Alimullah

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Alimullah shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Alimullah's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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मुर्ग़ ज़ीरक अक़्ल का है इश्क़ का सय्याद शोख़
अक़्ल है बिसयार शीरीं इश्क़ का फ़रहाद शोख़

अक़्ल अपने दाम में करता है कुल आलम को क़ैद
बंद और ज़ंजीर सूँ नित इश्क़ है आज़ाद शोख़

अक़्ल बूझा आशिक़ाँ सब वाजिबुत्ताज़ीर हैं
क़ातिल-ए-अक़्ल-ओ-फ़हम है इश्क़ का जल्लाद शोख़

अक़्ल को सब मुल्क में है दाद इंसाफ़-ओ-अदल
क्या निहायत इश्क़ का है बादशह बे-दाद शोख़

फ़हम और फ़िक्रत में अपनी अक़्ल गर फ़ौलाद है
आब करता है गला कर इश्क़ का हद्दाद शोख़

अक़्ल के मीज़ाँ में आया बहर और बर का हिसाब
नहिं मगर आया अदद में इश्क़ का तादाद शोख़

अक़्ल सूँ जाने गुज़र तब आशिक़ाँ पाते हैं वस्ल
ऐ 'अलीमुल्लाह' अजब है इश्क़ का इरशाद शोख़
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Alimullah
हुस्न का देख हर तरफ़ गुलज़ार
अंदलीबाँ हुए हैं दिल-अफ़गार

इश्क़ की मय सूँ जो हुआ सरमस्त
दिल हुआ उस का ख़ाना-ए-ख़ु़म्मार

यार आया है जब मुआलिज हो
दर्द-ए-फ़ुर्क़त में नहिं रहा बीमार

आप आशिक़ है हुस्न पर अपने
है मिरे जान का अजब असरार

कहीं आशिक़ कहीं हुआ दिलबर
कहीं माशूक़ कीं हुआ दिलदार

कीं हुआ शम्स कीं हुआ है क़मर
कीं हुआ नूर कीं हुआ है नार

कीं हुआ अर्ज़ कीं हुआ है फ़लक
कीं हुआ बहर कीं हुआ अश्जार

कीं हुआ इंस कीं हुआ है मलक
कीं हुआ दीद कीं हुआ दीदार

कीं पयम्बर कहीं हुआ है वली
कीं हुआ शैख़ कीं हुआ ज़ुन्नार

कीं है क़ाज़ी कहीं हुआ मुफ़्ती
कीं हुआ मस्त कीं हुआ अबरार

कीं हुआ जान कीं हुआ जानाँ
सब में है और कहीं सभों से पार

हक़ में हक़ हो सदा अनल-हक़ बोल
देख मंसूर क्यूँ चढ़ा है दार

इक-पना ज़ात का 'अलीमुल्लाह'
शरअ बिन ग़ैर कुछ न कर तकरार
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ला-मकाँ लग आशिक़ाँ के इश्क़ का पर्वाज़ है
आसमान और अर्श-ओ-कुर्सी उन का पा-अंदाज़ है

इक तफ़क्कुर उन का अफ़ज़ल अज़-ताअत-ए-हफ़्ता-ओ-साल
सब ख़लाइक़ पर उन्हों का इस सबब एज़ाज़ है

आलिमाँ और आबिदाँ की बंदगी सब क़ील-ओ-क़ाल
आशिक़ाँ के दिल में रौशन जो कि मख़्फ़ी राज़ है

मूतू-क़ब्ला-अन-तमूतू हाल है उश्शाक़ का
आलिमाँ के गोश में उस हर्फ़ का आवाज़ है

बुल-हवस को शम्अ से दिल बाँधना मुमकिन नहीं
आशिक़ाँ का इस सबब ज़ाहिद सदा अग़माज़ है

ख़ैर ओ शर सूँ आशिक़ाँ बे-दिल नहीं और बूझते
रंज ओ राहत इश्क़ में माशूक़ का सब नाज़ है

टल गए इस मारके सूँ कई हज़ाराँ ऐ 'अलीम'
जो रहा सो नाम उस का आशिक़-ए-जाँ-बाज़ है
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ख़यालात रंगीं नहीं बोलते उस को ज्यूँ बास फूलों के रंगों में रहिए
दो-रंगी सूँ जाना गुज़र दिल सूँ अव्वल बज़ाँ जा के वाँ एक रंगों में रहिए

वो वहशत के जंगल में हो कर परेशाँ पहाड़ों से ग़म के न हो संग हरगिज़
शरर हो के छिड़ संग तिनके सूँ जल्दी सकल रूह हो बर्क़ रंगों में रहिए

नहीं मौज-ए-दरिया की दहशत उसे जो कि मारा है ग़ोता हो ग़व्वास दिल में
तह-ए-बहर-ए-वहदत में ग़व्वास होने को तालीम पाने नहंगों में रहिए

शहादत मिले चार तन सूँ तुझे गर करे क़त्ल तू पाँच मूज़ियाँ कूँ दिल के
शहीदों की रह साथ हर वक़्त हमदम हो ज्यूँ शेर शेरान जंगों में रहिए

फ़लक चर्ख़-ए-कज-रौ सूँ देखे अगर ख़ूब नैरंग-बाज़ी ज़माने की हिकमत
गुज़र ग़ैर सोहबत सूँ मदहोश हो जा पहाड़ों में जा कर भुजंगों में रहिए

समझ ऐ 'अलीम' आज राह-ए-हक़ीक़त निपट सख़्त मुश्किल है जाँ सूँ गुज़रना
पतंग हो के जलने में वासिल रहें हक़ सूँ हो मर्द-ए-वाहिद यकंगों में रहिए
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अक़्ल-ए-जुज़वी छोड़ कर ऐ यार फ़िक्र-ए-कुल करो
मिशअल-ए-दिल को चिता फ़ानी चराग़ाँ गुल करो

दिल लगाओ एक से दोनों जहाँ जिस का ज़ुहूर
बुल-हवस हो कर न हरगिज़ आदत-ए-बुलबुल करो

मैं मोहब्बत सूँ हमेशा इश्क़ में सरशार हूँ
नश्शा-ए-फ़ानी सूँ मत ख़ातिर को ख़ू-ए-मुल करो

ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़ है मुनव्वर देख वज्हुल्लाह का
तुम न को सैर-ए-चमन और ख़्वाहिश-ए-सुम्बुल करो

क़ौल पर ला-तक़्नतू के रहो हमेशा जम्अ'-दिल
मत तुम्हें ख़ातिर परेशाँ सूरत-ए-काकुल करो

ख़ौफ़ मत रक्खो किसी दुश्मन से दिल में यक रती
पुश्त-बाँ अपना हमेशा साहब-ए-दुलदुल करो

ऐ 'अलीमुल्लाह' अव्वल इश्क़ में मिस्मार हो
आशिक़ों में बा'द अपने आशिक़ी का ग़ुल करो
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दिलबर को दिलबरी सूँ मना यार कर रखूँ
पीतम को अपने पीत सूँ गुलहार कर रखूँ

एक नौम सूँ जगाऊँ अगर मुर्दा दिल के तईं
ता-हश्र याद-ए-हक़ मने बेदार कर रखूँ

रहता है दिल हर एक का हर एक काम में एक
अपना ख़याल सूरत-ए-परकार कर रखूँ

दिस्ता है मुझ को यार का रुख़्सार-ए-गुल-इज़ार
तिस की ख़ुशी सूँ तब्अ को गुलज़ार कर रखूँ

मनके को मन के लाऊँ फिराने का जब ख़याल
तस्बीह बदन की तोड़ के एक तार कर रखूँ

पीतम के बाज नहीं है मिरा इख़्तियार कुछ
मुझ दिल को तिस के अम्र में मुख़्तार कर रखूँ

बे-सर अगर अछे तो उसे सर करूँ अता
दोनों जहाँ में साहिब-ए-असरार कर रखूँ

अंधे के तईं 'अलीम' लगा इश्क़ का अंजन
सब वासिलाँ में वासिल-ए-दीदार कर रखूँ
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