हम उनसे और वो हमसे सुख़न में बात करते हैं
कि जैसे चीख कर मुर्दे कफ़न में बात करते हैं
मोहब्बत आज भी आज़ाद है इस जाति बंधन से
अभी भी फूल काटों से चमन में बात करते हैं
इसे गर छोड़ देंगे हम तो फिर तन्हा जिएगा ये
मिरे कुछ ज़ख़्म ऐसी भी बदन में बात करते हैं
वो बिजली जब तड़पती है तो फिर बादल भी रोता है
ये दुनिया को भिगो कर के दुखन में बात करते हैं
मैं जब सिगरेट जलाता हूँ तो ये मुझको बुझाती है
मगर जल बुझ के हम दोनों तपन में बात करते हैं
मेरा मन्दिर, मेरी मस्जिद मेरा ये चर्च गुरुद्वारा
ये हँस हँस कर यहीं मेरे वतन में बात करते हैं
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