Badr Wasti

Badr Wasti

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Badr Wasti shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Badr Wasti's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
कैसे कैसे रंग दिखाए रोज़ लबालब छागल शाम

चरवाहे को घर पहुँचाए पहरे-दार से घर छुड़वाए
आते जाते छेड़ती जाए दरवाज़े की साँकल शाम

सूरज के पापों की गठरी सर पर लादे थकी थकी सी
ख़ामोशी से मुँह लटकाए चल देती है पैदल शाम

बेहिस दुनिया-दारों को हो दुनिया की हर चीज़ मुबारक
ग़म-ज़ादों का सरमाया हैं आँसू आहें बोतल शाम

सूरज के जाते ही अपने रंग पे आ जाती है दुनिया
जाने-बूझे चुप रहती है शब के मोड़ पे कोमल शाम

साँसों की पुर-शोर डगर पे रक़्स करेगा सन्नाटा
चुपके से जिस रोज़ अचानक छनका देगी पायल शाम

'बद्र' तुम्हें क्या हाल सुनाईं इतना ही बस काफ़ी है
तन्हाई में कट जाती है जैसे-तैसे मख़मल शाम
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Badr Wasti
किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच
रोज़ अदालत में चलता है खोटा सिक्का झूटा सच

ऊँचे ख़्वाबों के ताजिर से कोई नहीं ये पूछने वाला
कौन जवानों के चेहरों पर लिख देता है पीला सच

हम से क्या पूछोगे साहब शहर कभी का टूट चुका
शाम की मैली चादर पर है टुकड़े टुकड़े फैला सच

उन आँखों में मुस्तक़बिल के ख़्वाब भला क्या उतरेंगे
जिन आँखों ने देख लिया है वक़्त से पहले नीला सच

उस के बेटा बेटी कॉलेज उसी तरफ़ से जाते हैं
रात को जिस ने बीच सड़क पर फेंका है इक गीला सच

सब ने हम को ख़ुश-हाली के ख़्वाब दिखा कर छोड़ दिया
गलियों गलियों घूम रहा है धूल में लिपटा नंगा सच

'बद्र' तुम्हारी राह में आ कर दुनिया जाल बिछाएगी
जो कहते हो कहते रहना छोड़ न देना लिखना सच
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Badr Wasti
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
हमारे शहर में काली हवा ने पर निकाले हैं

हमें शब काटने का फ़न विरासत में मिला हम ने
कभी पत्थर पकाए हैं कभी सपने उबाले हैं

दिलों में ख़ौफ़ है उस का नज़र है उस की रहमत पर
गुनाहगारों में शामिल हैं मगर अल्लाह वाले हैं

लड़े थे साथ मिल कर हम चराग़ों के लिए लेकिन
हमारे घर अँधेरे हैं तुम्हारे घर उजाले हैं

तुम्हारी याद से अच्छा नहीं होता कोई आलम
मयस्सर जिन को हो जाए बड़ी तक़दीर वाले हैं

मोहब्बत आख़िरी हल है हमारे सब मसाइल का
मगर हम ने तो नफ़रत के संपोले दिल में पाले हैं

भड़कती आग तो दो चार दिन में बुझ गई थी 'बद्र'
अभी तक शहर के मंज़र न जाने क्यूँ धुआंले हैं
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Badr Wasti
तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
ये मैं नहीं कोई दूसरा है तो मैं कहाँ हूँ

हमारी पलकों के ख़्वाब आख़िर उदास क्यूँ हैं
अगर ये तुम को ही सोचना है तो मैं कहाँ हूँ

वो मेरी तस्वीर मेरी ख़ुश्बू ख़याल मेरा
तुम्हारा कमरा सजा हुआ है तो मैं कहाँ हूँ

किसी ने देखा तो क्या कहेगा तुम ही बताओ
तुम्हारे हाथों में आईना है तो मैं कहाँ हूँ

तुम्हारी चाहत के ज़ख़्म शायद महक रहे हैं
सुना है मौसम हरा-भरा है तो मैं कहाँ हूँ

हरा जमेगा कि सुर्ख़ जोड़ा ये कारचोबी
तुम्हें ये दिल ही से पूछना है तो मैं कहाँ हूँ

ये तुम भी सोचो कि 'बद्र' आख़िर उदास क्यूँ है
चराग़ इतना बुझा बुझा है तो मैं कहाँ हूँ
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Badr Wasti