हमारे सामने जब लोग अपना सर उठाते हैं
हमें लगता है जैसे हाथ में पत्थर उठाते हैं
हमें जीने नही देगी ये ख़ुद्दारी भी दुनिया में
चलो हम भी यहाँ से बोरिया बिस्तर उठाते हैं
ज़रा सा हौसला हो तो क़लम परवाज़ भी देगा
क़लम ऐसे उठा जैसे ये पंछी पर उठाते हैं
बुलंदी भार है लेकिन मिले मज़बूत ये काँधे
ज़मीं पर बैठ कर हम आसमाँ अक्सर उठाते हैं
ये हालत आजकल मेरी दवा ऐसे उठाती है
कि बच्चे देख कर जैसे कोई शक्कर उठाते हैं
क़दम बाहर करो उतना तुम्हारी सौड़ हो जितनी
यही सुन सुन के सारी रात हम चादर उठाते हैं
सुलझते हैं सभी मुद्दे बिना ख़ूॅं और ख़राबे से
बड़े कमज़ोर बंदे हाथ में ख़ंजर उठाते हैं,
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