Faizi Nizam Puri

Faizi Nizam Puri

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Faizi Nizam Puri shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Faizi Nizam Puri's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
ग़म-ए-जानाँ के सिवा कुछ हमें प्यारा न हुआ
हम किसी के न हुए कोई हमारा न हुआ

क्या उसी का है वफ़ा नाम-ए-मोहब्बत है यही
मेहरबाँ हम पे कभी वो सितम-आरा न हुआ

लाख तूफ़ान-ए-हवादिस ने क़दम थाम लिए
मेरी ग़ैरत को पलटना भी गवारा न हुआ

दिल वही दिल है हक़ीक़त की नज़र में ऐ दिल
सर्द जिस दिल में मोहब्बत का शरारा न हुआ

ढूँढता आएगा कल अहल-ए-मोहब्बत को यही
ग़म नहीं आज ज़माना जो हमारा न हुआ

अहल-ए-दुनिया ने मसर्रत ही मसर्रत चाही
हम को इस ग़म के सिवा कुछ भी गवारा न हुआ

जान दी है दिल-ए-ख़ुद्दार ने किस मुश्किल से
आज बालीं पे वो ख़ुद-बीन-ओ-ख़ुद-आरा न हुआ

आँख सू-ए-हरम-ओ-दैर कभी उठ जाती
इश्क़ की राह में ये भी तो गवारा न हुआ

ख़ाक छानी चमन-ओ-दश्त की बरसों 'फ़ैज़ी'
आह तस्कीन-ए-नज़र कोई नज़ारा न हुआ
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Faizi Nizam Puri
कोई तसव्वुर में जल्वा-गर है बहार दिल में समा रही है
नफ़स नफ़स गुनगुना रहा है नज़र नज़र मुस्कुरा रही है

झुकी झुकी सी निगाह-ए-क़ातिल हज़ार ग़म्ज़े दिखा रही है
न जाने जागा है बख़्त किस का ये किस को बिस्मिल बना रही है

नहीं है अब ताब-ए-ज़ब्त बाक़ी कहीं मैं तौबा न तोड़ बैठूँ
तिरा इशारा नहीं ये साक़ी तो क्यूँ घटा मुस्कुरा रही है

न पूछ हालत मरीज़-ए-ग़म की घड़ी में कुछ है घड़ी में कुछ है
तबीब तशवीश में पड़ा है क़ज़ा खड़ी मुस्कुरा रही है

मिरी शब-ए-ग़म का पूछना क्या अजीब पेश-ए-नज़र है मंज़र
ये ज़िंदगी झिलमिला रही है कि नींद तारों को आ रही है

ये हर अदा पाएमाल हो कर भी दिल को है ज़ौक़-ए-पाएमाली
क़दम क़दम पर तिरी जवानी अजीब फ़ित्ने जगा रही है

हवा कुछ ऐसी चली है 'फ़ैज़ी' तमीज़ अपनों की अब है मुश्किल
मिरी तमन्ना भी कुछ ख़फ़ा है वफ़ा भी दामन छुड़ा रही है
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Faizi Nizam Puri
फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी
फिर हदीस-ए-दिल सर-ए-महफ़िल बयाँ होने लगी

फिर किसी की शोख़ नज़रों ने किया झुक कर सलाम
फिर मोहब्बत साज़-ए-दिल पे नग़्मा-ख़्वाँ होने लगी

फिर किसी की याद आई फिर हुए आँसू रवाँ
फिर सितारों की चमक दिल पर गराँ होने लगी

फिर तसव्वुर में कोई आने लगा है बार-बार
फिर मिरी उम्मीद की दुनिया जवाँ होने लगी

फिर चमन में ग़ुंचा-ए-नौरस ने लीं अंगड़ाइयाँ
फिर सुरूद-अफ़ज़ा बहार-ए-गुलिस्ताँ होने लगी

फिर पुकारा चाँद-तारों ने मुझे शाम-ए-फ़िराक़
फिर निगाह-ए-शौक़ नज़्र-ए-आसमाँ होने लगी

फिर किसी का दामन-ए-रंगीं है मेरा हाथ है
फिर दिल-ए-पुर-शौक़ की हसरत अयाँ होने लगी

फिर समाया है मिरी नज़रों में वो माह-ए-मुबीं
फिर निगाह-ए-दिल जवाब-ए-आसमाँ होने लगी

फिर घटा उठने लगी तौबा के फिर लाले पड़े
फिर ख़ुशामद तेरी ऐ पीर-ए-मुग़ाँ होने लगी

फिर चला दीवाना 'फ़ैज़ी' कू-ए-जानाँ की तरफ़
फिर जुनून-ए-इश्क़ की हालत अयाँ होने लगी
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Faizi Nizam Puri
गुलों के चेहरा-ए-रंगीं पे वो निखार नहीं
बहार आई मगर आलम-ए-बहार नहीं

जो हाथ आता है दामन तो छोड़ देता हूँ
जुनूँ-नवाज़ अभी मौसम-ए-बहार नहीं

किसी की याद का आलम न पूछिए मुझ से
कभी क़रार है दिल को कभी क़रार नहीं

ये बाँकपन ये अदा ये शबाब का आलम
तुम आ गए तो किसी का अब इंतिज़ार नहीं

बहार पर भी ख़िज़ाँ ही का रंग ग़ालिब है
हवा ज़माने की गुलशन को साज़गार नहीं

हमारे सामने वो हैं कहीं ये ख़्वाब न हो
अब अपनी आँखों पे भी हम को ए'तिबार नहीं

ख़ुद आ गए हैं सिमट कर निगाह में जल्वे
विसाल-ए-दोस्त है ये रंज-ए-इंतिज़ार नहीं

मिरा मज़ाक़ उड़ाता है आईना लेकिन
मिरी हक़ीक़त-ए-ग़म उस पे आश्कार नहीं

हमारी आबला-पाई का फ़ैज़ क्या कहिए
वो कौन सा है बयाबाँ जो लाला-ज़ार नहीं

बुतों को पूज रहा है तिरे तसव्वुर में
गुनाह कर के भी 'फ़ैज़ी' गुनाहगार नहीं
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Faizi Nizam Puri