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आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ़ हवा देते हैं

Mohammad Alvi

रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद

Akbar Allahabadi

पूरी कायनात में एक कातिल बीमारी की हवा हो गई
वक्त ने कैसा सितम ढाया कि दूरियाँ ही दवा हो गयीं

Unknown

मिरी रूह की हक़ीक़त मिरे आँसुओं से पूछो
मिरा मज्लिसी तबस्सुम मिरा तर्जुमाँ नहीं है

Mustafa Zaidi

हम अम्न चाहते हैं मगर ज़ुल्म के ख़िलाफ़
गर जंग लाज़मी है तो फिर जंग ही सही

Sahir Ludhianvi

गुनाहगार को इतना पता तो होता है
जहाँ कोई नहीं होता ख़ुदा तो होता है

Waseem Barelvi

मैं तुझे बज़्म में लाऊँगा मेरी जान मगर
लोग जब दूसरे चेहरों पे फ़िदा हो जाएँ

Ashu Mishra

ये आरज़ू भी बड़ी चीज़ है मगर हमदम
विसाल-ए-यार फ़क़त आरज़ू की बात नहीं

Faiz Ahmad Faiz

लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं
मैं ने उस हाल में जीने की क़सम खाई है

Ameer Qazalbash

तुम मिरी आँख के तेवर न भुला पाओगे
अन-कही बात को समझोगे तो याद आऊँगा

Wasi Shah

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग-ओ-साज़-हा मस्त-ए-तरब
शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है

Mirza Ghalib

अपने हाथों की लकीरें न बदलने पाई
ख़ुश-नसीबों से बहुत हाथ मिलाए मैंने

Nusrat Siddiqui

मुझसे जो मुस्कुरा के मिला हो गया उदास
ताज़ा हवा की खिड़कियों को जंग लग गई

Siddharth Saaz

दूर हूं लेकिन बता सकता हूं उन की बज़्म में
क्या हुआ क्या हो रहा है और क्या होने को है

Shakeel Badayuni

सफ़र हालाँकि तेरे साथ अच्छा चल रहा है
बराबर से मगर एक और रास्ता चल रहा है

Shariq Kaifi

ख़ुदा ने चाहा तो सब इंतिज़ाम कर देंगे
ग़ज़ल पे आए तो मतले में काम कर देंगे

Shuja Khawar

ख़ुदा के लिए अब न उससे मिलो तुम
तुम्हें अब हमारी जलन की क़सम है

Tanoj Dadhich

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

Ahmad Faraz

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

Rahat Indori

पारा-ए-दिल है वतन की सरज़मीं मुश्किल ये है
शहर को वीरान या इस दिल को वीराना कहें

Majrooh Sultanpuri