तुम मिरे हश्र-ए -मुहब्बत के वो मंज़र मत तलाशो
कैसे सीनो मैं उतारे जाते ख़ंजर मत तलाशो
जानते हो तुम बख़ूबी है हुनर ये तो तुम्हारा
ऑंखों से कैसे निकलते हैं समंदर मत तलाशो
इस क़दर मैं टूटा बिखरा ख़ाक होके मर गया हूँ
फिर भी जो ज़िंदा बचा है मेरे अंदर मत तलाशो
मिलता हूँ नक़ली हँसी लेकर सभी से आज कल मैं
बाइस-ए-ग़म कौन है और कौन दिलबर मत तलाशो
फूल भी खिल उठते थे तेरे आ जाने से कभी तो
हो गया अब कैसे गुलशन ख़ाक -ओ -बंजर मत तलाशो
बन गया लुट के ख़राबा ये ज़मीन -ए-दिल तो दादर
बच गया किसका मिरे दिल में वो इक घर मत तलाशो
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