Nabiul Hasan Shamim

Nabiul Hasan Shamim

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Nabiul Hasan Shamim shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Nabiul Hasan Shamim's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
आरज़ू-ए-दिल-ए-सद-चाक है दरमाँ होना
या'नी कुछ और तिरी तेग़ का एहसाँ होना

मौत आना है ग़म-ए-हिज्र का दरमाँ होना
ये वो मुश्किल है कि आसान नहीं आसाँ होना

मक़्सद-ए-ज़ीस्त है क़ुर्बां ब-दिल-ओ-जाँ होना
नाम एहसास-ए-फ़राएज़ का है इंसाँ होना

बन गए ताइर-ए-तस्वीर क़फ़स में आ कर
रास आया न असीरों को ख़ुश-इल्हाँ होना

रह गई अब तो यही एक इबादत अपनी
याद कर कर के गुनाहों को पशेमाँ होना

बाइस-ए-मर्ग हुई जोशिश-ए-शौक़-ए-बिस्मिल
उस की क़िस्मत में न था आप का एहसाँ होना

आइना-दार-ए-हक़ीक़त है ख़ुशा जोश-ए-जुनूँ
ज़र्रे ज़र्रे का बयाबाँ के बयाबाँ होना

मेरी बालीं पे न बैठो कि बहुत मुश्किल है
जान से दूर शरीक-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ होना

मुस्कुरा कर ये पस-ए-क़त्ल भी कहता है 'शमीम'
वो भी हो जाए जो बाक़ी है मिरी जाँ होना
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Nabiul Hasan Shamim
हमें सफ़ीना-ए-हस्ती का रहनुमा न मिला
ख़ुदा को साथ लिया कोई नाख़ुदा न मिला

सुकून-ए-क़ल्ब मिला बे-नियाज़ियाँ पाईं
उठाए हाथ जो तेरी तरफ़ तो क्या न मिला

किसी की शिरकत-ए-अग़्यार कब गवारा थी
ख़ुदा का शुक्र कोई दर्द-आश्ना न मिला

तड़प तड़प के तिरे बिस्मिलों ने मक़्तल में
बढ़ाए हाथ मगर दामन-ए-क़ज़ा न मिला

मिली थी आँख तो फिर ताब-ए-दीद भी मिलती
तजल्लियों के तमाशा में कुछ मज़ा न मिला

था इज़्तिराब में वो लुत्फ़-ए-ज़िंदगी मुज़्मर
फिर उस के बाद किसी बात में मज़ा न मिला

तुम्हारी शोख़ी-ए-तक़रीर का तो क्या कहना
जवाब साफ़ कभी मेरी बात का न मिला

निगाह शर्म से नीची रही पशेमाँ की
वो बे-वफ़ा जो मिला भी तो बे-वफ़ा न मिला

शरीक-ए-हाल अब अहबाब तक नहीं होते
'शमीम' हम को भी क़िस्मत से क्या ज़माना मिला
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Nabiul Hasan Shamim
तुम चले आओ तो ज़ौक़-ए-ग़म-ए-हिज्राँ भी नहीं
जान देने का कुछ ऐसा मुझे अरमाँ भी नहीं

देखता है कि कोई बात का पुरसाँ भी नहीं
तिरे बीमार को अब ख़्वाहिश-ए-दरमाँ भी नहीं

मिरी वहशत के असर से था ज़माना वीराँ
मैं बयाबाँ में नहीं हूँ तो बयाबाँ भी नहीं

बाइस-ए-क़त्ल हुआ हाल-ए-ज़बून-ए-बिस्मिल
ये अगर सच है तो फिर आप का एहसाँ भी नहीं

मेरा मरना भी है मौक़ूफ़ इरादों पे तिरे
जिस को आसान समझता हूँ वो आसाँ भी नहीं

तेरे पैकान-ए-सितम का हुआ मक़्सद हासिल
ज़ख़्म दिल में है मिरे और नुमायाँ भी नहीं

हम-नवा सोच में हैं बाग़ है सूना सूना
मैं क़फ़स में हूँ तो वो रंग-ए-गुलिस्ताँ भी नहीं

दिल-ए-गुम-गश्ता से मिलने की तमन्ना है 'शमीम'
ये वो ख़्वाहिश है कि जिस का कोई इम्काँ भी नहीं
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Nabiul Hasan Shamim