Fahmida Mosarrat Ahmad

Fahmida Mosarrat Ahmad

@fahmida-mosarrat-ahmad

Fahmida Mosarrat Ahmad shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Fahmida Mosarrat Ahmad's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
बिन पिए इक ख़ुमार था क्या था
तेरा चेहरा बहार था क्या था

वो रह-ए-इश्क़ में जुनूँ अपना
दिल जो तुझ पर निसार था क्या था

वो मिरा वहम या हक़ीक़त थी
तेरी नज़रों में प्यार था क्या था

बज़्म में तेरी मेहरबाँ थे बहुत
मेरा उन में शुमार था क्या था

वक़्त-ए-रुख़्सत किसी की आँखों में
छाया कैसा ग़ुबार था क्या था

वो भी रोया था दर्द-ए-फ़ुर्क़त में
लग रहा अश्क-बार था क्या था

तेरे दिल में सदा खटकता रहा
बद-गुमानी का ख़ार था क्या था

कर के फिर मेरे ए'तिबार का ख़ून
जो गया है वो यार था क्या था

हम थे उलझन में आप भी चुप थे
कौन सर पर सवार था क्या था

मैं तो मर कर भी मुंतज़िर ही रही
वो तिरा इंतिज़ार था क्या था
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Fahmida Mosarrat Ahmad
दिल के क़िर्तास पे इक लफ़्ज़ मोहब्बत लिखना
जो कभी इश्क़ में की थी वो रियाज़त लिखना

लिखने बैठो जो कभी दिल की हिकायत कोई
नाम उस में मिरा तुम हस्ब-ए-रिवायत लिखना

पंखुड़ी फूल की लब आँख है गहरा सागर
अबरू हैं तेग़ से और चाल क़यामत लिखना

भूलने वाले अगर याद कभी आ जाऊँ
भीगी पलकों से फ़क़त अश्क-ए-नदामत लिखना

वैसे अख़्लाक़ की दो चार किताबें पढ़ कर
हम को आता ही नहीं हर्फ़-ए-सियासत लिखना

तिरे हाथों को जो मालिक ने क़लम सौंपा है
झूट को झूट सदाक़त को सदाक़त लिखना

तुम जिन्हें कहते हो काफ़र उन्हें आ कर देखो
कैसे करते हैं ये इंसान की ख़िदमत लिखना

ऐ ग़म-ए-इश्क़ मिरे पाँव के छाले गिन कर
दश्त-ए-उल्फ़त की ये मजबूर मसाफ़त लिखना

याद है पहली मोहब्बत की ख़ुमारी अब तक
वो दरख़्तों पे तिरा नाम 'मसर्रत' लिखना
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Fahmida Mosarrat Ahmad
वीरान सा अब हूँ जो मैं ऐसा तो नहीं था
होता था समुंदर कभी सहरा तो नहीं था

चेहरे पे रक़म था जो वो पढ़ ही नहीं पाया
सब जानता था इतना भी सादा तो नहीं था

आँगन में मिरे दिल के चली आई थी कल शाम
थी याद तुम्हारी कोई झोंका तो नहीं था

चुप-चाप तसव्वुर में चले आते किसी रोज़
सोचों पे मेरी जाँ कोई पहरा तो नहीं था

हम दर्द का अफ़्साना सुनाते उसे क्यूँ-कर
ज़ाहिर में जो अपना था पर अपना तो नहीं था

सब चल दिए मौजों के हवाले उसे कर के
माना कि भँवर में था वो डूबा तो नहीं था

वो जिस को था सीने का हर इक ज़ख़्म दिखाया
बातों पे मिरी उस को भरोसा तो नहीं था

कर के मुझे बर्बाद गया है वो सितमगर
गुलशन यूँही दिल का मिरे उजड़ा तो नहीं था

क्यों रोता है अब हिज्र में तेरे वो 'मसर्रत'
जाते हुए उस ने तुझे रोका तो नहीं था
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Fahmida Mosarrat Ahmad
गुज़री थी एक बार जो दिल की गली से मैं
दो-चार आज भी हूँ उसी बे-कली से मैं

बे-ज़ार इस क़दर हूँ ग़म-ए-आशिक़ी से मैं
मुझ से ज़रा ख़फ़ा है ख़ुशी और ख़ुशी से मैं

निकली हूँ जब से ढूँडने बे-लौस चाहतें
धोका ही खा रही हूँ बड़ी सादगी से मैं

मा'दूम उस की आँख से पहचान हो गई
जैसे कि मिल रही थी किसी अजनबी से मैं

जिंस-ए-वफ़ा जहान में नायाब क्यों हुई
रो रो के पूछती रही हर आदमी से मैं

अपनी ख़ुशी से वैसे बसर तो न कर सकी
नाराज़ भी नहीं हूँ मगर ज़िंदगी से मैं

मैं ने भी साफ़ लफ़्ज़ों में ग़म से ये कह दिया
पीछा छुड़ा के आई हूँ अफ़्सुर्दगी से मैं

मय-ख़ाना चल के रिंद का ख़ुद पूछता है हाल
मानूस इस तरह से हूँ अब मय-कशी से मैं

जाम-ओ-सुबू नहीं तिरी आँखों से अब पिला
ऐ साक़ी मर न जाऊँ कहीं तिश्नगी से मैं
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Fahmida Mosarrat Ahmad