Peer Nasiruddin Naseer

Peer Nasiruddin Naseer

@peer-nasiruddin-naseer

Peer Nasiruddin Naseer shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Peer Nasiruddin Naseer's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
उठे न थे अभी हम हाल-ए-दिल सुनाने को
ज़माना बैठ गया हाशिए चढ़ाने को

भरी बहार में पहुँची ख़िज़ाँ मिटाने को
क़दम उठाए जो कलियों ने मुस्कुराने को

जलाया आतिश-ए-गुल ने चमन में हर तिनका
बहार फूँक गई मेरे आशियाने को

जमाल-ए-बादा-ओ-साग़र में हैं रुमूज़ बहुत
मिरी निगाह से देखो शराब-ख़ाने को

क़दम क़दम पे रुलाया हमें मुक़द्दर ने
हम उन के शहर में आए थे मुस्कुराने को

न जाने अब वो मुझे क्या जवाब देते हैं
सुना तो दी है उन्हें दास्ताँ सुनाने को

कहो कि हम से रहें दूर हज़रत-ए-वा’इज़
बड़े कहीं के ये आए सबक़ पढ़ाने को

अब एक जश्न-ए-क़ियामत ही और बाक़ी है
अदाओं से तो वो बहला चुके ज़माने को

शब-ए-फ़िराक़ न तुम आ सके न मौत आई
ग़मों ने घेर लिया था ग़रीब-ख़ाने को

'नसीर' जिन से तवक़्क़ो' थी साथ देने की
तुले हैं मुझ पे वही उँगलियाँ उठाने को
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Peer Nasiruddin Naseer
मिरी ज़ीस्त पर मसर्रत कभी थी न है न होगी
कोई बेहतरी की सूरत कभी थी न है न होगी

मुझे हुस्न ने सताया मुझे इश्क़ ने मिटाया
किसी और की ये हालत कभी थी न है न होगी

वो जो बे-रुख़ी कभी थी वही बे-रुख़ी है अब तक
मिरे हाल पर इनायत कभी थी न है न होगी

वो जो हुक्म दें बजा है मिरा हर सुख़न ख़ता है
उन्हें मेरी रू-रिआयत कभी थी न है न होगी

जो है गर्दिशों ने घेरा तो नसीब है वो मेरा
मुझे आप से शिकायत कभी थी न है न होगी

तिरे दर से भी निबाहे दर-ए-ग़ैर को भी चाहे
मिरे सर को ये इजाज़त कभी थी न है न होगी

तिरा नाम तक भुला दूँ तिरी याद तक मिटा दूँ
मुझे इस तरह की जुरअत कभी थी न है न होगी

मैं ये जानते हुए भी तिरी अंजुमन में आया
कि तुझे मिरी ज़रूरत कभी थी न है न होगी

तू अगर नज़र मिलाए मिरा दम निकल ही जाए
तुझे देखने की हिम्मत कभी थी न है न होगी

जो गिला किया है तुम से तो समझ के तुम को अपना
मुझे ग़ैर से शिकायत कभी थी न है न होगी

तिरा हुस्न है यगाना तिरे साथ है ज़माना
मिरे साथ मेरी क़िस्मत कभी थी न है न होगी

ये करम है दोस्तों का वो जो कह रहे हैं सब से
कि 'नसीर' पर इनायत कभी थी न है न होगी
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