Raees Akhtar

Raees Akhtar

@raees-akhtar

Raees Akhtar shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Raees Akhtar's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
दुनिया से आज जज़्ब-ए-वफ़ा माँगता हूँ मैं
ये जुर्म है अगर तो सज़ा माँगता हूँ मैं

किस मोड़ पर हयात के छोड़ा है तुम ने साथ
इक इक से आज अपना पता माँगता हूँ मैं

मैं ने तो की थी दर्द-ए-मुसलसल की आरज़ू
तुम को गुमाँ हुआ कि दवा माँगता हूँ मैं

रानाई-ए-बहार बढ़ाने के वास्ते
तेरा जमाल तेरी अदा माँगता हूँ मैं

बरसाओ मुझ पे संग ब-नाम-ए-ख़ुलूस-ए-इश्क़
अपने किए की आप सज़ा माँगता हूँ मैं

तुम माँगते हो सारी ख़ुदाई तो माँग लो
अपने लिए तो सिर्फ़ ख़ुदा माँगता हूँ मैं

क्या जाने अब समेट के सारी तबाहियाँ
इस दौर-ए-इज़्तिराब से क्या माँगता हूँ मैं

क़ातिल को ग़म-गुसार समझता हूँ अब 'रईस'
मक़्तल में ज़िंदगी की दुआ माँगता हूँ मैं
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Raees Akhtar
तन्हाइयाँ जो रास न आएँ तो क्या करें
ज़ख़्मों की अंजुमन न सजाएँ तो क्या करें

इस दौर-ए-कश्मकश में मोहब्बत का नाम भी
दानिस्ता लोग भूल न जाएँ तो क्या करें

इक आसरा तो चाहिए जीने के वास्ते
हालात का फ़रेब न खाएँ तो क्या करें

दिल भी यहाँ बहुत हैं सवालात भी बहुत
लेकिन कोई जवाब न पाएँ तो क्या करें

वाक़िफ़ हैं हम भी इश्क़ के आदाब से मगर
दीवाना ख़ुद ही लोग बनाएँ तो क्या करें

वीराँ है पहली शाम से मक़्तल के रास्ते
घबरा के मय-कदे को न जाएँ तो क्या करें

दम घुट रहे हैं तल्ख़ हक़ाएक़ के ज़हर से
ख़्वाबों की बस्तियाँ न बसाएँ तो क्या करें

दुनिया के हर फ़रेब को एहसान मान कर
दुनिया का हौसला न बढ़ाएँ तो क्या करें

तफ़्सीर-ए-काएनात तो आसान है 'रईस'
अपने ही दिल का राज़ न पाएँ तो क्या करें
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Raees Akhtar
जाने क्या बात है क्यूँ गर्मी-ए-बाज़ार नहीं
अब कोई जिंस-ए-वफ़ा का भी ख़रीदार नहीं

लोग इक शख़्स को ले जाते हैं मक़्तल की तरफ़
इस पे इल्ज़ाम है उतना कि गुनहगार नहीं

ज़िंदगी ज़ख़्म सही ज़ख़्म का दरमाँ कीजे
कोई इस शहर में ज़ख़्मों का ख़रीदार नहीं

पैकर-ए-शे'र में ढल जाए किसी का चेहरा
मेरे इज़हार-ए-मोहब्बत का ये मेआ'र नहीं

तेरी इक नीची नज़र उम्र का सरमाया है
साक़िया मैं तिरे साग़र का तलबगार नहीं

यूँ भी हम दर्द को पहलू में छुपा लेते हैं
मुजरिम-ए-शौक़ हैं रुस्वा सर-ए-बाज़ार नहीं

अपनी मर्ज़ी से यहाँ मुझ को बहा ले जाए
तेज़ इतनी तो अभी वक़्त की रफ़्तार नहीं

आप के दर्द से रिश्ता है मिरे दिल का 'रईस'
कौन कहता है कि मैं आप का ग़म-ख़्वार नहीं
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Raees Akhtar
साज़-ए-फ़ुर्क़त पे ग़ज़ल गाओ कि कुछ रात कटे
प्यार की रस्म को चमकाओ कि कुछ रात कटे

जब ये तय है कि ग़म-ए-इश्क़ बहुत काफ़ी है
ग़म का मफ़्हूम ही समझाओ कि कुछ रात कटे

सुब्ह के साथ ही हम ख़ुद भी बिखर जाएँगे
दो-घड़ी और ठहर जाओ कि कुछ रात कटे

दामन-ए-दर्द पे बिखरे हुए आँसू की तरह
मेरी पलकों पे भी लहराओ कि कुछ रात कटे

ज़िक्र-ए-गुलज़ार सही क़िस्सा-ए-दिल-दार सही
ज़ख़्म के फूल ही महकाओ कि कुछ रात कटे

एक एक दर्द के सीने में उतर कर देखो
एक एक साँस में लहराओ कि कुछ रात कटे

दिल की वादी में है तारीक घटाओं का हुजूम
चाँदनी बन के निखर जाओ कि कुछ रात कटे

क़ातिल-ए-शहर से बच कर मैं अभी आया हूँ
मैं अकेला हूँ चले आओ कि कुछ रात कटे

फ़र्श किरनों का बिछा देगी सहर आ के 'रईस'
दिल के ज़ख़्मों को भी चमकाओ कि कुछ रात कटे
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Raees Akhtar
लब पे इक नाम जब आता है तो रो लेते हैं
कोई जी-भर के रुलाता है तो रो लेते हैं

चाँदनी-रात की महकी हुई तन्हाई में
साज़-ए-ग़म पर कोई गाता है तो रो लेते हैं

नूर-ओ-निकहत की फ़ज़ाओं का दिल-आवेज़ समाँ
दिल में जब आग लगाता है तो रो लेते हैं

आज भी हादसा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत की क़सम
प्यार जब कोई बढ़ाता है तो रो लेते हैं

आरज़ूओं की उजाड़ी हुई महफ़िल में कहीं
शम-ए-दिल कोई जलाता है तो रो लेते हैं

कोई अंजान मसीहा कोई ग़म का साथी
क़िस्सा-ए-दर्द सुनाता है तो रो लेते हैं

दिल की गलियों से तसव्वुर की हसीं वादी से
जब कोई रूठ के जाता है तो रो लेते हैं

जाने किस ज़ख़्म-ए-मोहब्बत का ख़याल आता है
प्यार से कोई बुलाता है तो रो लेते हैं

अब भी उम्मीद के सोए हुए ज़ख़्मों को 'रईस'
जब कोई आ के जगाता है तो रो लेते हैं
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Raees Akhtar
ज़िंदगी की चाहत में ज़िंदगी से मत खेलो
रौशनी के दीवानो रौशनी से मत खेलो

ऐ बुतान-ए-बे-परवा कुछ ख़ुदा नहीं हो तुम
प्यार की ख़ुदाई में बंदगी से मत खेलो

आप ही ने कर डाला ज़िंदगी से बेगाना
आप ही तो कहते थे ज़िंदगी से मत खेलो

प्यार दिल का सौदा है अक़्ल दिल की बीमारी
दोस्ती के पर्दे में दोस्ती से मत खेलो

रौशनी की ख़्वाहिश में जल उठे न पैराहन
रौशनी में शो'ले हैं रौशनी से मत खेलो

तुम से कुछ नहीं मतलब हाँ मगर ख़िरद-मंदो
हम जुनूँ-परस्तों की आगही से मत खेलो

नग़्मा-ए-तमन्ना से ख़ून-ए-दिल टपकता है
इशरतों के मतवालो शाइ'री से मत खेलो

मेहर-ओ-माह रहते हैं तीरगी के सीने में
भूल कर 'रईस'-अख़्तर तीरगी से मत खेलो
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Raees Akhtar
हमें तो एक ही चेहरा दिखाई देता है
जिसे भी देखिए अपना दिखाई देता है

ये किस ने ऐसे उजालों की आरज़ू की थी
हर एक घर यहाँ जलता दिखाई देता है

नई सहर ने उजाले जनम दिए हैं मगर
ये ख़्वाब फिर भी अधूरा दिखाई देता है

यहाँ जो बाँटता फिरता है तिश्नगी का भरम
मुझे तो ख़ुद भी वो प्यासा दिखाई देता है

तलाश है मुझे उस मेहरबाँ की मुद्दत से
जो महफ़िलों में भी तन्हा दिखाई देता है

धुआँ है जलते हुए घर सुलगते नज़्ज़ारे
मैं क्या बताऊँ कि क्या क्या दिखाई देता है

इसे भी कीजिए अपने गिरोह में शामिल
ये शख़्स अपने ही जैसा दिखाई देता है

ये कैसी आग में हम लोग जल रहे हैं 'रईस'
हर इक वजूद पिघलता दिखाई देता है
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Raees Akhtar