Aleem Usmani

Aleem Usmani

@aleem-usmani

Aleem Usmani shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Aleem Usmani's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

12

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
गर्दिश-ए-मय का इस पर न होगा असर मस्त आँखों का जादू जिसे याद है
वह नसीम-ए-गुलिस्ताँ से बहलेगा क्या तेरे आँचल की ख़ुशबू जिसे याद है

तिश्नगी की वो शिद्दत को भूलेगा क्या धूप की वो तमाज़त को भूलेगा क्या
तेरी बे-फ़ैज़ आँखें जिसे याद हैं तेरा बे-साया गेसू जिसे याद है

कोई मुम्ताज़ है और न शाह-ए-जहाँ सोज़ और साज़ है कुछ अलग ही यहाँ
ताज-महलों के वो ख़्वाब देखेगा क्या संग-ए-मरमर का ज़ानू जिसे याद है

उस को दुख-दर्द कोई छलेगा नहीं उस की दुनिया का सूरज ढलेगा नहीं
तेरे बचपन की ख़ुशियाँ जिसे याद हैं तेरे दामन का जुगनू जिसे याद है

ऐ 'अलीम' आफ़तों के ये लश्कर हैं क्या एक महशर नहीं लाख महशर हैं क्या
उस को फ़ित्नों की परवाह बिल्कुल नहीं तिरा इक एक घुंघरू जिसे याद है
Read Full
Aleem Usmani
अब जाम निगाहों के नशा क्यूँ नहीं देते
अब बोल मोहब्बत के मज़ा क्यूँ नहीं देते

तुम खोल के ज़ुल्फ़ों को उड़ा क्यूँ नहीं देते
तुम शान घटाओं की घटा क्यूँ नहीं देते

इक घूँट की उम्मीद समुंदर से नहीं जब
फिर आग समुंदर में लगा क्यूँ नहीं देते

है मुंतज़िर-ए-हश्र बहुत देर से दुनिया
घुंघरू तिरे पैरों के सदा क्यूँ नहीं देते

ये धूप रहेगी तो ये रुस्वाई करेगी
सूरज को गुनहगार बुझा क्यूँ नहीं देते

तुम दूसरे लोगों पे न रक्खा करो इल्ज़ाम
हर बात में तुम मेरी ख़ता क्यूँ नहीं देते

क़ातिल का है क्या नाम ये सब पूछ रहे हैं
क्या हम भी हैं हमनाम बता क्यूँ नहीं देते

तुम को मिरे अंदाज़-ए-वफ़ा से है शिकायत
तुम मुझ को वफ़ा कर के दिखा क्यूँ नहीं देते

जो लोग 'अलीम' अपनी जगह मीर बने हैं
अशआ'र को वो तर्ज़-ए-अदा क्यूँ नहीं देते
Read Full
Aleem Usmani
मौत आई है ज़माने की तो मर जाने दो
कम से कम उस की जवानी तो गुज़र जाने दो

जाग उट्ठेंगे हम अभी ऐसी ज़रूरत क्या है
धूप दीवार से कुछ और उतर जाने दो

मुद्दतें हो गईं इक बात मिरे ज़ेहन में है
सोचता हूँ तुम्हें बतलाऊँ मगर जाने दो

गर्दिश-ए-वक़्त का कितना है कुशादा आँगन
अब तो मुझ को इसी आँगन में बिखर जाने दो

ख़ुश-नसीबी से इधर आतिश-ए-ग़म ख़ूब है तेज़
दोस्तो अब मिरी हस्ती को निखर जाने दो

कोई मंज़िल नहीं रह जाएगी सर होने को
आदमी को ज़रा अल्लाह से डर जाने दो

तोड़ दो बढ़ के ये मफ़रूज़ा वफ़ाओं के हिसार
दिल की आवाज़ जिधर जाए उधर जाने दो

वक़्त के हाथ का फेंका हुआ पत्थर हूँ मैं
अब तो मुझ को किसी शीशे में उतर जाने दो

उलझनें ख़त्म न क्यूँ होंगी ज़माने की 'अलीम'
उन के उलझे हुए गेसू तो सँवर जाने दो
Read Full
Aleem Usmani
वो अर्ज़-ए-ग़म पे मश्वरा-ए-इख़्तिसार दे
कूज़े में कैसे कोई समुंदर उतार दे

दुनिया हो आख़िरत हो वो सब को सँवार दे
तौफ़ीक़-ए-इश्क़ जिस को भी पर्वरदिगार दे

फिर दावत-ए-करम निगह-ए-शो'ला-बार दे
अल्लाह मुस्तक़िल मुझे सब्र-ओ-क़रार दे

जिस फूल का भी देखिए दामन है तार तार
कितना बड़ा सबक़ हमें फ़स्ल बहार दे

दर्द-ए-जिगर शिकस्ता-दिली बे-क़रारियाँ
क्या क्या न लुत्फ़ मुझ को तिरा इंतिज़ार दे

वाइ'ज़ उसे बताओ न जन्नत के तुम मज़े
ख़ुल्द-ए-बरीं का लुत्फ़ जिसे कू-ए-यार दे

कंगन उधर कलाई में घूमा तो यूँ लगा
आवाज़ मुझ को गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार दे

चेहरे पे वो सजाए है मासूमियत का नूर
अब कौन उस को ज़हमत-ए-बोस-ओ-कनार दे

मैं हूँ शहीद-ए-राह-ए-मोहब्बत मगर 'अलीम'
मेरा ग़लत पता मिरी लौह-ए-मज़ार दे
Read Full
Aleem Usmani
बादा-ख़ाने की रिवायत को निभाना चाहिए
जाम अगर ख़ाली भी हो गर्दिश में आना चाहिए

आज आना है उन्हें लेकिन न आना चाहिए
वा'दा-ए-फ़र्दा उसूलन भूल जाना चाहिए

तर्क करना चाहिए हरगिज़ न रस्म-ए-इंतिज़ार
मुंतज़िर को उम्र भर शमएँ जलाना चाहिए

जज़्ब कर लेते हैं अच्छी सूरतों को आइने
आइनों से किया तुम्हें आँखें मिलाना चाहिए

मेरे उस के बीच जो हालात की दीवार है
मुझ को उस दीवार में इक दर बनाना चाहिए

फिर करम-आगीं तबस्सुम में है पोशीदा सितम
होश-मंदों को पहेली बूझ जाना चाहिए

गर्दिश-ए-हालात से मायूस होना कुफ़्र है
उम्र भर इंसाँ को क़िस्मत आज़माना चाहिए

मेरी ग़ज़लें होंगी कल ना-महरमों के दरमियाँ
उस की ख़ुशबू मेरी ग़ज़लों में न आना चाहिए

हम तो क़ाइल ही नहीं महदूद-ए-उल्फ़त के 'अलीम'
हम को उल्फ़त के लिए सारा ज़माना चाहिए
Read Full
Aleem Usmani