निगाहों से निगाहों को मिलाना भी मोहब्बत है
मिलाकर फिर निगाहों को झुकाना भी मोहब्बत है
अभी तो राब्ता तुझसे हुआ भी कुछ नहीं ज़्यादा
यूँ दिल का तेरी जानिब चलते जाना भी मोहब्बत है
मेरे पत्थर से दिल पर तो कोई देता नहीं दस्तक
मगर तेरा दबे पाँवों से आना भी मोहब्बत है
गज़ब की शोखियाँ क़ातिल अदाएँ और काला तिल
तेरी ख़्व़ाहिश में अब ख़ुद को डुबाना भी मोहब्बत है
अगर देखूँ मैं आईना नज़र आता है इक बस तू
तेरे ही अक्स में ख़ुद को मिटाना भी मोहब्बत है
क़यामत है मेरे नज़दीक से तेरा गुज़र जाना
मुसल्सल धड़कनों का गुनगुनाना भी मोहब्बत है
सहर क्या रात क्या हर सू तेरा चेहरा नज़र आए
अकेले में तेरी महफ़िल सजाना भी मोहब्बत है
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