"बैठे हैं बिस्तर पर ज़िन्दगी से लेके ख्वाब जो सुहाने थे"
बैठे हैं बिस्तर पर ज़िन्दगी से लेके ख्व़ाब जो सुहाने थे
हर मंज़िल, हर रास्तों से रिश्ता है हमारा सब जाने पहचाने थे
एक पल के लिए भी दूर हुए तो लगा मौत आ जायेगी
अरे यह सब बातें करने वाले इश्क़ में दीवाने थे
हमें खबर थी मुकम्मल सपनो की
हमें खबर थी झूठे अपनों की
जो रहते मेरे घर में थे पर इनके कही और ठिकाने थे
गुज़रा आज का दिन भी यु ही मर्ज़ में मेरा
वह आये तो सही पर देखो, ना आने के कितने बहाने थे
यूँ तो 'सोहैल' चुप रह लिया कर के रिश्ते बच जाए तेरे
इस बार भी तोड़ चुके है रिश्ता वो
जो तेरे हुनर से अनजाने थे
बैठे है बिस्तर पर ज़िन्दगी से लेके ख्वाब जो सुहाने थे
Read Full