Saadat Nazeer

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Saadat Nazeer shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Saadat Nazeer's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
  • Nazm
मेरे दिल-ए-वहशी की बस इतनी हक़ीक़त है
इक दर्द का आलम है दुनिया-ए-मोहब्बत है

हमदर्द किसी का अब दुनिया में नहीं कोई
बदला हुआ हर इक का अंदाज़-ए-तबीअत है

रूदाद-ए-शहीदाँ है ईसार का आईना
ईसार का आईना शहकार-ए-हक़ीक़त है

हर ग़ुंचा-ए-नौरस्ता कहता है ये गुलचीं से
फूलों पे सितम ढाना अंजाम से ग़फ़लत है

गुलज़ार-ए-वतन का क्यों हर दम न ख़याल आए
दिल के लिए काँटा सा ये वादी-ए-ग़ुर्बत है

मुझ पर जो गुज़रती है औरों की बला जाने
सहना है मुझे ख़ुद ही ये मेरी मुसीबत है

आकर मिरी मिज़्गाँ पर जब अश्क चमकते हैं
वो कहते हैं मोती हैं अल्लाह की क़ुदरत है

नग़्मात-ए-'सआदत' में इक गुल के तअ'ल्लुक़ से
कलियों की नज़ाकत है शबनम की लताफ़त है
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वो ज़िंदगी जो शब-ए-इंतिज़ार गुज़री थी
तिरे करम से बहुत ख़ुश-गवार गुज़री थी

ग़ज़ब कि आज वही दिल है ग़म-कश-ए-दुनिया
निगाह-ए-नाज़ भी कल जिस पे बार गुज़री थी

सुकूँ-नसीब वही अब हैं जिन की उम्र कभी
हरीफ़-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार गुज़री थी

फ़रेब-ए-नूर-ए-सहर दे गई निगाहों को
जो बर्क़ रात सर-ए-शाख़-सार गुज़री थी

ज़माना आज क़यामत समझ रहा है जिसे
वही तो सर से मिरे बार बार गुज़री थी

ख़बर है किस को नशेमन के चार तिनकों की
ये जानता हूँ सबा बे-क़रार गुज़री थी

न जाने क्यों है मोहब्बत को फिर उसी की तलाश
वो बरहमी जो कभी नागवार गुज़री थी

'नज़ीर' लाला-ओ-गुल पर निखार है अब तक
है कब की बात चमन से बहार गुज़री थी
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कहा किस ने कि मरना क़ैद से ग़म की निकलना है
अजल तो इक हयात-ए-इश्क़ का पहलू बदलना है

फ़क़त सय्याद ही का डर नहीं अहल-ए-नशेमन को
अभी बर्क़-ए-बला की ज़द से भी बच कर निकलना है

लब-ए-साहिल पहुँचने की ख़ुशी कैसी अभी ऐ दिल
तलातुम-ख़ेज़ तूफ़ानों से टकरा कर निकलना है

अभी इन इब्तिदाई मुश्किलों पर रंज-ओ-ग़म कैसा
हमें तो वर्ता-ए-बहर-ए-हवादिस ही में पलना है

बला से हक़-बयानी पर सज़ा मिलती है भुगतेंगे
हमें भी सरमद-ओ-मंसूर ही की राह चलना है

भला तुम मस्लहत इस ज़ब्त-ए-सोज़-ए-ग़म की क्या जानो
जो फूंकें ज़ुल्म के ख़िरमन को वो शो'ले उगलना है

ये रस्म-ए-मय-कदा है गाह मस्ती गाह हुश्यारी
सँभल कर गिर चुके अब गिर के फिर हम को सँभलना है

वो होंगे और जो फूलों की सेजों पर हैं ख़्वाबीदा
हमें ऐ दूरी-ए-मंज़िल अभी काँटों पे चलना है
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