यही इश्क़ का तो उसूल है कभी इंतिज़ार किया करो
रहे उम्र भर यही सिलसिला दिल-ए-बे-क़रार किया करो
नहीं है निगाहों में मंज़िलें तो निभानी होगी ये जुस्तजू
इसी आरज़ू की ही चाह में ग़म-ए-रोज़गार किया करो
मिरे साथ तुम भी दुआ करो रहे एतिबार ज़फ़ाओं पर
हो क़रीब वो किसी और के तो भी एतिबार किया करो
रहा हाल-ए-दिल तो हिजाब में न ख़बर रही इसी राज़ की
जो सुकूत था कभी पर्दे में उसे आश्कार किया करो
जो फ़ितूर में थे कभी यहाँ कहीं बस्तियाँ न जला दे वो
न रहे चमन से कोई गिला नया ख़ार-ज़ार किया करो
Read Full