Ejaz Quraishi

Ejaz Quraishi

@ejaz-quraishi

Ejaz Quraishi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ejaz Quraishi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
नाम वो मेरा पुकारे जा रहा था मैं कहाँ था
हादिसा ये ख़ूबसूरत कब हुआ था मैं कहाँ था

ढूँढता मैं फिर रहा था जिस को सारे शहर भर में
वो तो मेरे रू-ब-रू बैठा हुआ था मैं कहाँ था

मेरी बाज़ी को पलटने के लिए तय्यार थे सब
सामने मेरे ये सब कुछ हो रहा था मैं कहाँ था

आज वा'दे से मुकरता फिर रहा है छुप रहा है
उस ने सब के सामने वा'दा किया था मैं कहाँ था

ग़म भुलाने के लिए सब लोग बैठे थे वहाँ पर
मेरे जैसों के लिए ही मै-कदा था मैं कहाँ था

अब न शायद मिल सकें इक दूसरे से यूँ कभी हम
जाते जाते उस ने मुझ से ये कहा था मैं कहाँ था

मेरा दामन क्यों रहा 'एजाज़' ख़ाली रहमतों से
झोलियाँ अल्लाह सब की भर रहा था मैं कहाँ था
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Ejaz Quraishi
जाने ऐसी ठान कर बैठा है क्या मेरे लिए
आज माँगे जा रहा है वो दुआ मेरे लिए

मुज़्तरिब दिल को मिरे आराम आ ही जाएगा
कीजिए तज्वीज़ कोई तो दवा मेरे लिए

मेरी क़िस्मत में तो लिक्खे हैं ग़मों के सिलसिले
ख़ुश रहा कर तू न अपना दिल दुखा मेरे लिए

हुस्न की ताबानियों को मैं भी तो देखूँ ज़रा
तू रुख़-ए-ज़ेबा से ये पर्दा हटा मेरे लिए

भूल जाता हूँ सभी कुछ याद रहता कुछ नहीं
बन गया है एक ये भी मसअला मेरे लिए

हिज्र आँसू मय-कशी रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ
या-इलाही क्या यही कुछ रह गया मेरे लिए

संग-दिल मशहूर था जो शहर भर में दोस्तो
मुझ को हैरत है कि वो भी रो पड़ा मेरे लिए

ये क़यामत के मुझे आसार लगते हैं मियाँ
चलते चलते वो अचानक रुक गया मेरे लिए

तंगी-ए-दामन से मैं 'एजाज़' घबराया नहीं
खोल देगा और दरवाज़े ख़ुदा मेरे लिए

आज साक़ी देख कर 'एजाज़' मेरी तिश्नगी
जाम-ओ-साग़र ले के घर में आ गया मेरे लिए
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Ejaz Quraishi
जिधर भी देखिए हर सू हमें अग़्यार मिलते हैं
जहाँ पर हम क़दम रक्खें वहीं पर ख़ार मिलते हैं

सुनाऊँ माजरा-ए-ग़म किसे इस ग़म के आलम में
कि इस नगरी के बासी जान से बेज़ार मिलते हैं

हज़ारों साथ देते हैं ख़ुशी के वक़्त में पैहम
कि जब क़िस्मत बिगड़ती है कहाँ फिर यार मिलते हैं

ख़िज़ाँ ने कर दिया पामाल या-रब गुलशन-ए-हस्ती
कि हर जानिब हमें उजड़े हुए गुलज़ार मिलते हैं

न घबरा ऐ दिल-ए-मुज़्तर ये दस्तूर-ए-ज़माना है
मोहब्बत करने वालों को फ़क़त आज़ार मिलते हैं

नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में नए ग़ुंचे खिलाती है
सभी अहल-ए-मोहब्बत अहल-ए-दिल सरशार मिलते हैं

कभी ऐसा भी एजाज़-ए-मोहब्बत रंग दिखाता है
तलब की राह में अक्सर हमें ग़म-ख़्वार मिलते हैं
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Ejaz Quraishi
शब-ए-वा'दा अंधेरा छा गया क्या तुम न आओगे
फ़लक पर चाँद भी कजला गया क्या तुम न आओगे

तुम्हारा हिज्र आफ़त ढा गया क्या तुम न आओगे
हमारा दिल बहुत घबरा गया क्या तुम न आओगे

चमन में हर तरफ़ गुलहा-ए-रंगीं मुस्कुरा उठे
बहारों का ज़माना आ गया क्या तुम न आओगे

हमारी जान पर बन आती है दौर-ए-मोहब्बत में
जुनून-ए-दिल क़यामत ढा गया क्या तुम न आओगे

कहाँ तक इंतिज़ार-ए-जल्वा में तड़पें मिरी आँखें
दिल-ए-बेताब अब घबरा गया क्या तुम न आओगे

मरीज़-ए-दर्द-ओ-ग़म पर नज़्अ' का आलम हुआ तारी
सर-ए-बालीं ज़माना आ गया क्या तुम न आओगे

सर-ए-मय-ख़ाना इक दुनिया चली आती है पीने को
वो देखो मस्त बादल छा गया क्या तुम न आओगे

दम-ए-आख़िर न थीं कुछ और बातें उस के होंटों पर
मरीज़-ए-ग़म यही कहता रहा क्या तुम न आओगे

तुम्हारी याद में 'एजाज़' अपने होश खो बैठा
उसे तन्हाई का ग़म खा गया क्या तुम न आओगे
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