Jagjeewan Lal Asthana sahar

Jagjeewan Lal Asthana sahar

@jagjeewan-lal-asthana-sahar

Jagjeewan Lal Asthana sahar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jagjeewan Lal Asthana sahar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

11

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
मिरा ग़म-गुसार कोई नहीं किसी लब पे आई दुआ नहीं
मिरे चारागर तिरे पास भी मिरे दर्द-ए-दिल की दवा नहीं

कभी साथ साथ है तू मिरे कभी दूर तक भी पिया नहीं
मिरे हम-सफ़र तिरी दोस्ती का ये राज़ क्या है खुला नहीं

तिरी आरज़ू मिरी ज़िंदगी तिरी जुस्तुजू मिरी बंदगी
तिरी याद मेरी नमाज़ है कोई काम इस के सिवा नहीं

वही बे-ख़ुदी वही सरख़ुशी वही बे-होशी वही गुमरही
मुझे आप अपनी तलाश है मैं कहाँ हूँ मुझ को पता नहीं

ये तो अपना अपना ख़ुलूस है ये तो अपना अपना सुलूक है
कोई चाहने से गिरा नहीं कोई पूछने से उठा नहीं

तुझे माँगने से मिलेगा क्या तिरा सर झुकाने से होगा क्या
ये तो पत्थरों का जहान है यहाँ कोई तेरा ख़ुदा नहीं

मैं ख़िज़ाँ-नसीब सदा रहा मैं भरी बहार में लुट गया
मुझे रास आई न ज़िंदगी मुझे मिल के कुछ भी मिला नहीं

न तो अब ख़ुशी की तलाश है न सुकून की मुझे आरज़ू
यही ज़िंदगी का है फ़ैसला कि ख़ुशी भी ग़म के सिवा नहीं

वो नफ़स नफ़स में ख़लिश तिरी वो तिरे ख़ुलूस की बे-रुख़ी
तुझे हर क़दम यही ख़ौफ़ है तिरा ग़म तो मुझ से जुदा नहीं

वही दिल में है वही लब पे है वही आँसूओं में रवाँ-दवाँ
उसे कैसे भूलूँ 'सहर' बता जो मिरे नफ़स से जुदा नहीं
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar
वक़्त अपना हो तो तूफ़ान-ओ-बला कुछ भी नहीं
बर्क़ गिरने को गिरी और हुआ कुछ भी नहीं

मैं ने इक उम्र गुज़ारी है तिरी फ़ुर्क़त में
क्या मुक़द्दर में मिरे इस के सिवा कुछ भी नहीं

सिर्फ़ हाथों को उठाने का नतीजा क्या है
हो सलीक़ा न दुआ का तो दुआ कुछ भी नहीं

जाने भर जाते हैं किस तरह गुलों से दामन
मेरे दामन में तो काँटों के सिवा कुछ भी नहीं

बात ज़ख़्मों की कहो कर्ब की तशरीह करो
अब मोहब्बत के फ़साने में रहा कुछ भी नहीं

दर्द-ओ-ग़म आह-ओ-फ़ुग़ाँ सोज़-ए-निहाँ अश्क रवाँ
दोस्तो इस के सिवा मेरा पता कुछ भी नहीं

चंद सिक्कों के लिए शौक़ से बिक जाते हैं
आज के दौर में इंसाँ की अना कुछ भी नहीं

रौशनी जितनी थी सब लूट ली अँधियारों ने
अब उजालों में 'सहर' और बचा कुछ भी नहीं
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar
ज़िंदगी मेरी कभी ग़म से जुदा हो न सकी
दर्द बढ़ता ही गया और दवा हो न सकी

ज़िंदगी मैं ने बहुत नाज़ उठाए तेरे
ये अलग बात कि तुझ से ही वफ़ा हो न सकी

जाने किस दौर में क्या जुर्म किया था हम ने
ज़िंदगी बीत गई ख़त्म सज़ा न हो सकी

फूल ही फूल हैं हर शाख़-ए-गुलिस्ताँ पे मगर
मेरी तक़दीर ही अफ़्सोस रसा हो न सकी

साथ सब छोड़ गए हिज्र में मेरा लेकिन
क्यों तिरी याद मिरे दिल से जुदा हो न सकी

आदमी टूट गया जुस्तुजू करते करते
ज़िंदगी दाम-ए-मुसीबत से रिहा हो न सकी

बिछ गई धूप हर इक सम्त उजालों की मगर
दूर दिल से मिरे ज़ुल्मत की घटा हो न सकी

सोचता रहता हूँ अक्सर शब-ए-तन्हाई में
ज़िंदगी क्यों मिरी मरहून-ए-दुआ हो न सकी

क्या अजब चीज़ है इज़हार-ए-मोहब्बत भी 'सहर'
बात लम्हों की थी सदियों में अदा हो न सकी
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar
नए शीशे में अब ढल जाए हर रस्म-ए-कुहन साक़ी
तुझे दुनिया बदलती है मुझे ये अंजुमन साक़ी

वहाँ किस काम के ये साग़र-ओ-मीना-ओ-पैमाना
जहाँ चलता है तेरी मस्त आँखों का चलन साक़ी

न आँख उट्ठी न मय छलकी न साग़र दौर में आया
मुझे देता रहा धोके ये तेरा बाँकपन साक़ी

लिखा है नाम मेरा यूँ तो हर इक शाख़ पर लेकिन
न मेरे फूल हैं साक़ी न मेरा है चमन साक़ी

हटा साग़र न मेरे सामने से इस को रहने दे
कि इस से झाँकती है मेरे ख़्वाबों की दुल्हन साक़ी

मज़ा जब है मिरी मस्ती को तू दो-आतिशा कर दे
निगाहों से निगाहों का भी होने दे मिलन साक़ी

ज़रा भीगी हुई ज़ुल्फ़ों की दो इक बूँद टपका दे
सुलगता है न जाने कब से मेरा तन-बदन साक़ी

तिरी ज़ुल्फ़ों के साए में ढली रातों का क्या कहना
मगर कुछ और कहता है 'सहर' का बाँकपन साक़ी
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar
लब-ओ-नज़र को तिरे प्यार की हँसी न मिली
करे जो दिल में उजाला वो रौशनी न मिली

हज़ार बार चमन से बहार गुज़री है
ये और बात है फूलों को ताज़गी न मिली

ये कैसी रात है किस शहर के ये रस्ते हैं
जिगर का ख़ून जला भी तो रौशनी न मिली

वहाँ तो कट गईं ऐश-ओ-निशात में उम्रें
यहाँ तो एक मसर्रत की साँस भी न मिली

हर एक फूल में पाया तिरा ही रंग-ओ-जमाल
कोई भी शक्ल गुलिस्ताँ में अजनबी न मिली

तुम्हारे रूप की ये चाँदनी भी क्या कम है
नहीं ये फ़िक्र मुझे रौशनी मिली न मिली

हर एक राह ने दूरी बढ़ाई मंज़िल की
दिखाए राह जो मंज़िल की वो कली न मिली

हमारे पाँव की ज़ंजीर तो बनी कड़ियाँ
दिलों को जोड़ दे ऐसी कोई कड़ी न मिली

तमाम उम्र तरसती रही निगाह-ए-'सहर'
उजाले दिन के मिले शब की चाँदनी न मिली
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar
शब-ए-फ़िराक़ को यूँ जगमगा रहा हूँ मैं
बुझा के शम्अ को अब दिल जला रहा हूँ

ख़याल-ए-यार को दिल में बसा रहा हूँ मैं
तसव्वुरात की दुनिया सजा रहा हूँ मैं

ग़म-ए-हयात ग़म-ए-दिल का लुत्फ़ पाने को
अजल के हाथ से दामन छुड़ा रहा हूँ मैं

अजीब हाल है शाख़ों से फूल झड़ते हैं
भरी बहार में आँसू बहा रहा हूँ मैं

ये राज़ फ़ाश न हो जाए आँसूओं से कहीं
तुम्हारे ग़म को तुम्हीं से छुपा रहा हूँ मैं

न लब पे कोई शिकायत न दिल है फ़रियादी
तुम्हारी बज़्म से ख़ामोश जा रहा हूँ मैं

उठाओ साज़ मिलाओ दिलों के तारों को
नई हयात के नग़्मे सुना रहा हूँ मैं

विसाल-ओ-हिज्र का आलम अजीब आलम है
फ़साना शब का 'सहर' को सुना हूँ मैं
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar
बुझी बुझी सी है आँखों की रौशनी मेरी
वो क्या गए कि गई साथ ज़िंदगी मेरी

तिरी ख़ुशी से तो बढ़ कर नहीं ख़ुशी मेरी
तिरी ख़ुशी ही पे सदक़े है ज़िंदगी मेरी

बना रहा था मैं तस्वीर ग़म के मारों की
ये क्या हुआ कि वो तस्वीर बन गई मेरी

ज़माना कितना है मानूस मेरी हालत से
बदल बदल के कहानी लिखी गई मेरी

वो क्या निभाएँगे अब ख़ाक दर्द का रिश्ता
उन्हें तो लगती है सूरत भी अजनबी मेरी

सभी थे डूबे हुए अपने जाम-ओ-साग़र में
कोई तो देखता आँखों की तिश्नगी मेरी

ख़याल आप का आया तो भर गईं आँखें
हयात कितनी है हस्सास आज भी मेरी

अभी से आइना क्यों रख दिया मिरे आगे
अभी तो वक़्त ने देखी नहीं छबी मेरी

मैं देखता रहा आँखों से अपनी बर्बादी
किसी ने लूट ली दुनिया से हर ख़ुशी मेरी

चलो ख़याल तो आया उन्हें कभी मेरा
ये और बात कि हसरत निकल गई मेरी

मैं इस फ़रेब में जीता रहा 'सहर' अब तक
कि उन के वास्ते सब कुछ है ज़िंदगी मेरी
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar
निगाह-ओ-दिल को जलाने का हौसला तो करो
उठा के पर्दे हक़ीक़त का सामना तो करो

बिसात-ए-रक़्स पे नग़्मों से खेलने वालो
किसी ग़रीब की फ़रियाद भी सुना तो करो

किसी के ऐब तुम्हें फिर नज़र न आएँगे
ख़ुद अपने आप को तफ़्सील से पढ़ा तो करो

वो ज़िंदगी के लिए हो कि हो अजल के लिए
हमारे हक़ में कभी तुम कोई दुआ तो करो

दिखाई देंगे हमें हम तुम्हारे चेहरे में
नज़र के सामने इक बार आइना तो करो

मजाज़ ख़ुद ही हक़ीक़त का रूप ढालेगा
ये शर्त है कि हक़-ए-बंदगी अदा तो करो

हमारी आँख में सूरज को ढूँडने वालो
तुम अपने दिल को उजालों से आश्ना तो करो

मैं काएनात की हर शय को छोड़ सकता हूँ
तुम अपने दर्द-ए-मोहब्बत से आश्ना तो करो

बहुत तवील सही शब तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की
'सहर' को इन के उजालों से आश्ना तो करो
Read Full
Jagjeewan Lal Asthana sahar