हसीन और उस पे ख़ुद-बीं वो सितम-गर यूँ भी है यूँ भी
नज़ारा क़ब्ज़ा-ए-क़ुदरत से बाहर यूँ भी है यूँ भी
जौ ये बिस्मिल हया से है तो वो मजरूह देखे से
निगाह-ए-नाज़ उस क़ातिल की ख़ंजर यूँ भी है यूँ भी
जबीं उस दर पे है वो दर है ऊँचा अर्श-ए-आज़म से
बुलंद औज-ए-सुरय्या से मुक़द्दर यूँ भी है यूँ भी
इधर वो मुझ से बरहम हैं उधर मायूस-ए-नज़्ज़ारा
कि मेरी उम्र का लबरेज़ साग़र यूँ भी है यूँ भी
अक़ीदत तुझ से भी है बैअ'त-ए-दस्त-ए-सुबू भी है
जो साक़ी रिंद है हक़दार-ए-कौसर यूँ भी है यूँ भी
मिरी मंज़िल का पहला नाम दुनिया दूसरा दीं है
कि राह-ए-इश्क़ मेरे हक़ मैं बेहतर यूँ भी है यूँ भी
मैं ख़्वाहिर-ज़ादा-ए-हैदर भी हूँ शागिर्द-ए-हैदर भी
मिरा मुल्क-ए-सुख़न पे क़ब्ज़ा 'क़ैसर' यूँ भी है यूँ भी
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