Naaz Muradabadi

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@naaz-muradabadi

Naaz Muradabadi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Naaz Muradabadi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
मिरी जुस्तुजू का हासिल मिरा शौक़-ए-वालिहाना
मिरी आरज़ू की मंज़िल न चमन न आशियाना

कोई दिल जहाँ बना है ग़म-ए-इश्क़ का निशाना
वहीं रास आ गई है उसे गर्दिश-ए-ज़माना

कभी याद आ गई है तो घटाएँ छा गई हैं
मैं किसे बताऊँ क्या है तिरी ज़ुल्फ़-ए-काफ़िराना

मिरी शाइ'री में पिन्हाँ मिरे दिल की धड़कनें हैं
मिरी हर ग़ज़ल है गोया ग़म-ए-इश्क़ का फ़साना

ये नज़र नज़र तबाही ये क़दम क़दम मुसीबत
कहीं पस्त हो न जाए मिरा अज़्म-ए-फ़ातेहाना

तिरी हम्द क्या करेंगे ये बयाँ ये लफ़्ज़-ओ-मा'नी
तिरा हुस्न भी अनोखा तिरी ज़ात भी यगाना

ये फ़रोग़-ए-गुलसिताँ है कि बहार से अयाँ है
तिरे हुस्न की हक़ीक़त मिरे इश्क़ का फ़साना

मिरी हर ग़ज़ल है गोया मिरी ज़िंदगी का हासिल
कि हर एक शेर में है मिरा सोज़-ए-आशिक़ाना

ये है नाज़-ए-शौक़ इंसाँ कि रसाई है फ़लक तक
मिरे दर्द-ए-दिल को लेकिन न समझ सका ज़माना
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Naaz Muradabadi
गुज़र कर आदमी राह-मुसीबत से सँवरता है
क़मर का नूर शब की ज़ुल्मतों में ही निखरता है

ब-जुज़ दर्द-ए-हयात-ए-ग़म नहीं मिलता कहीं कुछ भी
बशर दुनिया-ए-फ़ानी में जहाँ से भी गुज़रता है

गुलों की पत्तियाँ जैसे गुलों से रूठ जाती हैं
दम-ए-तन्हाई-ए-ग़म कुछ मिरा दिल यूँ बिखरता है

ब-सूरत क़तरा-ए-शबनम हूँ मैं ख़ार-ए-गुलिस्ताँ पर
मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ से भी डरता है

ये देखा है नहीं बे-फ़ैज़ आमद अब्र-ए-नैसाँ की
कोई अंजाम होता है बशर जो कुछ भी करता है

फ़रिश्तों का गुज़र जिन मंज़िलों से ग़ैर-मुमकिन है
बशर की अज़्मतें देखो वहाँ से भी गुज़रता है

निकोहिश नाख़ुन-ए-नादाँ पे क़ाबू पा ही जाती है
बड़ा परहेज़ करते हैं कहीं तब ज़ख़्म भरता है

सँभल ऐ फ़िरक़ा-ए-उश्शाक़ अब फिर इम्तिहाँ होगा
सर-ए-चिलमन किसी काफ़िर का फिर गेसू सँवरता है

उलझते हैं तिरे कूचे में जो मुर्ग़-ए-चमन के पैर
दम-ए-परवाज़ गुलशन से किसी का दिल भी भरता है

फ़ना करता है पहले ज़िंदगी की हर तमन्ना को
कहीं तब जा के इंसाँ पस्ती-ए-ग़म से उभरता है

इसी बाइ'स वुफ़ूर-ए-ग़म में अक्सर 'नाज़' हँसते हैं
मुसीबत और बढ़ती है जो ग़म से जितना डरता है
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वो कौन है दुनिया में जो मजबूर नहीं है
इंसाँ को किसी बात का मक़्दूर नहीं है

हर शय पे तिरे हुस्न का जादू है अज़ल से
क्या चीज़ तिरे हुस्न से मसहूर नहीं है

महकूम बना लेता बशर अर्ज़-ओ-समा को
लेकिन वो करे क्या उसे मक़्दूर नहीं है

दुनिया में उसे ऐश-ओ-मसर्रत न मिलेंगे
वो दिल जो ग़म-ए-इश्क़ से रंजूर नहीं है

माना कि हक़ीक़त को समझना नहीं आसाँ
इंसान हक़ीक़त से मगर दूर नहीं है

है साहब-ए-ईमाँ की कमी अहल-ए-जहाँ में
इक राज़ भी वर्ना तिरा मस्तूर नहीं है

उट्ठो कि ज़माने को गुनाहों से बचाएँ
जो दिन है क़यामत का वो दिन दूर नहीं है

कुछ कीजिए आ'माल सँवर जाएँ जहाँ में
कुछ सोचिए अब वक़्त-ए-क़ज़ा दूर नहीं है

तूफ़ान की हर मौज है इक दर्स-ए-हक़ीक़त
साहिल पे पहुँचना मुझे मंज़ूर नहीं है

एहसास-ए-सदाक़त जो नहीं अहल-ए-तलब में
चेहरों पे भी ईमान का वो नूर नहीं है

माना कि हर इक इशरत-ए-आलम है मयस्सर
इंसान मगर आज भी मसरूर नहीं है

हर क़ौम का एहसास नहीं जिस के अमल में
दर-अस्ल वो जम्हूर भी जम्हूर नहीं है

है 'नाज़' का हर शेर ख़ुद इक शम-ए-फ़रोज़ाँ
ये बात अलग है कि वो मशहूर नहीं है
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Naaz Muradabadi
दिल शब-ए-फ़ुर्क़त सुकूँ की जुस्तुजू करता रहा
रात-भर दीवार-ओ-दर से गुफ़्तुगू करता रहा

जो बहारों की चमन में आरज़ू करता रहा
नज़्र-ए-रंग-ओ-बू ख़ुद अपना ही लहू करता रहा

अपनी नज़रों को ख़राब-ए-जुस्तुजू करता रहा
जो मुसलसल इम्तियाज़-ए-रंग-ओ-बू करता रहा

शीशा-ए-दिल जो नज़ाकत में गुहर से कम नहीं
इश्क़ में कैसे सितम सहने की ख़ू करता रहा

आशिक़ी में उस की नाकामी भी नाकामी नहीं
जो फ़ना हो कर भी तेरी जुस्तुजू करता रहा

तेरी चश्म-ए-मस्त से पीने के जो क़ाबिल न था
मय-कदे में ख़्वाहिश-ए-जाम-ओ-सुबू करता रहा

सोचना ये है कि उस के ख़ून-ए-दिल को क्या हुआ
जो क़फ़स में आरज़ू-ए-रंग-ओ-बू करता रहा

दिल ने जोश-ए-शौक़ में कितने ही सज्दे कर लिए
दीदा-ए-तर ख़ून-ए-दिल से ही वुज़ू करता रहा

जिस ने पैहम कोशिशें कीं अम्न-ए-आलम के लिए
वो ख़ुद अपने ही चमन को सुर्ख़-रू करता रहा

वो सितम ढाते रहे हर दिल पे और हर ज़ख़्म-ए-दिल
शिकवा-ए-बेदाद उन्हीं के रू-ब-रू करता रहा

ऐसे दीवाने को क्या चाक-ए-गरेबाँ की हो क़द्र
उम्र-भर जो चाक-ए-दामन ही रफ़ू करता रहा

सारे आलम को रही ऐ 'नाज़' उस की जुस्तुजू
अपने जल्वों को अयाँ वो कू-ब-कू करता रहा
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