न ख़ुद को नज़र में गिरा ही सके हम
न ख़ुद को कही पे बिठा ही सके हम
बिना दोस्ती के कटी उम्र सारी
न तो ज़ख़्म दिल के दिखा ही सके हम
रही आँख नम हर समय यार दिल की
न ख़ुद को नज़र में झुका ही सके हम
न हँसते हमें तो न होता यही ग़म
रहा जो कि सब को रुला ही सके हम
न थी शोर करने कि आदत हमें तब
न ही तब किसी आँख आ ही सके हम
गले से लगाया पनस को वही पर
जहाँ आबरू को लुटा ही सके हम
रही यार कोशिश यही हर समय बस
न ख़ुद को दिलों में बिठा ही सके हम
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