Ghulam Abbas

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Ghulam Abbas shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ghulam Abbas's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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अल्लह मियाँ मैं तेरे सदक़े
बेकस की फ़रियाद तू सुन ले

मुझ को न दे तू दूध मलाई
मुझ को न दे तू नान-ख़ताई

लड्डू पेड़े बर्फ़ी जलेबी
कब हैं ये क़िस्मत में मेरी

एक निवाला मेरी ग़िज़ा है
वो भी नहीं मुझ को मिलता है

इस घर में है ढेरों हर शय
मेरे लिए पर कुछ भी नहीं है

जाम मुरब्बे चटपटी चीज़ें
बंद हैं सारी अलमारी में

आटे के और घी के कनस्तर
ताले पड़े हैं इन में यकसर

हंडिया रहती है छींके पर
वो भी मेरी पहुँच से बाहर

बिल्ली के भागूँ छींका टूटे
मेरे भागों बर्तन झूटे

मेरी क़िस्मत में है लिक्खा
रोटी का बस सूखा टुकड़ा

लेकिन ये टुकड़ा भी अब तो
मुश्किल से मिलता है मुझ को
घर में चूहे-दान है रक्खा
एक है बिल्ली एक है बिल्ला

जीना हुआ है मुझ को अजीरन
मैं हूँ अकेली दो दो दुश्मन

सोग में रहती हूँ मैं हर दम
खाए जाता है मुझ को ग़म

चाँदनी देखो कैसी खुली है
लो वो कहीं ढोलक भी बजी है

दर्द भरे हों दिल में जब ऐसे
तुम ही कहो मैं नाचूँ कैसे
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Ghulam Abbas
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हम ने बत्तख़ के छे अंडे
इक मुर्ग़ी के नीचे रक्खे

फूटे अंडे पच्चीस दिन में
बोल रहे थे बच्चे जिन में

बच्चे निकले प्यारे प्यारे
मुर्ग़ी की आँखों के तारे

रंग था पीला चोंच में लाली
आँखें उन की काली काली

चोंच थी चौड़ी पंजा चपटा
बाक़ी चूज़ों का सा नक़्शा

बच्चे ख़ुश थे मुर्ग़ी ख़ुश थी
हम भी ख़ुश थे वो भी ख़ुश थी

मुर्ग़ी चुगती कट कट करती
ले के उन को बाग़ में पहुँची

जम्अ' हुए वाँ बच्चे उस दम
कौसर ताशी नीलो मरियम

कौसर जो थी छोटी बच्ची
भोली-भाली अक़्ल की कच्ची

उस ने झट इक चूज़ा ले कर
फेंक दिया तालाब के अंदर

की ये शरारत इस फुरती से
रह गए हम सब न न कहते

चूज़ा जो था नन्हा मुन्ना
हम समझे बस अब ये डूबा

लेकिन साहब वो चूज़ा तो
कर गया हैराँ पल में सब को

पानी से कुछ भी न डरा वो
पहले झिजका फिर सँभला वो

ख़ूब ही तैरा छप छप कर के
चोंच में अपनी पानी भर के

बच्चों ने फिर बाक़ी चूज़े
डाल दिए तालाब में सारे

होने लगी फिर ख़ूब ग़ड़प ग़प
छप छप छप छप छप छप छप छप

मुर्ग़ी काँपी हौल के मारे
जा पहुँची तालाब किनारे

कट कट कर के उन को बुलाया
इक भी बच्चा पास न आया

शायद वो समझे नहीं बोली
बढ़ गई आगे उन की टोली
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Ghulam Abbas
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ये है वो गुड़िया
आफ़त की पुड़िया
सलमा ने जिस को
बेटी बनाया
ये है वो चूहा
भूरा लंडूरा
भूका चटोरा
गुड़िया को जिस ने
चुटिया से खींचा
पंजों में भींचा
गुड़िया वो गुड़िया
आफ़त की पुड़िया
सलमा ने जिस को
बेटी बनाया
ये है वो बिल्ली
मोटी मुटल्ली
आँखों पे जिस की
छाई थी झिल्ली
नौ सौ वो चूहे
खा कर चली थी
हज कर के पल्टी
चूहे को देखा
ललचाई जी में
तौबा को तोड़ा
आँगन में रपटी
चूहे पे झपटी
चूहा बना वो
बस इक निवाला
थी ना वो आख़िर
चूहों की ख़ाला
चूहा वो चूहा
भूरा लंडूरा
भूका चटोरा
गुड़िया को जिस ने
चुटिया से खींचा
पंजों में भींचा
गुड़िया वो गुड़िया
आफ़त की पुड़िया
सलमा ने जिस को
बेटी बनाया
ये है वो कुत्ता
काला कलूटा
ख़ूँ-ख़ार नज़रें
खुजली का मारा
बिल्ली को जिस ने
आ के दबोचा
और फिर रगेदा
और फिर भंभोड़ा
बिल्ली वो बिल्ली
मोटी मुटल्ली
आँखों पे जिस की
छाई थी झिल्ली
नौ सौ वो चूहे
खा कर चली थी
हज कर के पल्टी
चूहे को देखा
ललचाई जी में
तौबा को तोड़ा
आँगन में रपटी
चूहे पे झपटी
चूहा बना वो
बस इक निवाला
थी न वो आख़िर
चूहों की ख़ाला
चूहा वो चूहा
भूरा लंडूरा
भूका चटोरा
गुड़िया को जिस ने
चुटिया से खींचा
गुड़िया वो गुड़िया
आफ़त की पुड़िया
बेटी बनाया

ये है वो गाय
बिफरी सी हाए
अल्लाह बचाए
हैं सींग जिस के
तेज़ और नुकीले
कुत्ते को जिस ने
सींगों में अपने
ले के उछाला
धरती पे पटख़ा
सर उस का चटख़ा
कुत्ता वो कुत्ता
काला कलूटा
ख़ूँ-ख़ार नज़रें
खुजली का मारा
बिल्ली को जिस ने
आ के दबोचा
और फिर रगेदा
और फिर भंभोड़ा
बिल्ली वो बिल्ली
मोटी और मुटल्ली
आँखों पे जिस की
छाई थी झिल्ली
नौ सौ वो चूहे
खा कर चली थी
हज कर के पल्टी
चूहे को देखा
ललचाई जी में
तौबा को तोड़ा
आँगन में रपटी
चूहे पे झपटी
चूहा बना वो
बस इक निवाला
थी ना वो आख़िर
चूहों की ख़ाला
चूहा वो चूहा
भूरा लंडूरा
भूका चटोरा
गुड़िया को जिस ने
चुटिया से खींचा
पंजों में भींचा
गुड़िया वो गुड़िया
आफ़त की पुड़िया
सलमा ने जिस को
बेटी बनाया
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Ghulam Abbas
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मरियम ने ख़्वाब देखा
जंगल में है वो तन्हा

इतने में झाड़ियों से
इक शेर झट से निकला

देखी जो शक्ल उस की
मरियम पे ख़ौफ़ छाया

बेचारी जी में सहमी
अब शेर मुझ पे झपटा

पर शेर का तो उस दम
कुछ और ही था नक़्शा

था वो बहुत परेशाँ
सहमा सा और डरा सा

लटकी हुई थी गर्दन
उतरा हुआ था चेहरा

आँखों में उस की आँसू
जो दुम से पोंछता था

मरियम को देख कर ये
बेहद हुआ अचम्भा

ढारस बंधी जो उस की
मरियम ने उस से पूछा

ऐ बादशह सलामत
है हाल आप का क्या

तब उस ने झुरझुरी ली
मरियम की सम्त पल्टा

पहले दिखाए पंजे
खोला फिर अपना जबड़ा

कुछ देर चुप रहा वो
फिर आह भर के बोला

क्या पूछती हो मुझ से
ऐ मेरी नन्ही गुड़िया

बिगड़ा मिरा मुक़द्दर
फूटा मिरा नसीबा

या बद-दुआ' है उस की
मैं ने जिसे सताया

मुझ में रहे न कुछ गुन
अब दाँत हैं न नाख़ुन
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एक था घोड़ा अजब निराला
बातें हवा से करने वाला

रंग उस का चितकबरा ऐसा
सावन मास के बादल जैसा

क़द था उस का यूँ तो छोटा
जिस्म था लेकिन ख़ासा मोटा

सर्कस में कर्तब दिखलाता
छोटे बड़ों को ख़ूब हँसाता

उछला कूदा नाचा करता
और हवा में तरारे भरता

इक दिन सर्कस में छुट्टी थी
घोड़े को बस सैर की सूझी

सर्कस से वो बाहर निकला
और फिर इक मैदान में पहुँचा

वाँ लड़के डंड पेल रहे थे
गेंद से भी कुछ खेल रहे थे

घोड़े को ये खेल जो भाया
दिल में उस के जोश सा आया

उस ने कहा ऐ भाई लड़को
खेल में मुझ को शामिल कर लो

लड़के बोले अच्छा आओ
तुम भी खड़े इक जा हो जाओ

लड़के थे गो सब ही खिलाड़ी
घोड़ा भी था कोई अनाड़ी

हाथ से गेंद दबोचें लड़के
घोड़ा मुँह से गेंद दबोचे

खेल ने ऐसा रंग जमाया
सब ने ख़ूब ही लुत्फ़ उठाया

अब तुम बात सुनो आगे की
गेंद आई इक बार उछलती

घोड़े की आई कम-बख़्ती
उस ने झाड़ी इक दोलत्ती

गेंद पकड़ने फिर वो लपका
ऐसा लगा कुछ उस को धक्का

गेंद वो उस के हल्क़ से उतरी
और बस सीधी पेट में पहुँची

जान पे उस की ऐसी गई बन
भूल गया वो सब अपने फ़न

उछला कूदा शोर मचाया
घोड़े को आराम न आया

लड़के उस को जैसे-तैसे
ले के शिफ़ा ख़ाने में पहुँचे

दौड़ा दौड़ा आया सर्जन
करना था जिस को ऑपरेशन

घोड़े का था हाल जो अबतर
झट से निकाला उस ने नश्तर

घोड़े के जब पेट को चीरा
अंदर से इक मालटा निकला
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