Osaama ameer

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@osaama-ameer

Osaama ameer shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Osaama ameer's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Ghazal
कभी कभी मैं उन्हें दिल में आन रखता हूँ
फिर एक ख़्वाब में दोनों जहान रखता हूँ

जब आसमान सभी के सरों पे क़ाएम है
तो किस के वास्ते मैं साएबान करता हूँ

मैं लफ़्ज़-ओ-मा'नी बदलते हुए सर-ए-क़िर्तास
पलट के फिर वही नौहा बयान रखता हूँ

अज़ल से एक ही नुक़सान खा रहा है मुझे
अज़ल से ख़ुद को फ़क़त राएगान रखता हूँ

सदा-ए-कुन पे बिना आदमी की रक्खी गई
इस एक सौत पे मैं अपने कान रखता हूँ

अजीब रम्ज़ है क़िर्तास और लकीर के बीच
ज़मीन खींचता हूँ आसमान रखता हूँ

पुराना अक्स नया अक्स बन के उभरेगा
मैं आइने के मुक़ाबिल गुमान रखता हूँ

वो मेरे वास्ते क्या क्या सँभाले रखता है
मैं उस के वास्ते किस किस का ध्यान रखता हूँ
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Osaama ameer
अजब आहंग था उस शोर में भी ख़र्च हुई
मेरी आवाज़-ए-सुकूत-ए-अजबी ख़र्च हुई

एक ही आन में दीदार हुआ बात हुई
ख़्वाहिश-ए-वस्ल सर-ए-तूर सभी ख़र्च हुई

ज़िंदगी तेरे तआ'क़ुब में गुज़ारी हुई शब
बड़ी मुश्किल से मिली और यूँही ख़र्च हुई

सुब्ह तक ज़ुल्फ़-ए-सियह-रंग का जादू था अजब
रात बोतल में थी जितनी भी बची ख़र्च हुई

सुब्ह उठते ही मैं कुछ धूप भरुँगा इन में
ख़्वाब देखें हैं तो आँखों की नमी ख़र्च हुई

कितनी तह-दार ख़ला है ये ख़ला के अंदर
आसमाँ देख के नूर-ए-नज़री ख़र्च हुई

क्या ही अच्छी थी कलाई में बंधी रहती थी
वक़्त को देखते रहने से घड़ी ख़र्च हुई

बड़ी वीरानी सर-ए-कूचा-ए-ज़ुल्मत है नसीब
आप आए हैं तो थोड़ी ही सही ख़र्च हुई
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