इस तरह गिर गई हूँ उल्फ़त में
इश्क़ हो ही गया हक़ीक़त में
मान बैठी थी जिसको अपना मैं
वो मिरा था नहीं हक़ीक़त में
तूने कुछ आरज़ू न की वरना
जान देती तिरी मुहब्बत में
तुमने देखा नहीं सिकंदर को
क्या रखा है यहाँ के दौलत में
इश्क़ ज़िंदा है इन ही लोगों से
नाचते फिरते हैं जो वहशत में
है वही कामयाब दुनिया में
मिट गया जो तिरी अक़ीदत में
आज कल नींद भी नहीं आती
कोई तो बात है मुहब्बत में
अजनबी बन के देखना तेरा
डाल देता है मुझको हैरत में
चूर है ग़म से दिल सफ़ीना का
मुस्कराती है बस मुरव्वत में
Read Full