Haidar Husain Fiza Lucknowi

Haidar Husain Fiza Lucknowi

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Haidar Husain Fiza Lucknowi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Haidar Husain Fiza Lucknowi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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रब्त-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ अज़ल से सच्चा ये अफ़्साना है
शम्अ' है जिस महफ़िल में रौशन देखो वहीं परवाना है

दिल के सिवा कुछ पास नहीं है दिल तेरा नज़राना है
याद तिरी रहने को हमेशा हाज़िर ये काशाना है

उस का चेहरा सूरज ऐसा उस का ग़म सूरज की तपिश
चाँद उसे किस तरह से कहिए चाँद तो इक वीराना है

पास था जब तू कितनी उमंगें इस दिल में आबाद रहीं
जब से हुआ है मुझ से जुदा तू दिल ये नहीं वीराना है

ग़ैरों का हम शिकवा करें क्यों अपनों ने जब दी है दग़ा
जिस दिल को समझे थे अपना आज वही बेगाना है

दिल का लहू ये आँसू बन के आँख से टप टप गिरने लगा
समझो उसे पानी का न क़तरा अश्क नहीं दुर्दाना है

सुन के मिरी रूदाद-ए-ग़मगीं हँस कर बोला वो ज़ालिम
लाखों सुने हैं ऐसे क़िस्से ये भी इक अफ़्साना है

बैठे रहे सब ऐरे-ग़ैरे ग़ैर था इक मैं ही जैसे
मुझ को उठाया बज़्म से उस ने कह के ये दीवाना है

बदली है गुलशन की हवा क्यों बिगड़ा मिज़ाज-ए-बुलबुल क्यों
अंजुमन-ए-गुल है अबतर क्यों सब्ज़ा क्यों बेगाना है

अपने क़दह की ख़ैर मना कर मय-कश अपनी राह लगे
रिंद-ए-ख़राबाती के दम से आबाद अब मय-ख़ाना है

तू हो सलामत दम रहे तेरा मय-कदे में है शोर 'फ़ज़ा'
आया आया साक़ी मेरा गर्दिश में पैमाना है
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Haidar Husain Fiza Lucknowi
बे-रुख़ी ने उस की मुझ को कर दिया महफ़िल से दूर
वो हमारे दिल में है और हम हैं उस के दिल से दूर

उमडे तूफ़ानों में भी है कश्ती-ए-उल्फ़त रवाँ
हम कभी नज़दीक होते हैं कभी साहिल से दूर

इश्क़ की वादी को तय करना कोई आसाँ नहीं
गामज़न पैहम रहे फिर भी रहे मंज़िल से दूर

टुकड़े टुकड़े कर के रख देते हैं ख़ंजर की तरह
दिल जिगर ऐ लोगो रखना अबरू-ए-क़ातिल से दूर

बहर-ए-उल्फ़त का किनारा अहल-ए-दिल नापैद है
जिस को साहिल समझे हो वो मौज है साहिल से दूर

नित-नई दुश्वारियाँ राह-ए-वफ़ा में सह के हम
चलते चलते थक गए जब फिर न थे मंज़िल से दूर

कहता है बे-अक़्ल नासेह इश्क़ को दीवानगी
इश्क़ के दीवानो रहना नाम के आक़िल से दूर

रक़्स-ए-बिस्मिल का तमाशा तो किया होता हुज़ूर
कर के बिस्मिल हो गए किस वास्ते बिस्मिल से दूर

वो मोहब्बत करने वाले दिल जो मिलते हैं कभी
लाख दुनिया चाहे होते हैं बड़ी मुश्किल से दूर

गर मसीहा होते करते ज़ख़्म-ए-दिल का कुछ इलाज
और ज़ख़्मी कर के वो तो हो गए घाइल से दूर

आस्तान-ए-यार पर पहूँचा तलब जिस दिल में थी
दामन-ए-महबूब रहता है सदा ग़ाफ़िल से दूर

दिल 'फ़ज़ा' का बुझ गया अंधेर दुनिया हो गई
हो गया जिस रोज़ से वो उस मह-ए-कामिल से दूर
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Haidar Husain Fiza Lucknowi
होश बाक़ी न रहा हाथ से ईमान गया
जो गया बज़्म से तेरी वो परेशान गया

उन से दिल मिल गया उल्फ़त का मज़ा जान गया
वो मुझे अच्छी तरह मैं उन्हें पहचान गया

जिन के दम से थी बहार उठ गए वो अहल-ए-चमन
दिल के बहलाने का अब आख़िरी सामान गया

आरज़ू दीद की पूरी न हुई ता-दम-ए-मर्ग
तेरा आशिक़ तिरे कूचे से पुर-अरमान गया

हम तड़पते रहे और आप ने पूछा भी नहीं
क़स्में क्या हो गईं वो सब कहाँ अरमान गया

ऐसा नाराज़ हुआ ख़्वाब में भी आता नहीं
बात करने का भी उस बुत से अब इम्कान गया

सर तिरी नज़्र किया हो गई तकमील-ए-वफ़ा
ऐ सितमगर मिरे सर से तिरा एहसान गया

ज़ेर-ए-तुर्बत भी तड़पती रही मेरी मय्यत
दिल से मेरे न तिरे इश्क़ का तूफ़ान गया

पाँव शल हो गए लेकिन न पता तेरा मिला
जुस्तुजू में तिरी मैं ता-हद-ए-इम्कान गया

ज़िक्र वा'दे का ज़बाँ पर जो 'फ़ज़ा' की आया
बात इतनी सी थी लेकिन वो बुरा मान गया
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Haidar Husain Fiza Lucknowi
है दिल आईना-सामाँ पर्दा-ए-हाइल से क्या मतलब
तिरा दीदार आसाँ है किसी मुश्किल से क्या मतलब

जो बहर-ए-इश्क़ में डूबा उसे साहिल से क्या मतलब
मोहब्बत दिल की ख़िदमत है उसे हासिल से क्या मतलब

सुकूँ है मौत हरकत ज़िंदगी का नाम है हमदम
यहाँ रफ़्तार ही रफ़्तार है मंज़िल से क्या मतलब

जो हो बर्बाद-ए-उल्फ़त क्यों किसी का आसरा ढूँडे
डुबोने लाए जो कश्ती उसे साहिल से क्या मतलब

अगर तुम साथ हो वीराना भी गुलशन से बढ़ कर हो
न जिस महफ़िल में हो तुम मुझ को उस महफ़िल से क्या मतलब

है चलना राह पर तेरी तजस्सुस में हूँ सरगर्दां
मिले तेरा निशान-ए-पा मुझे मंज़िल से क्या मतलब

निगाह-ए-नाज़ के नावक चलाए जा चलाए जा
बला से कोई घायल हो तुझे घाइल से क्या मतलब

'फ़ज़ा' को है तमन्ना तेरे दर पे जब्हा-साई की
न हो जो आस्ताँ तेरा तो इस मंज़िल से क्या मतलब
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Haidar Husain Fiza Lucknowi
याद उस मह-ए-ख़ूबी की जब हिज्र की रात आई
आँखों में मिरी उस दम अश्कों की बरात आई

दिल इश्क़ की लज़्ज़त से आगाह हुआ जब से
जैसे तन-ए-मुर्दा में इक ताज़ा हयात आई

था दिल में इरादा तो शिकवों का शिकायत का
जब सामने वो आए होंटों पे न बात आई

तल्ख़ी-ए-कलाम उस की आशिक़ की समाअ'त तक
शीरीनी-ओ-लज़्ज़त में मानिंद-ए-सबात आई

इस ख़ाक में मिलने को ख़ुद ख़ाक हुआ आख़िर
ख़ाक उस के क़दम की जब दीवाने के हाथ आई

इस ताबिश-ए-जल्वा से नज़रें जो हुईं ख़ीरा
फिर सामने आँखों के पहली सी क़नात आई

ख़ल्वत है शब-ए-ग़म की और मश्क़-ए-तसव्वुर है
तुम से गले मिलने की फिर आज ये रात आई

माइल-ब-करम उस को पाया जो 'फ़ज़ा' इक दिन
जो दिल में थी मुद्दत से होंटों पे वो बात आई
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Haidar Husain Fiza Lucknowi
हम उट्ठे तो क्या रौनक़-ए-मय-ख़ाना वही है
साक़ी वही बादा वही पैमाना वही है

फ़रज़ाना जिसे कहते हो दीवाना वही है
दीवाना जिसे समझे हो फ़रज़ाना वही है

हुस्न और मोहब्बत का है मौज़ूअ' पुराना
उन्वान बदलते रहे अफ़्साना वही है

इस हुस्न-ए-जहाँ-ताब पे मरते हैं हज़ारों
देखो जिसे इस हुस्न का परवाना वही है

दिल दे कोई जाँ दे कोई इज़्ज़त कोई दौलत
जो हुस्न को मक़्बूल हो नज़राना वही है

जो कुल में है वो जुज़ में है जो जुज़ है वही कुल
आईने के टुकड़ों में परी-ख़ाना वही है

जिस दिल में ख़ुदा रहता था तुम आन बसे हो
काबा जो था कल आज सनम-ख़ाना वही है

दिन-रात जो आँखों से बहे पानी है पानी
जो दुख में किसी के बहे दुर्दाना वही है

चटका भी तो दिल की तरह आवाज़ न उभरी
जो ख़ाक से मेरी बना पैमाना वही है

राहत में तो मा'बूद का सब करते हैं सज्दा
हाँ दुख में करे याद तो शुक्राना वही है

क्या बात है गुलशन की 'फ़ज़ा' क्यों नहीं बदली
सय्याद वही दाम वही दाना वही है
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Haidar Husain Fiza Lucknowi