Ehtisham Hasan

Ehtisham Hasan

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Ehtisham Hasan shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ehtisham Hasan's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
यूँ समाया है कि अब सर से निकलने का नहीं
मैं जो चाहूँ भी तो इक डर से निकलने का नहीं

मैं ने जो ख़ौफ़ पिरोया था रगों में अपनी
ऐसा बैठा है कि अंदर से निकलने का नहीं

बाद कोशिश के नतीजा ये निकाला मैं ने
ज़िंदगी मैं तिरे चक्कर से निकलने का नहीं

खींच लाते हैं हक़ीक़त में हवादिस वर्ना
आदमी ख़्वाब के मेहवर से निकलने का नहीं

सर पटख़ता नहीं पिंजरे में परिंदा यूँही
शौक़-ए-परवाज़ कभी पर से निकलने का नहीं

इक सड़क और मिरा आठवाँ दसवाँ चक्कर
और मुझे इल्म है वो घर से निकलने का नहीं

अपने अंदर यूँ छुपाए हैं सनम पत्थर ने
बुत कोई तेशा-ए-आज़र से निकलने का नहीं

ग़म-ए-दौराँ भी है यूँ जैसे मिरा यौम-ए-हिसाब
मैं तो दुनिया में भी महशर से निकलने का नहीं

धोंस देता है ये सूरज मुझे हर शाम 'हसन'
वो जो डूबा तो समुंदर से निकलने का नहीं
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Ehtisham Hasan
अक़ब में दरमियाँ और सामने वाली नाशिस्तों पर
जहाँ देखा वहाँ थे आप ही सारी नाशिस्तों पर

वो जब स्टेज पर आया तो पीछे बैठने वाले
चले आए क़तारें तोड़ कर अगली नाशिस्तों पर

ख़बर ही न मिली उन को तमाशा ख़त्म होने की
तमाशाई झगड़ते रह गए ख़ाली नाशिस्तों पर

गले में दिल उछल कर आ गया सब अहल-ए-महफ़िल का
जब उस ने बे-नियाज़ी से नज़र डाली नाशिस्तों पर

उन्हें हर हुक्म सुन कर शाह की ताईद करनी थी
रियाज़त काट कर पहुँचे जो दरबारी नाशिस्तों पर

यहाँ पर हर किसी को हुक्मराँ होने की ख़्वाहिश है
नज़र हिज़्ब-ए-मुख़ालिफ़ की है सरकारी नाशिस्तों पर

जो देखी ज़ीस्त के स्टेज पर अपनी अदाकारी
मैं रोया बारी बारी बैठ कर ख़ाली नाशिस्तों पर

'हसन' हम को भी अपनी शाइरी पर दाद मिल जाती
हमारे दोस्त जा कर सो गए पिछली नाशिस्तों पर
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Ehtisham Hasan
सीधे-साधे लोग थे पहले घर भी सादा होता था
कमरे कम होते थे और दालान कुशादा होता था

देख के वो घर गाँव वाले सोग मनाया करते थे
सहन में जो दीवार उठा कर आधा आधा होता था

मुस्तक़बिल और हाल के आज़ारों के साथ निमटने को
चौपालों में माज़ी की यादों का इआदा होता था

दुख चाहे जिस का भी हो वो मिल कर बाँटा जाता था
ग़म तो आज के जैसे थे एहसास ज़ियादा होता था

लड़के बाले मीलों पैदल पढ़ने जाया करते थे
पास है जो स्कूल वो पहले दूर-उफ़्तादा होता था

थक जाता कोई तो मिल कर बोझ को बाँटा करते थे
दोस्त ने दोस्त का बस्ता अपने ऊपर लादा होता था

इतनी शर्म तो होती थी आँखों में पहले वक़्तों में
गली में सर नीचा रखता जो बाहर दादा होता था

सोच समझ कर होते थे तब साथ निभाने के वा'दे
लेकिन जो कर लेते थे वो वा'दा पूरा होता था

ख़त में दिल और तीर बना कर मिन्नत करनी पड़ती थी
यार बहुत मुश्किल से मिलने पर आमादा होता था

देख 'हसन' किस मंसब से ले आया इश्क़ फ़क़ीरी तक
जिस से पूछा अपने दौर में वो शहज़ादा होता था
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