नहीं दिखता अपना कोई दर यहाँ पर
करूँगा मैं अब क्या ठहरकर यहाँ पर
नहीं सुन सके जब मिरी ख़ामुशी को
करूँ क्या ग़मों को सुनाकर यहाँ पर
कोई आश्ना अजनबी बन गया अब
बदलता है पल भर में मंज़र यहाँ पर
नहीं जान सकते मिरी प्यास को तुम
है प्यासा लबालब समंदर यहाँ पर
की है उसने सोने की अच्छी व्यवस्था
सजाया है काँटों का बिस्तर यहाँ पर
करो मत भरोसा बहारों पे इतना
गुलों की जगह खिलते पत्थर यहाँ पर
दरीचे तो खुलते हैं चीखों को सुनकर
नहीं खुलता लेकिन कोई दर यहाँ पर
बरस अब का गुज़रा है अपना कुछ ऐसे
कि अश्कों से भीगा कलैण्डर यहाँ पर
मुज़य्यन है घर चाँद-तारों से उनका
है जुगनू नहीं अब मयस्सर यहाँ पर
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