Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq

Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq

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Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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दिल बहलने का जहाँ में कोई सामाँ न हुआ
अपना हमदर्द कभी आलम-ए-इम्काँ न हुआ

शिकवा-ए-हिज्र न भूले से भी आया लब पर
रू-ब-रू उन के मैं ख़ुद-कर्दा पशेमाँ न हुआ

हम-नशीं पूछ न हाल-ए-दिल-ए-नाकाम-ए-अज़ल
यही हसरत रही पूरा कोई अरमाँ न हुआ

बे-ख़ुदी में ये है आलम तिरे दीवानों का
फ़स्ल-ए-गुल आई मगर चाक गरेबाँ न हुआ

कोई क्या जाने कि क्या लुत्फ़ ख़लिश है हासिल
मेरा ही दिल है कि मिन्नत-कश-ए-दरमाँ न हुआ

यूँ तो हमदर्द ज़माना था ब-ज़ाहिर लेकिन
किसी सूरत से इलाज-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ न हुआ

बे-धड़क जाने की हिम्मत न हुई महशर में
मुँह छुपाने के लिए दस्त-ब-दामाँ न हुआ

दिल बहलता भी तो किस तरह बहलता शब-ए-ग़म
साज़-ओ-सामाँ न हुआ नग़्मा-ए-हिर्मां न हुआ

पुर्सिश-ए-हाल पे आँखों में भर आए आँसू
ऐसे मजबूर हुए ज़ब्त भी आसाँ न हुआ

ज़र्रे ज़र्रे से अयाँ हुस्न की रा'नाई है
वो हसीं तू है कि पर्दों में भी पिन्हाँ न हुआ

मैं था मुश्ताक़ तिरे जल्वे का ऐ माया-ए-हुस्न
रह के पर्दे में भी तो शो'ला-ए-उर्यां न हुआ

चैन से क़ैद तअ'य्युन में बसर की ऐ 'शौक़'
दिल भी जमईयत-ए-ख़ातिर से परेशाँ न हुआ
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Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq
कर के क़ौल-ओ-क़रार क्या कहना
ओ फ़रामोश-कार क्या कहना

हो के नादिम गुनह से पाक हुआ
वाह रे शर्मसार क्या कहना

काम बिगड़े तू ही बनाता है
ऐ मिरे किर्दगार क्या कहना

ख़ूब तू ने सुनी लगी दिल की
वाह रे ग़म-गुसार क्या कहना

दिन को तारे दिखा दिए तू ने
ऐ शब-ए-इंतिज़ार क्या कहना

ख़ाक में भी मिला के ऐ ज़ालिम
न किया ए'तिबार क्या कहना

दिल-ए-हसरत-ज़दा रहा न रहा
उस का क़ौल-ओ-क़रार क्या कहना

उस से हाल-ए-ग़म-ए-दिल-ए-मज़लूम
जो न हो शर्मसार क्या कहना

बा-वफ़ाई भी तेरी ऐ दिल-ए-ज़ार
रह गई यादगार क्या कहना

न सुने एक बार जो दिल की
उस से फिर बार बार क्या कहना

ख़ुम के ख़ुम 'शौक़' कर दिए ख़ाली
ऐ मिरे बादा-ख़्वार क्या कहना
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Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq
दिल से पूछो क्या हुआ था और क्यूँ ख़ामोश था
आँख महव-ए-दीद थी इतना मुझे बस होश था

वो भी क्या तासीर थी जिस ने हिलाए सब के दिल
क्या बताऊँ वो मिरा ही नाला-ए-पुर-जोश था

महफ़िल-ए-साक़ी में था कुछ और ही मस्तों का रंग
कोई साग़र ढूँढता था और कोई बेहोश था

क्या अजब है जाएज़ा ले मय-परस्तों का कोई
याद रखना साक़िया मुझ सा भी इक मय-नोश था

क्या समझ सकता था कोई तेरे दीवाने की चुप
जब किसी ने उस से कुछ पूछा तो बस ख़ामोश था

बे-ख़ुदी से नश्शा-ए-जाम-ए-ख़ुदी उतरा तो फिर
एक ही साग़र मिला ऐसा कि मैं मदहोश था

इक हमीं को साक़िया पूछा न तू ने दौर मैं
वर्ना मय-ख़ाने में तेरे शोर नोशा-नोश था

किस क़दर था इश्तियाक़-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद उसे
मरने वाले का जनाज़ा आज दोशा-दोश था

ज़िंदगी-भर के गुनाहों से ये थी शरम ऐ अजल
तारिक-ए-हस्ती यहाँ से जब चला रू-पोश था

ग़ुंचे क्यूँ ख़ामोश आए गुलशन-ए-हस्ती में 'शौक़'
मौसम-ए-गुल से मगर ख़ौफ़-ए-ख़िज़ाँ हम-दोश था
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Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq
ला-मकाँ नाम है उजड़े हुए वीराने का
हू के आलम में है मस्कन तिरे दीवाने का

शौक़-ए-रुस्वा कोई देखे तिरे दीवाने का
ख़ुद वो आग़ाज़ बना है किसी अफ़्साने का

जाम-ए-दिल बादा-ए-उल्फ़त से भरा रहता है
वाह क्या ज़र्फ़ है टूटे हुए पैमाने का

दास्ताँ इश्क़ की है पूरी सुनाएँगे कलीम
क़िस्सा तूर तो इक बाब है अफ़्साने का

शम्अ' ने बज़्म में जल जल के जलाया आख़िर
आह क्या हश्र हुआ इश्क़ में परवाने का

मुस्ततर क़ुलक़ुल-ए-मीना में है राज़-ए-मस्ती
भेद किस तरह खुले फिर तिरे मस्ताने का

हश्र में देख के मजमा' लब-ए-कौसर साक़ी
फिर गया आँखों में नक़्शा तिरे मयख़ाने का

मिलते ही साग़र-ओ-शीशा से छलक जाता है
ये भी क्या दौर है साक़ी तिरे पैमाने का

क्या क़यामत है कि महशर में भी पुर्सिश न हुई
हश्र अब देखिए क्या हो तिरे दीवाने का

सफ़हा दिल मिरा आईना-ए-रम्ज़-ए-तौहीद
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा मिरे अफ़्साने का

'शौक़' अब किस लिए फ़िक्र-ए-मय-ओ-मय-ख़ाना है
भरने वाला तो कोई और है पैमाने का
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आतिश-ए-इश्क़-ए-बला आग लगाए न बने
और हम उस को बुझाएँ तो बुझाए न बने

रंग-ए-रुख़ उड़ने पे आज जाए तो रोके न रुके
लाख वो राज़ छुपाएँ तो छुपाए न बने

क्या मज़ा हो न रहे याद जो अंदाज़-ए-जफ़ा
मैं कहूँ भी कि सताओ तो सताए न बने

ख़ुद वफ़ा है मिरी शाहिद कि वफ़ादार हूँ मैं
लाख तुम दिल से भुलाओ तो भुलाए न बने

दिल के हर ज़र्रा में है सोज़-ए-मोहब्बत की नुमूद
ख़ाक में इन को मिलाऊँ तो मिलाए न बने

राह-ए-उल्फ़त ने कुछ ऐसी मिरी सूरत बदली
दामन-ए-दश्त छुपाए तो छुपाए न बने

दिल को अब ताब-ए-तलाफ़ी ओ मुदावा अभी नहीं
चारागर आए तो एहसान उठाए न बने

कोई ख़ाका मिरी तस्वीर का खींचे तो सही
खिंच भी जाए कोई नक़्शा तो मिटाए न बने

मौत क़ाबू की नहीं और न ठिकाना इस का
कोई वक़्त उस पे भी आए कि बनाए न बने

ऐसे ढब से हो गिला उन की सितम का ऐ 'शौक़'
बात कुछ चाहें बनानी तो बनाए न बने
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Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq
बताएँ क्या कि आए हैं कहाँ से हम कहाँ हो कर
निशाँ अब ढूँडते-फिरते हैं घर का बे-निशाँ हो कर

लुभाने को दिल-ए-शैदा के सारी पर्दा-दारी थी
अयाँ हो तुम निहाँ हो कर निहाँ हो तुम अयाँ हो कर

हमारी ख़ाक के ज़र्रे फ़ना हो कर भी चमकेंगे
उरूज अपना दिखाएँ गे ये नज्म-ए-आसमाँ हो कर

दिल-ए-आवारा क्यूँ तुझ को ख़याल कू-ए-जानाँ है
अरे नादाँ कहाँ जा कर रहेगा बे-निशाँ हो कर

ये दौर-ए-मय-कशी हर-वक़्त महव-ए-दीद रखता है
कहाँ आँखों में ये ग़फ़लत रहे ख़्वाब-ए-गिराँ हो कर

मुसलमाँ हो के तर्क-ए-बुत-परस्ती ऐ मआ'ज़-अल्लाह
ख़ुदा को हम ने पहचाना है शैदा-ए-बुताँ हो कर

ये बार-ए-मासियत मंज़िल कड़ी और शाम-ए-तन्हाई
चले हैं क्या समझ कर हम भी रुस्वा-ए-जहाँ हो कर

अभी क्या जाने क्या क्या रंग वो ऐ 'शौक़' बदलेगा
ज़मीं पर इक करेगा हश्र बरपा आसमाँ हो कर
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Pandit Jagmohan Nath Raina Shauq

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