Kaif Ahmed Siddiqui

Kaif Ahmed Siddiqui

@kaif-ahmed-siddiqui

Kaif Ahmed Siddiqui shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Kaif Ahmed Siddiqui's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
दुनिया में कुछ अपने हैं कुछ बेगाने अल्फ़ाज़
किस को इतनी फ़ुर्सत है जो पहचाने अल्फ़ाज़

रेग-ए-अलामत में भी जल कर पा न सके मफ़्हूम
सहरा-ए-मअ'नी में भी भटके अनजाने अल्फ़ाज़

दश्त-ए-अज़ल से दश्त-ए-अबद तक छान चुका में ख़ाक
और कहाँ ले जाएँगे अब भटकाने अल्फ़ाज़

बे-म'अनी माहौल में रह कर ज़ेहन हुआ माऊफ़
मुझ को भी पागल कर देंगे दीवाने अल्फ़ाज़

अक्सर आधी रात में ले कर कुछ पथरीले ख़्वाब
शीशा-ए-ज़ेहन से आ जाते हैं टकराने अल्फ़ाज़

शेर-ओ-सुख़न के मय-ख़ाने का मैं हूँ इक मय-ख़्वार
मेरे लिए बादा है तख़य्युल पैमाने अल्फ़ाज़

'कैफ़' कभी इक शेर में ढलना होता है दुश्वार
और कभी ख़ुद बन जाते हैं अफ़्साने अल्फ़ाज़
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Kaif Ahmed Siddiqui
सारे दिन दश्त-ए-तजस्सुस में भटक कर सो गया
शाम की आग़ोश में सूरज भी थक कर सो गया

आख़िर-ए-शब मैं भी खा कर ख़्वाब-आवर गोलियाँ
चंद लम्हे नश्शा-ए-ग़म से बहक कर सो गया

ये सुकूत-ए-शाम ये हंगामा-ए-ज़ेहन-ए-बशर
रूह है बेदार लेकिन जिस्म थक कर सो गया

आख़िर इस दौर-ए-पुर-आशोब का हर आदमी
ख़्वाब-ए-मुस्तक़बिल के जंगल में भटक कर सो गया

चंद दिन गुलशन में नग़मात-ए-मसर्रत छेड़ कर
शाख़-ए-ग़म पर रूह का पंछी चहक कर सो गया

आख़िरश सारे चमन को दे के हुस्न-ए-ज़िंदगी
मौत के बिस्तर पे हर ग़ुंचा महक कर सो गया

ज़िंदगी भर अब अँधेरी रात में है जागना
अब तो क़िस्मत का सितारा भी चमक कर सो गया

पैकर-ए-अल्फ़ाज़ में इक आग दहकाता हुआ
काग़ज़ी सहरा में इक शोला भड़क कर सो गया

'कैफ़' यूँ आग़ोश-ए-फ़न में ज़ेहन को नींद आ गई
जैसे माँ की गोद में बच्चा सिसक कर सो गया
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Kaif Ahmed Siddiqui
मुझे नक़्ल पर भी इतना अगर इख़्तियार होता
कभी फ़ेल इम्तिहाँ में न मैं बार बार होता

जो मैं फ़ेल हो गया तो सभी दे रहे हैं ता'ने
कोई दिल-नवाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता

मुझे आज इतनी नफ़रत से न देखती ये दुनिया
जो पढ़ाई से ज़रा भी मिरे दिल को प्यार होता

मिरे मास्टर न होते जो उलूम-ओ-फ़न में दाना
कभी मौला-बख़्श-साहब का न मैं शिकार होता

वो पढ़ाते वक़्त दर्जे में हज़ार बार बरसे
जो मुझे भी छींक आती उन्हें नागवार होता

न मैं तंदुरुस्त होता न कभी स्कूल जाता
कभी सर में दर्द रहता तो कभी बुख़ार होता

कभी मदरसे में आता कोई ऐसा चाट वाला
कि जो मुफ़्त में खिलाता न कभी उधार होता

ये गधा जो अपनी ग़फ़्लत से है बेवक़ूफ़ इतना
जो ये ख़ुद को जान जाता बड़ा होशियार होता

तिरे घर में 'कैफ़' तेरा कोई क़द्र-दाँ नहीं है
जो वतन से दूर होता तो बड़ा वक़ार होता
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Kaif Ahmed Siddiqui
नाम लिखा लिया तो फिर करते हो हाए हाए क्यों
पढ़ना न था तुम्हें अगर दर्जे में पढ़ने आए क्यों

क्यूँकर हम इम्तिहान दें सोएँगे जा के बाग़ में
पढ़ने को आधी रात तक कोई हमें जगाए क्यों

बैठे हैं अपनी सीट पर कैसे भगाएँ मास्टर
आए हैं दे के फ़ीस हम कोई हमें भगाए क्यों

चीख़ेंगे ख़ूब हम यहाँ चाहे ख़फ़ा हों मेहमाँ
नफ़रत हो जिस को शोर से घर में हमारे आए क्यों

कोई पड़ोसी तंग हो चाहे किसी से जंग हो
घर है ये अपने बाप का कोई हमें चुपाए क्यों

काना ख़ुदा ने कर दिया इस में है अपनी क्या ख़ता
गाली बकेंगे ख़ूब हम कोई हमें चिड़ाए क्यों

देखो तो पेट बन गया आख़िर ग़ुबारा गैस का
खाते हो इतना गोश्त क्यों पीते हो इतनी चाय क्यों

साथी हों या असातिज़ा आए किसी को क्या मज़ा
दर्जे में कोई बे-महल 'कैफ़' की ग़ज़लें गाए क्यों
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