मैं अपने ग़म छुपाने के बहाने ढूँढ लेती हूँ
हाँ अक्सर मुस्कुराने के बहाने ढूँढ लेती हूँ
क़फ़स में क़ैद हूँ माना मगर चाहत है उड़ने की
परों को फड़फड़ाने के बहाने ढूँढ लेती हूँ
बरसता देखकर सावन मचल जाता है मन मेरा
तभी तो भीग जाने के बहाने ढूँढ लेती हूँ
भुला पाई पुरानी बात मैं कोई नहीं लेकिन
तेरी यादें भुलाने के बहाने ढूँढ लेती हूँ
तेरी रहमत से बनता है मुक़द्दर आज तक मेरा
तेरे दर सर झुकाने के बहाने ढूँढ लेती हूँ।
नया जब ज़िंदगी ये राग ग़म का छेड़ देती है
ग़ज़ल फिर गुनगुनाने के बहाने ढूँढ लेती हूँ
मनाने के लिए 'दिव्या' यकीं है लौट आओगे
मैं तुमसे रूठ जाने के बहाने ढूँढ लेती हूँ
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