Qaisar Nizami

Qaisar Nizami

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Qaisar Nizami shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Qaisar Nizami's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
कह रही है सारी दुनिया तेरा दीवाना मुझे
तेरी नज़रों ने बना डाला है अफ़्साना मुझे

इश्क़ में अब मिल गई है मुझ को मेराज-ए-जुनूँ
अब तो वो भी कह रहे हैं अपना दीवाना मुझे

दर्स-ए-इबरत है तुम्हारे वास्ते मेरा मआल
ग़ुंचा ओ गुल को सुनाना है ये अफ़्साना मुझे

इक निगाह-ए-नाज़ ने साक़ी की ये क्या कर दिया
रफ़्ता रफ़्ता कह उठे सब पीर-ए-मय-ख़ाना मुझे

तू सरापा नूर है मैं तेरा अक्स-ए-ख़ास हूँ
कह रहे हैं यूँ तिरा सब आईना-ख़ाना मुझे

सुन रही थी शौक़ से दुनिया जिसे ऐ हम-नफ़स
याद है हाँ याद है वो मेरा अफ़्साना मुझे

नूर से भर पूर हो जाती है बज़्म-ए-आरज़ू
जब कभी वो देखते हैं बे-हिजाबाना मुझे

अल-मदद ऐ ज़ोहद बढ़ कर रोक ले मेरे क़दम
तिश्नगी फिर ले चली है सू-ए-मय-ख़ाना मुझे

हम-नफ़स मेरी तो फ़ितरत ही सना-ए-हुस्न है
इश्क़ के बंदे कहा करते हैं दीवाना मुझे

मुझ को 'क़ैसर' मय-कदे से निकले इक मुद्दत हुई
याद करते हैं अभी तक जाम ओ पैमाना मुझे
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Qaisar Nizami
मोहब्बत बाइस-ए-दीवानगी है और बस मैं हूँ
कि अब पैहम इनायत आप की है और बस मैं हूँ

सुकूँ हासिल है दिन में और न शब को चैन मिलता है
कि अब तो कशमकश में ज़िंदगी है और बस मैं हूँ

न जाने माजरा क्या है नज़र कुछ भी नहीं आता
कि अब हद्द-ए-नज़र तक तीरगी है और बस मैं हूँ

नहीं है आज मुझ को ख़दशा-ए-ज़ुल्मत ज़माने में
रुख़-ए-ताबाँ की उन के रौशनी है और बस मैं हूँ

क़दम क्या डगमगाएँगे रह-ए-उल्फ़त में ऐ साक़ी
बहुत ही मुख़्तसर सी बे-ख़ुदी है और बस मैं हूँ

तिरे नक़्श-ए-क़दम पर सर झुकाना काम है अपना
ख़ुदा शाहिद ये मेरी बंदगी है और बस मैं हूँ

उन्हें रूदाद-ए-ग़म अपनी सुनाऊँ किस तरह 'क़ैसर'
वही उन की अदा-ए-बरहमी है और बस मैं हूँ
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