इश्क़ क्या है मौत का इक सिलसिला है
जो गया है पास इसके मर गया है
राख़ या फिर ख़ाक होकर के रहोगे
इश्क़ करके बस धुआँ ही बच सका है
जीत जाओ मात खाओ फिर लगाओ
इश्क़ क्या है यार जीवन में जुआ है
प्यार है तो प्यार दे पर भीख मत दे
ज़ख़्म मैंने ख़ुद ही अपना सिल लिया है
बात बस इतनी हक़ीक़त है जहाँ की
इश्क़ में हर कोई ही पल पल मरा है
रह रहा है क्यों निराशा के तले तू
गिर के उठना ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा है
साधना पूजा तपस्या अब नहीं है
इश्क़ बन बैठा जहाँ में अब सज़ा है
मौत आख़िर सत्य है जानो ऋषभ तुम
हर जगह हर ग्रंथ में ये ही लिखा है
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