दुल्हन बन कर वो तैयार हुई है
मेरी ताज़ी ताज़ी हार हुई है
अश़्कों अब बह जाओ तुम थोड़ा सा
रस्म-ओ-रुख़सत में दरकार हुई है
अपनों ने जब जब खींची खंजर तो
हर तलवार फ़क़त बेकार हुई है
'जौन' चलो मस्जिद है हमको जाना
मक़तल है हज़रत पर वार हुई है
दुल्हन के जोड़े में देखा उसको
दर्द मिरी बिल्कुल हमवार हुई है
वो अश्क लिये आंखों में यादों में
अब जाकर ज़हनी बीमार हुई है
क्या उम्दा बातें और अदाकारी थी
तू ख़ुद से अच्छी किरदार हुई है
आँखें उनपर से हटती तो कैसे
बरसों बाद ये आंखें चार हुई है
रोती बोटी रोटी के खातिर, अब
वो नीलाम भरे बाज़ार हुई है
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