Peer Nasiruddin Shah Naseer

Peer Nasiruddin Shah Naseer

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Peer Nasiruddin Shah Naseer shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Peer Nasiruddin Shah Naseer's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
मिरी ज़ीस्त पर मसर्रत कभी थी न है न होगी
कोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी

मुझे हुस्न ने सताया मुझे इश्क़ ने मिटाया
किसी और की ये हालत कभी थी न है न होगी

वो जो बे-रुख़ी कभी थी वही बे-रुख़ी है अब तक
मिरे हाल पर इनायत कभी थी न है न होगी

वो जो हुक्म दें बजा है मिरा हर सुख़न ख़ता है
उन्हें मेरी रू-रिआयत कभी थी न है न होगी

जो है गर्दिशों ने घेरा तो नसीब है वो मेरा
मुझे आप से शिकायत कभी थी न है न होगी

तिरे दर से भी निबाहे दर-ए-ग़ैर को भी चाहे
मिरे सर को ये इजाज़त कभी थी न है न होगी

तिरा नाम तक भुला दूँ तिरी याद तक मिटा दूँ
मुझे इस तरह की जुरअत कभी थी न है न होगी

मैं ये जानते हुए भी तिरी अंजुमन में आया
कि तुझे मिरी ज़रूरत कभी थी न है न होगी

तू अगर नज़र मिलाए मिरा दम निकल ही जाए
तुझे देखने की हिम्मत कभी थी न है न होगी

जो गिला किया है तुम से तो समझ के तुम को अपना
मुझे ग़ैर से शिकायत कभी थी न है न होगी

तिरा हुस्न है यगाना तिरे साथ है ज़माना
मिरे साथ मेरी क़िस्मत कभी थी न है न होगी

ये करम है दोस्तों का वो जो कह रहे हैं सब से
कि 'नसीर' पर इनायत कभी थी न है न होगी
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