं

वो भी मुजरिम हैं बराबर के सितमगर की तरह
हर सितम सह के जो ख़ामोश रहा करते हैं

जब लगा रोग मोहब्बत का तो महसूस हुआ
लोग क्यों इश्क़ को आज़ार कहा करते हैं

हक़-बयानी है अगर जुर्म तो हम हैं मुजरिम
ज़ुल्म से लड़ना ख़ता है तो ख़ता करते हैं

हुस्न पैदा करो किरदार-ओ-अमल में अपने
ग़ैर को देखो न 'अहसन' कि वो क्या करते हैं
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Ahsan Aazmi
दिल में ईमान तो है जज़्बा-ए-ईमाँ न सही
हम मुसलमान तो हैं शान-ए-मुसलमाँ न सही

रब की रहमत का सहारा ही हमें काफ़ी है
आज दुनिया में कोई अपना निगहबाँ न सही

तीन सौ तेरह ने ये बद्र में पैग़ाम दिया
अज़्म-ओ-ईमान है तो जंग का सामाँ न सही

हम तो हैं आज भी तज़ईन-ए-गुलिस्ताँ में शरीक
अपने हाथों में नहीं नज़्म-ए-गुलिस्ताँ न सही

असलहों की मिरे क़ातिल को ज़रूरत क्या है
तीर-ए-मिज़्गाँ है बहुत ख़ंजर-ओ-पैकाँ न सही

मैं ने पलकों पे सजा रक्खे हैं अश्कों के चराग़
मेरे टूटे हुए छप्पर में चराग़ाँ न सही

माल-ओ-ज़र पास नहीं तोशा-ए-उल्फ़त के सिवा
कोई सामान तो है ज़ीस्त का सामाँ न सही

आज की शब किसी भूके की ज़ियाफ़त कर दे
घर में तेरे नहीं 'अहसन' कोई मेहमाँ न सही
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Ahsan Aazmi
नशात-ए-हस्ती-ए-फ़ानी की जुस्तुजू क्या है
जो बे-सबात है फिर उस की आरज़ू क्या है

फ़ना का ज़ाइक़ा चखना पड़ेगा हर शय को
ये हुस्न-ए-ज़ीस्त ये दुनिया-ए-रंग-ओ-बू क्या है

मिलेगा ख़ाक में तेरा ग़ुरूर भी ज़ालिम
बड़े बड़ों को ज़मीं खा गई है तू क्या है

तलाश-ए-यार में सहरा-नवर्दियाँ कैसी
जो दिल के पास है फिर उस की जुस्तुजू क्या है

जमाल-ए-यार की तुझ से मिसाल कैसे दूँ
फ़लक के चाँद तिरा हुस्न क्या है तू क्या है

ज़रा सी बात पे बह जाएँ ख़ून की नदियाँ
कोई बताए यहाँ क़ीमत-ए-लहू क्या है

बदन को नोच लो बदले में रोटियाँ दे दो
शिकम की भूक के आगे ये आबरू क्या है

हैं अब भी ऐसे मुसलमाँ जो जानते ही नहीं
नमाज़ रोज़ा किसे कहते हैं वुज़ू क्या है

दिलों में जज़्बा-ए-अख़्लाक़ हो तो बात बने
ज़बाँ से अम्न की बे-फ़ैज़ गुफ़्तुगू क्या है

तलाश करना फिर औरों के ऐब को 'अहसन'
तू पहले जान ले अंजाम-ए-ऐब-जू क्या है
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Ahsan Aazmi
नफ़रत के अँधेरों को मिटा क्यों नहीं देते
लौ शम-ए-मोहब्बत की बढ़ा क्यों नहीं देते

चाहत है अगर अम्न की ऐ अम्न के ख़ूगर
दीवार तअ'स्सुब की गिरा क्यों नहीं देते

क्यों करते हो ख़ूँ अद्ल का मंसब की इहानत
मुंसिफ़ हो तो मुजरिम को सज़ा क्यों नहीं देते

ऐ रहबरो तुम जैसे हो गुफ़्तार में यकता
किरदार का सिक्का भी बिठा क्यों नहीं देते

तारिक़ सी फ़ुतूहात का अरमान अगर है
साहिल पे सफ़ीने को जला क्यों नहीं देते

बनते हो जो तुम उस्वा-ए-अस्लाफ़ के पैरव
दुश्नाम-तराज़ों को दुआ क्यों नहीं देते

सफ़ में जो अदू सूरत-ए-अहबाब हैं उन के
चेहरों से हिजाबात उठा क्यों नहीं देते

क्यों जाते हो तुम मुझ को लगाते हुए ठोकर
पत्थर हूँ तो रस्ते से हटा क्यों नहीं देते

'अहसन' तुम्हें पाना है जो मेराज-ए-बुलंदी
सर रब के हुज़ूर अपना झुका क्यों नहीं देते
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Ahsan Aazmi
हैं मुनफ़रिद अमल से ये गुफ़्तार से अलग
रहबर जुदा हैं क़ौल से किरदार से अलग

होंगे न ग़ैर के सितम-आज़ार से अलग
जब तक न होंगे हम सफ़-ए-अग़्यार से अलग

क़स्र-ए-ख़ुलूस हो गया मिस्मार इस तरह
बैठे हैं लोग साया-ए-दीवार से अलग

तहज़ीब के ज़वाल पे हैरत न कीजिए
ये अहद-ए-नौ है साबिक़ा अदवार से अलग

कर लेते हैं ये जुम्बिश-ए-अबरू से गुफ़्तुगू
हैं अहल-ए-इश्क़ ज़हमत-ए-इज़हार से अलग

तर्क-ए-हया ने छीन लिया मह-वशों का हुस्न
बे-क़द्र हैं ये हो के हया-दार से अलग

सरमाया-ए-हयात मोहब्बत वफ़ा ख़ुलूस
दौलत है अपनी दौलत-ए-ज़रदार से अलग

शान-ए-ख़ुदी बचाए हुए मस्लहत से दूर
मैं जी रहा हूँ वक़्त की रफ़्तार से अलग

'अहसन' को आरज़ू नहीं नाम-ओ-नुमूद की
रखता है ख़ुद को कूचा-ओ-बाज़ार से अलग
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Ahsan Aazmi
बिगड़ी हुई जब होती है तक़दीर किसी की
काम आती नहीं ऐसे में तदबीर किसी की

दिल जीत लिए अपनों के बेगानों के पल में
गुफ़्तार में ऐसी भी है तासीर किसी की

ये फ़ातेह-ए-अक़्लीम तो हो सकती है लेकिन
दिल जीत न पाई कभी शमशीर किसी की

तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का चलन उठ गया शायद
करता है कहाँ अब कोई तौक़ीर किसी की

अल्लाह रे ये अद्ल ये मीज़ान-ए-अदालत
पाता है सज़ा कोई है तक़्सीर किसी की

सोए हैं अभी अहल-ए-जुनूँ क़ैद-ए-क़फ़स में
पैरों में खनकती नहीं ज़ंजीर किसी की

हर लब पे फ़क़त अम्न की बातें हों ख़ुदाया
हो वजह-ए-फ़सादात न तक़रीर किसी की

ये हुस्न का ए'जाज़ है या नश्शा-ए-मय है
साग़र में उतर आई है तस्वीर किसी की

शोहरत की तमन्ना है तो कर जेहद-ए-मुसलसल
'अहसन' यूँही होती नहीं तश्हीर किसी की
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Ahsan Aazmi