Kamal Upadhyay

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@kamal-upadhyay

Kamal Upadhyay shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Kamal Upadhyay's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Nazm
चलते जाता हूँ
उस की बाहें थामे
वो थकता नहीं
मैं रुकता नहीं हूँ
बचपन से साथ हूँ
बदले है रंग कई
उस ने और मैं ने
अक्सर तन्हाई में
हम साथ होते है
वो पत्तो से लदा हुआ
कभी धूप में
जलता हुआ
बरसात में न चाहे
भीगता हुआ
वो रास्ता
जो मेरे
घर से निकल कर
दूर जंगलों में
जाता है
वो आज भी
तन्हाई में
मेरा साथ निभाता है

उस से बचपन की
कितनी यादें है जुड़ी
मेरे पैदा होने पर
वो मिट्टी का था
वो मुझ को पटकता
मैं उसे पटकता था
अक्सर आपा-धापी
में हम दोनों लाल-पीले
हो जाते थे
एक बार ज़ोर से
पटक दिया था
मैं ने उसे
कुछ खरोंचे
आई मुझे
उस की भी
कलाई छिल
गई थी
दोनों मिल कर
साथ चीख़े थे
वो रास्ता
जो मेरे
घर से निकल कर
दूर जंगलों में
जाता है
वो आज भी
तन्हाई में
मेरा साथ निभाता है

मेरे साथ वो भी
कपड़े बदलने लगा
लाल से पीला
पीले से ईंटे का
ईंटे से पत्थर का
पत्थर से डामर का
हो गया
बदलते समय के
साथ मैं और रास्ता
बदल गया
लेकिन
लेकिन
हम आज भी
साथ चलते है
वो रास्ता
जो मेरे
घर से निकल कर
दूर जंगलों में
जाता है
वो आज भी
तन्हाई में
मेरा साथ निभाता है

इस बार जब
उस से मिलने गया
तो बड़ा दुखी था वो
कहता है
पुरानी डामर सूखती
नहीं
ये नई उडेल देते
तेरी सुर्ख़ यादो को
खन कर
कही ढकेल देते है
वो रास्ता
जो मेरे
घर से निकल कर
दूर जंगलों में
जाता है
वो आज भी
तन्हाई में
मेरा साथ निभाता है
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क्या होगी पेड़ों की ज़ात
कभी सोचा है आप ने
सवाल अटपटा है
लेकिन क्यूँ नहीं बाँटा
उसे हम ने ज़ात-पात में

चलो एक एक कर के बाँटते हैं पेड़ों को
फल वाले पेड़ और फूल वाले पेड़
बड़ी बड़ी भुजाओं वाले
छोटी छोटी टहनियों वाले पेड़

वो आम का पेड़
जो हवन में जलता हैं
बाभन होगा
क्यूँकि उस के पत्तों की पूजा भी होती हैं
फल भी खुब रसीला मंत्रो की तरह

बबूल का पेड़ छाया नहीं देता
उस के काँटे चुभ जाए तो दर्द होता है
और ख़ून निकलता है
लेकिन बड़ा मज़बूत होता है
बबूल शायद ठाकुर होगा

बनिया तो महुवा होगा
उस के पत्तों से पत्तल बनती हैं
रसीले फल आँटे में
मीज कर गुजिया बनाते हैं
सुखा कर उस के फल दुकान पर बेच देते हैं
तेल भी मिलता है महुए की कोइय्या से
लकड़ी तो उस की बड़े काम आती हैं

कुछ पेड़ है
जो जल्दी जल्दी बढ़ते है
उन की लकड़ी जलावन बनती हैं
अमलतास मेरा हरीजन होगा
बस बढ़ता है और कटता है
उस के कटने पर किसी को दुख नहीं होता

सवाल मेरा पढ़ कर
सोचोगे तुम
पागल हो गया बस्ती
बहकी बहकी सी बातें करता है
तो क्यूँ नहीं सोचते
इंसानो को ज़ात-पात में बाँटने पर

चलो एक एक कर के
बाँटते हैं पेड़ों को
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वो जो एस्ट्रोनॅाट
चाँद से आए हैं
पता नहीं कहा से
झूटी तस्वीरें लाए हैं

कोई बता दो उन को
कोई बता दो उन को
मेरा चाँद कैसा दिखता है
कभी देखना पूनम की रात में
एक धुंदली धुंदली सी
छवी नज़र आएगी
जैसे कोई बच्चा माँ
से लिपटा हो
वो जो एस्ट्रोनॅाट
चाँद से आए हैं
पता नहीं कहाँ से
झूटी तस्वीरें लाए हैं

कहते हैं चाँद मरुस्थल हैं
अरे मैं ने तो कई रातें
चाँद के पानी से
पी कर गुज़ार दी
एक रात बाढ़ आ गई
चाँद पर
सुब्ह गीला तकिया
मैं ने धूप में सुखाया था
वो जो एस्ट्रोनॅाट
चाँद से आए हैं
पता नहीं कहा से
झूटी तस्वीरें लाए हैं

चाँद की बदलती
चाँदनी से कई दिल जुड़े हैं
वो चाँद की अठखेलियों को
कोई विग्यान बताते हैं
कहते हैं एक उपग्रह है
अरे हम तो बचपन
से मामा कहते हैं
वो जो एस्ट्रोनॅाट
चाँद से आए हैं
पता नहीं कहा से
झूटी तस्वीरें लाए हैं

वो जो शरमा के
पल भर के लिए
छुप जाता है
उसे ऐ चंद्र पर
ग्रहन कहते हैं
उन्हें क्या पता
कैसे गुज़ारता हूँ मैं
अमावस की रातें
बिना उस के
वो जो एस्ट्रोनॅाट
चाँद से आए हैं
पता नहीं कहा से
झूटी तस्वीरें लाए हैं

मुझे लगता किसी
ग़लत पते पर चले गए थे
ऐ एस्ट्रोनॅाट
और
चाँद से है उन की पुरानी दुश्मनी
इस लिए सारा दोश चाँद को देते हैं
वो जो एस्ट्रोनॅाट
चाँद से आए हैं
पता नहीं कहा से
झूटी तस्वीरें लाए हैं

वो जो एस्ट्रोनॅाट
चाँद से आए हैं
पता नहीं कहा से
झूटी तस्वीरें लाए हैं
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क्यूँ नहीं सोने देते मुझ को
जब ज़िंदा था तब पर भी यही करते थे
यहाँ तो सुकून दो मुझे
हर रोज़ चले आते हो दफ़नाने
एक मुर्दा लाश को ज़िंदा कर जाते हो

अभी तो गला नहीं मैं पूरी तरह
सुना है कुछ दिन में
खोद कर मुझ को
एक छोटे बक्से में भर दोगे
अब यही बचा है
मुर्दों को भी चैन की साँस ना लेने देना

वो जो क्रॉस
मेरे सीने पर लगाया है
हटा दो उसे
चुभता है मुझे
करवट भी नहीं ले पाता
क्यूँकि जगह कम है यहाँ

पड़ोस की क़ब्र में
एक नया मुसाफ़िर आया है
बड़ा ख़ुश-मिज़ाज है
कहता है ये ज़िंदगी
जीने में बड़ा मज़ा आता है

अब मना कर दो लोगों को
ना जलाया करे मोम-बत्ती
उस की पिघलती बूँदें
जब गिरती है मेरे ऊपर
तो छाले निकल आते हैं

चलो अब चलता हूँ
आज सारी रात
जाग कर काट दी
चलो अब चल कर सोता हूँ
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समुंदर की कुछ बूंदों से बात की
वो भी अपने वजूद को ले कर व्याकुल हैं
विशाल समुंदर में कहा कोई उन की है सुनता
जबकि उन से ही समुंदर है
उन के बिना समुंदर बस मरुस्थल है

बूँदें दिन-रात प्रयत्न करती हैं
एक बूँद दूसरे को आगे ढकेल कर
समुंदर का वजूद क़ाएम रखती हैं
उन को एहसास है अपने होने का
लेकिन
समुंदर हर बार इस बात को भूल जाता है

सोचों अगर बूँदें विद्रोह कर दें
बना कर दोस्त सूरज को
ऊपर आकाश में बादल से मिल जाएँ
हो सकता है दोस्ती धरा से कर लें
उस के गर्त में समा जाएँ
सूख जाएगा समुंदर
बूंदों का वजूद तो हमेशा बना रहेगा

समुंदर को अभिमान किस बात का
क्या पता
क्या उसे नहीं पता
किस ने किया उस का वजूद क़ाएम
मिट जाएगा एक दिन
बस बूंदों को क़दम विद्रोह का उठाना है
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Kamal Upadhyay
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दूर गगन में कहीं था अब तक खोया
बादल आज कई दिनों के बा'द रोया
बादल रोता मैं मुस्कुराता हूँ
वो ग़म बिताता मैं ख़ुशियाँ मनाता हूँ
बादल के आँसू ने सारा जग भिगोया
बादल आज कई दिनों के बा'द रोया

अब बादल रोता मैं हँसता नहीं था
उस के आँसू पर मज़ा कसता नहीं था
बादल के आँसू ने हरियाली का मंज़र लाया
सपनों सा था दर्पन जग को आँसू ने चमकाया
बादल ने जैसे रोने की ज़िद थी ठानी
उस के आँसू धरती पर कर रहे थे मन-मानी

अब बादल रोता तो मैं भी रोता हूँ
अपने सपने उस के आँसू से भिगोता हूँ
हरियाली का मंज़र जैसे उजड़ा कही खोया
बादल आज कई दिनों के बा'द रोया

कुछ महीने बीते बादल मान गया
अपने आँसू को थामना जैसे जान गया
अब बदल मुस्कुराता मैं मुस्कुराता हूँ
रोने पर किसी के न हँसना सब को समझाता हूँ
दूर गगन में कही था अब तक खोया
बादल आज कई दिनों के बा'द रोया
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Kamal Upadhyay
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चलो फिर एक नया मज़हब बनाएँ
कुछ और लोगों को बाँटे आपस में
बढ़ाएँ रंजिशें उन की
उकसाएँ लोगों को क़त्ल-ए-आम के लिए
कुछ मरेंगे
कुछ लहूलुहान होंगे
चिंगारी जलती रहेगी
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
एक दूसरे को नीचा दिखाने की

कुछ और ख़ुद-ग़रज़ कूद पड़ेंगे
इस रंजिश के खेल में
सेकेंगे रोटियाँ
मय्यत की चिंगारी पर
आग बुझ गई तो
मज़ार के
दिए
से फिर जला देंगे
जला कर घर हमारा
अपना महल रौशन करेंगे

बीत जाएँगी कई पीढ़ियाँ
भूल जाएँगी कारन आपसी लड़ाई का
धर्म-गुरु फिर उठेंगे
सीख देंगे धर्म-रक्षा का
कहेंगे लड़-मरो
अपने धर्म के लिए
लेकिन
कभी स्वयं धर्म की रक्षा के लिए लड़ने ना आएँगे

चलो फिर एक नया मज़हब बनाएँ
कुछ और लोगों को बाँटें आपस में
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चाँद भी कम्बल ओढ़े निकला था
सितारे ठिठुर रहें थे
सर्दी बढ़ रही थी
ठण्ड से बचने के लिए
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े

कुछ रिश्ते
जो बस नाम के बचे थे
खींच रहा था
मैं उन को
कभी वो मुझे खींचा करते थे
सर्दी बढ़ रही थी
ठण्ड से बचने के लिए
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े

कुछ रिश्ते
बहुत कमज़ोर हो चले थे
उन की लपट भी बहुत कम थी
कुछ इतने पतले
की जलने से पहले राख हो गए
सर्दी बढ़ रही थी
ठण्ड से बचने के लिए
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े

कुछ पुराने रिश्ते थे
मेरे जनम के पहले के
सजोया था उन्हें मैं ने
उन्हें नहीं था कोई लगाव मुझ से
सर्दी बढ़ रही थी
ठण्ड से बचने के लिए
मुझे भी कुछ रिश्ते जलाने पड़े
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