Lala Anoop Chand Aaftab Panipati

Lala Anoop Chand Aaftab Panipati

@lala-anoop-chand-aaftab-panipati

Lala Anoop Chand Aaftab Panipati shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Lala Anoop Chand Aaftab Panipati's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

6

Likes

0

Shayari
Audios
  • Nazm
ग़म की छा जाएगी दुनिया में घटा मेरे बा'द
और बरसेंगे बहुत तीर-ए-बला मेरे बा'द

देखना हश्र क्या होता है कि जब आएगी
दर-ओ-दीवार से रोने की सदा मेरे बा'द

बिजलियाँ चमकेंगी आलाम-ओ-मसाइब की अगर
ग़म की चल जाएगी हर सम्त हवा मेरे बा'द

अपनी ठोकर से मिरी क़ब्र को ढाया आ कर
ज़ुल्म ये और भी ज़ालिम ने किया मेरे बा'द

आज दिल खोल के तुम ज़ुल्म-ओ-सितम कर डालो
फिर चलाओगे कहाँ तेग़-ए-जफ़ा मेरे बा'द

मेरी सूरत से भी चिढ़ हो गई पैदा जिन को
ख़ूँ रुलाएगी उन्हें मेरी वफ़ा मेरे बा'द

हाथ से अपने मिटाने पे तुले हो लेकिन
कौन भुगतेगा मोहब्बत की सज़ा मेरे बा'द

ख़ुद ही पछताओगे दुनिया से मिटा कर मुझ को
तुम को बेदाद का आएगा मज़ा मेरे बा'द

अपने बीमार-ए-मोहब्बत को न तड़पाओ तुम
फिर दिखा लेना उन्हें नाज़-ओ-अदा मेरे बा'द

वो बहाने लगे आँखों से लहू के आँसू
रंग ले आई है ये मेरी वफ़ा मेरे बा'द

'आफ़्ताब' आज मोहब्बत ने असर दिखलाया
उन के सीने में भी अब दर्द उठा मेरे बा'द
Read Full
Lala Anoop Chand Aaftab Panipati
0 Likes
आह में ऐ दिल-ए-मज़लूम असर पैदा कर
जिस में सौदा-ए-मोहब्बत हो वो सर पैदा कर

ग़म का तूफ़ाँ भी अगर आए तो कुछ फ़िक्र न कर
क़ौम का दर्द हर इक दिल में मगर पैदा कर

ज़ुल्मत-ए-ग़म का निशाँ तक न नज़र आए कहीं
वो ख़यालात की दुनिया में सहर पैदा कर

सरफ़रोशों की तरह पहले मिटा दे ख़ुद को
हिन्द की ख़ाक से फिर लाल-ओ-गुहर पैदा कर

आग बे-फ़ैज़ की दौलत को लगा दे यारब
काम आए जो ग़रीबों के वो ज़र पैदा कर

आज भी क़ौम के शेरों का लहू है तुझ में
हौसला राम का भीषम का जिगर पैदा कर

हों हनूमान और 'अंगद' से हज़ारों योद्धा
सैंकड़ों भीम और अर्जुन से बशर पैदा कर

आसमाँ काँपता है नाम से जिन के अब तक
आज फिर क़ौम में वो लख़्त-ए-जिगर पैदा कर

फिर ज़रूरत है जवाँ मर्दों की ऐ मादर-ए-हिन्द
राणा-प्रताप से ख़ुद्दार बशर पैदा कर

अहद-ए-रफ़्ता में जनम तू ने दिया था जिन को
मादर-ए-हिन्द वही नूर-ए-नज़र पैदा कर

चैन राहत से अगर उम्र बसर करनी है
दिल में अग़्यार के भी उन्स से घर पैदा कर

गर तमन्ना है कि हो सारा ज़माना अपना
जज़्बा-ए-इश्क़-ओ-मुहब्बत की नज़र पैदा कर

'आफ़्ताब' अब तिरी तक़दीर का चमकेगा ज़रूर
मर्द बन कर कोई दुनिया में हुनर पैदा कर
Read Full
Lala Anoop Chand Aaftab Panipati
0 Likes
लर्ज़ा था जिस के बच्चों का नाम सुन के आलम
होता था जिन के आगे शेरों का ख़त्म दम-ख़म

जिन का उड़ा हमेशा अर्श-ए-बरीं पे परचम
अज़्मत का जिन की डंका बजता रहेगा दाइम

हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
जिस मुल्क में करोड़ों बे-मिस्ल थे दिलावर

लाखों थे भीम अर्जुन बलराम श्याम 'रघुबर'
थे तीर जिन के ज़ेवर बिस्तर थे जिन के ख़ंजर

रू-ए-ज़मीं पे जिन का पैदा हुआ न हम-सर
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा

जिस मुल्क पर था नाज़ाँ अकबर सा शाह-ए-आज़म
उड़ता था आसमाँ पर शोहरत का जिस की परचम

था अद्ल का ज़माना इंसाफ़ का था आलम
हिंदू मुसलमाँ दोनों रहते थे मिल के बाहम

हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
थे कालीदास जैसे जिस देश में सुख़नवर

क्या चीज़ उन के आगे यूरोप का शेक्सपियर

पामाल हो चुका है वो गुलिस्ताँ सरासर
इस ग़ैर-हाल में भी है कुल जहाँ से बेहतर

हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
'गौतम' से इल्म-दाँ को जिस ने जनम दिया था

'मीराँ ने जिस ज़मीं पर ख़ुश हो के सम पिया था
'पातनजली' को पैदा जिस मुल्क ने किया था

आलम ने फ़लसफ़े का जिन से सबक़ लिया था
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा

गोदी में जिस की अब तक गामा सा पहलवाँ है
नज़रों में कल जहाँ की जो रुस्तम-ए-ज़माँ है

ताक़त का जिस की क़ाइल हर पीर और जवाँ है
वो सैंकड़ों जवानों पे आज तक गराँ है

हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
वो कोह-ए-नूर हीरा जिस ने किया था पैदा

जिस की चमक से अक्सर शाहों का ताज चमका
हीरों में कुल जहाँ के माना गया है यकता

मुमकिन नहीं अबद तक जिस का जवाब मिलना
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा

टैगोर से जहाँ हूँ शाइ'र भी और हुनर-वर
जिस की ज़मीं पे अब तक 'गाँधी' है और जवाहर

'अबुल-कलाम' जैसे जिस मुल्क में हों लीडर
अज़्मत का जिन की सिक्का है कुल जहाँ के दिल पर

हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
राणा ने जिस ज़मीं पर की तेग़ आज़माई

जिस मुल्क पर हज़ारों वीरों ने जाँ गँवाई
सहरा में जिस के मोहन ने बाँसुरी बजाई

मुर्दा दिलों में उल्फ़त की आग सी लगाई
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा

जिस मुल्क में थीं लाखों सीता सी पाक-दामन
तेग़ों के साए में जो करती थी धर्म-पालन

शादाब हो रहा था इस्मत का जिन से गुलशन
क़ाइल हैं जिन की इस्मत के दोस्त और दुश्मन

हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
ज़रख़ेज़ मुल्क कोई जिस के नहीं बराबर

रोज़-ए-अज़ल से अब तक सरसब्ज़ है सरासर
कानों में आज तक भी जिस के हैं सीम और ज़र

जिस की ज़मीं उगलती है ला'ल और जवाहर
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
Read Full
Lala Anoop Chand Aaftab Panipati
0 Likes
मैं अपने क़ल्ब में जब नूर-ए-इरफ़ाँ देख लेता हूँ
तो हर ज़र्रा में इक ख़ुर्शीद-ए-ताबाँ देख लेता हूँ

मिटा कर अपनी हस्ती राह-ए-हक़ में खुल गईं आँखें
कि मर कर ज़िंदगी का राज़-ए-पिन्हाँ देख लेता हूँ

हक़ीक़ी इश्क़ का जज़्बा है दिल में जिस की बरकत से
हयात और मौत के असरार-ए-उर्यां देख लेता हूँ

किए हैं इश्क़ और उल्फ़त के सारे मरहले जब तय
तो दुनिया भर की हर मुश्किल को आसाँ देख लेता हूँ

छुपा सकता नहीं तू ख़ुद को मुझ से लाख पर्दों में
तिरी सूरत हर इक शय में नुमायाँ देख लेता हूँ

कहानी क्या सुनाऊँ दिल-जलों की ग़म के मारों की
कि उठता चार-सू इक ग़म का तूफ़ाँ देख लेता हूँ

तड़प है दर्द है रंज-ओ-अलम है बे-क़रारी है
ये मुल्क और क़ौम का हाल-ए-परेशाँ देख लेता हूँ

इसी प्यारे वतन हिन्दोस्ताँ की ग़ैर हालत है
कि जिस पर ग़ैर को भी आज नाज़ाँ देख लेता हूँ

निकलती है अगर इक आह भी मज़लूम के दिल से
ज़मीं से अर्श तक हर शय को लर्ज़ां देख लेता हूँ

घटाएँ ग़म की सर पर छा गईं जो हिन्द वालों के
दर-ओ-दीवार को भारत के गिर्यां देख लेता हूँ

अभी हिन्दोस्ताँ के दिन भले आए नहीं शायद
कि मैं लड़ते हुए हिन्दू मुसलमाँ देख लेता हूँ

न क्यूँ ऐ 'आफ़्ताब' आए नज़र उम्मीद की सूरत
कि जब तकलीफ़ में राहत के सामाँ देख लेता हूँ
Read Full
Lala Anoop Chand Aaftab Panipati
0 Likes
मिट जाएँ मुल्क से बुग़्ज़-ओ-हसद और दिल में वतन की इज़्ज़त हो
दामन में फ़ज़ाओं के हर जा इक अम्न-ओ-सुकूँ की सर्वत हो

सीने हों पाक कुदूरत से हर लब पर नग़्मा-ए-उल्फ़त हो
फ़िरदौस-ए-बरीं का नमूना फिर दुनिया में प्यारा भारत हो

उल्फ़त का सर में सौदा है जज़्बात का तूफ़ाँ बरपा है
घर घर में प्रेम की गंगा हो शाइ'र के दिल की तमन्ना है

ऐ भारत माता लाल तिरे इस दौर-ए-ख़िज़ाँ में सँभल जाएँ
साँचे में प्रेम और उन्स के अब सब हिन्दू मुस्लिम ढल जाएँ

नग़्मों से सच्ची मोहब्बत के दुनिया की फ़ज़ाएँ बदल जाएँ
ये मंज़र देख के उल्फ़त के आँसू आँखों से निकल जाएँ

उल्फ़त का सर में सौदा है जज़्बात का तूफ़ाँ बरपा है
घर घर में प्रेम की गंगा हो शाइ'र के दिल की तमन्ना है

वो मुल्क है दुनिया से अच्छा जो रश्क-ए-जिनाँ कहलाता है
आराम-ओ-राहत की चीज़ें सब जिस में इंसाँ पाता है

ऐ मुरलीधर की जन्म-भूमि तू सारे सुखों की दाता है
हम तेरी आन पे मरते हैं तो प्यारी भारत-माता है

उल्फ़त का सैर में सौदा है जज़्बात का तूफ़ाँ बरपा है
घर घर में प्रेम की गंगा हो शाइ'र के दिल की तमन्ना है

भर भर के जाम-ए-मोहब्बत के मय-ख़ाना-ए-दहर में ख़ूब पिएँ
गोकुल में नंद का लाला हो मुरली की प्यारी टेर सुनें

वो नग़्मे हवाओं में गूँजीं सोते हुए जज़्बे जाग उठें
उजड़ी हुई बस्ती को दिल की यूँ अहल-ए-वतन आबाद करें

उल्फ़त का सर में सौदा है जज़्बात का तूफ़ाँ बरपा है
घर घर में प्रेम की गंगा हो शाइ'र के दिल की तमन्ना है

हर शख़्स हो वज्द के आलम में इक दिलकश राग लबों पर हो
रूहानी नग़्मे सुन सुन कर बेदार बशर का मुक़द्दर हो

आँखों के सामने दुनिया में इक सच्चे प्रेम का मंज़र हो
इक उन्स-ओ-मोहब्बत का आलम आलम में आज सरासर हो

उल्फ़त का सर में सौदा है जज़्बात का तूफ़ाँ बरपा है
घर घर में प्रेम की गंगा हो शाइ'र के दिल की तमन्ना है

जल्वों से हुस्न-ए-अज़ल के अब सब ख़ुर्द-ओ-कलाँ पुर-नूर रहें
मय पी के इश्क़-ए-हक़ीक़ी की उल्फ़त के नशे में चूर रहें

दुनिया में रह कर दुनिया के झगड़ों से कोसों दूर रहें
हम प्यारे कृष्ण की भगती में सरशार रहें मसरूर रहें

उल्फ़त का सैर में सौदा है जज़्बात का तूफ़ाँ बरपा है
घर घर में प्रेम की गंगा हो शाइ'र के दिल की तमन्ना है
Read Full
Lala Anoop Chand Aaftab Panipati
0 Likes
जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल आए तसव्वुर में अगर
गोशा-ए-दिल में मचलते हुए अरमाँ होंगे

इक हसीं गोर-ए-ग़रीबाँ पे हुआ यूँ गोया
ये भी कम्बख़्त कभी हज़रत-ए-इंसाँ होंगे

पाँव रखते भी नज़ाकत से अगर होंगे कहीं
बे-बदल हुस्न-ए-जहाँ-सोज़ पे नाज़ाँ होंगे

फूल बिस्तर पे बिछाने को अगर हासिल थे
सैर के वास्ते बाग़ और गुलिस्ताँ होंगे

इत्र मलने के लिए कपड़े बदलने के लिए
महल-ओ-ऐवाँ में बहुत दस्त-ए-हसीनाँ होंगे

नित-नई रोज़ मयस्सर थी उन्हें बज़्म-ए-सुरूद
दिल बहलने के लिए सैंकड़ों सामाँ होंगे

एक लम्हा भी गुज़रता था जो तन्हाई में
मुज़्तरिब और परेशान ये ज़ीशाँ होंगे

गोर-ओ-मर्क़द पे यूँही सैर को आते होंगे
और सीनों में लिए हसरत-ओ-अरमाँ होंगे

क्या ख़बर थी कि उजड़ जाएगा गुलज़ार-ए-हयात
एक झोंके से हवा के न ये सामाँ होंगे

क्या यूँही मौत मिटाएगी जहाँ से हम को
क्या यूँही अपने लिए दश्त-ओ-बयाबाँ होंगे

ज़िंदगी में न करेंगे जो बशर कार-ए-सवाब
वक़्त-ए-रुख़्सत वो परेशान-ओ-पशेमाँ होंगे

'आफ़्ताब' उन की समझता हूँ हयात-ए-अबदी
जो बशर धर्म पे सौ-जान से क़ुर्बां होंगे
Read Full
Lala Anoop Chand Aaftab Panipati
0 Likes