हमारे दिल को वो ऐसा नशा बेजोड़ देते हैं
मदिर नैनों से जब मदिरा पिलाकर छोड़ देते हैं
कोई मौक़ा नहीं वो छोड़ते बदनाम करने का
हर इक शक की सुई को बस मुझी पर मोड़ देते हैं
वो अपनी शातिराना हरकतों से हैं लबालब यूँ
कि मेरी हर शराफ़त का मुक़द्दर फोड़ देते हैं
ग़ज़ब है मैं तो उनकी कश्तियाँ लाता हूँ साहिल पर
वो बदले में मुझे लाकर भँवर में छोड़ देते हैं
बहाने-बाज़ियों से बाज़ वो आते नहीं बिलकुल
कहीं की बात को लाकर कहीं पर जोड़ देते हैं
मैं अपने दिल के ज़ख़्मों को भुला पाता हूँ जैसे ही
पलट कर वो इसे फिर एक दम झंझोड़ देते हैं
अदावत भी उन्हें मुझसे मुहब्बत भी उन्हें मुझसे
ये कह कह कर वो मेरे दिल की नस नस तोड़ देते हैं
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