ख़ुद-ब-ख़ुद मिट के दिखाने पे तुली है दुनिया
ख़ुद को गर्दिश में मिलाने पे तुली है दुनिया
ख़ुद-ब-ख़ुद मिट के दिखाने पे तुली है दुनिया
रोज़ कटते हैं हज़ारों ही शजर हरियाले
आदमी रोक न पाया वो इरादे काले
सिर्फ़ पैसों को कमाने पे तुली है दुनिया
ख़ुद-ब-ख़ुद मिट के दिखाने पे तुली है दुनिया
कितने नादान यहाँ लोग हुए जाते हैं
दूध पीकर के वो गउओं का उन्हें खाते हैं
अपनी माँ तक को नशाने पे तुली है दुनिया
ख़ुद-ब-ख़ुद मिट के दिखाने पे तुली है दुनिया
कारख़ानों के धुँए घोंट रहे दम पे दम
सड़ते मलबों से पटी नदियाँ हुईं हैं कम-कम
मौत सीने से लगाने पे तुली है दुनिया
ख़ुद-ब-ख़ुद मिट के दिखाने पे तुली है दुनिया
मूल्य गिरते ही चले जाते हैं नैतिकता के
माँ-पिता बंधु बहिन बढ़ती अमानुषता के
सब की अस्मत ही लुटाने पे तुली है दुनिया
ख़ुद-ब-ख़ुद मिट के दिखाने पे तुली है दुनिया
अब तो फ़ैशन का ज़माना ये बताते हैं लोग
मरमरी जिस्म खुलेआम दिखाते हैं लोग
तन से कपड़ों को हटाने पे तुली है दुनिया
ख़ुद-ब-ख़ुद मिट के दिखाने पे तुली है दुनिया
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