Saail Dehlvi

Saail Dehlvi

@saail-dehlvi

Saail Dehlvi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Saail Dehlvi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

13

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
सुना भी कभी माजरा दर्द-ओ-ग़म का किसी दिल-जले की ज़बानी कहो तो
निकल आएँ आँसू कलेजा पकड़ लो करूँ अर्ज़ अपनी कहानी कहो तो

तुम्हें रंग-ए-मय शैख़ मर्ग़ूब क्या है गुलाबी हो या ज़ा'फ़रानी कहो तो
पिलाए कोई साक़ी-ए-हूर-पैकर मुसफ़्फ़ा कशीदा पुरानी कहो तो

तमन्ना-ए-दीदार है हसरत-ए-दिल कि तुम जल्वा-फ़रमा हो मैं आँखें सेकूँ
न कह देना मूसा से जैसे कहा था मिरी अर्ज़ पर लन-तरानी कहो तो

वफ़ा-पेशा आशिक़ नहीं देखा तुम ने मुझे देख लो जाँच लो आज़मा लो
तुम्हारे इशारे पे क़ुर्बान कर दूँ अभी माया-ए-ज़िंदगानी कहो तो

कहाँ मैं कहाँ दास्ताँ का तक़ाज़ा मिरे ज़ब्त-ए-दर्द-ए-निहाँ का है कहना
फिर उस पर ये ताकीद भी है बराबर न कहना पुरानी कहानी कहो तो

मिरे नामा-ए-शौक़ की सत्र में है जगह इक जो सादा वो मोहमल नहीं है
मैं हो जाऊँ ख़िदमत में हाज़िर अभी ख़ुद बताने को इस के मआ'नी कहो तो
Read Full
Saail Dehlvi
उड़ा सकता नहीं कोई मिरे अंदाज़-ए-शेवन को
ब-मुश्किल कुछ सिखाया है नवा-संजान-ए-गुलशन को

गरेबाँ चाक करने का सबब वहशी ने फ़रमाया
कि उस के तार ले कर मैं सियूंगा चाक-ए-दामन को

बहार आते ही बटती हैं ये चीज़ें क़ैद-ख़ानों में
सलासिल हाथ को पाँव को बेड़ी तौक़ गर्दन को

झड़ी ऐसी लगा दी है मिरे अश्कों की बारिश ने
दबा रक्खा है भादों को भुला रक्खा है सावन को

दिल-ए-मरहूम की मय्यत इजाज़त दो तो रख दें हम
तिरे तलवे-बराबर ही ज़मीं काफ़ी है मदफ़न को

इजाज़त दो तो सारी अंजुमन के दिल हिला दूँ मैं
समझ रक्खा है तुम ने हेच तासीरात-ए-शेवन को

सुलूक-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना की ऐ साक़ी तलाफ़ी क्या
ब-जुज़ इस के दुआएँ दो उसे फैला के दामन को
Read Full
Saail Dehlvi
ज़ोम न कीजो शम्अ-रू बज़्म के सोज़ ओ साज़ पर
रखियो नज़र बजा-ए-नाज़ ख़ातिर-ए-पीर-ए-नाज़ पर

ज़ेब नहीं है शैख़ ये मय-कश-ए-पाक-बाज़ पर
तोहमतें सौ लगाएगा दाग़-ए-जबीं नियाज़ पर

कहता हूँ हर हसीं से मैं नियत-ए-इश्क़ है मिरी
आएगा मेरा दिल मगर शाहिद-ए-दिल-नवाज़ पर

फ़र्क़ हयात ओ मर्ग का मुर्ग़-ए-चमन के दिल से पूछ
देता है फ़ौक़ दाम को चंगुल-ए-शाह-बाज़ पर

ख़्वाब-ए-लहद है पुर-सुकूँ अहद-ए-हयात पुर-अलम
मौत न क्यूँ हो ताना-ज़न ज़िंदगी-ए-दराज़ पर

संग-ए-दर-ए-हबीब पर होता हूँ सज्दा-रेज़ मैं
ख़ल्क़-ए-ख़ुदा है मो'तरिज़ मुझ पे मिरी नमाज़ पर

मुनइम-ए-बे-बसर यूँही देखिए ता-कुजा रहे
महव-ए-नशात ओ ख़ुश-दिली नग़्मा-ए-तार-ए-साज़ पर

फ़ख़्र-ए-अमल न चाहिए सई-ए-अमल ज़रूर है
आँख रहे लगी हुई रहमत-ए-कारसाज़ पर

दर पे बुतों के दी सदा 'स़ाएल'-ए-बे-नवा ने ये
फ़ज़्ल-ए-ख़ुदा रहे मुदाम हाल-ए-गदा-नवाज़ पर
Read Full
Saail Dehlvi
वफ़ा का बंदा हूँ उल्फ़त का पासदार हूँ मैं
हरीफ़-ए-क़ुमरी-ओ-परवाना-ए-हज़ार हूँ मैं

जुदा जुदा नज़र आती है जल्वा-ए-तासीर
क़रार हो गया मूसा को बे-क़रार हूँ मैं

ख़ुमार जिस से न वाक़िफ़ हो वो सुरूर हैं आप
सुरूर जिस से न आगाह हो वो ख़ुमार हूँ मैं

समा गया है ये सौदा अजीब सर में मिरे
करम का अहल-ए-सितम से उम्मीद-वार हूँ मैं

एवज़ दवा के दुआ दे गया तबीब मुझे
कहा जो मैं ने ग़म-ए-हिज्र से दो-चार हूँ मैं

शबाब कर दिया मेरा तबाह उल्फ़त ने
ख़िज़ाँ के हाथ की बोई हुई बहार हूँ मैं

क़रार-दाद-ए-गरेबाँ हुई ये दामन से
कि पुर्ज़े पुर्ज़े अगर हो तो तार तार हूँ मैं

मिरे मज़ार को समझा न जाए एक मज़ार
हज़ार हसरत-ओ-अरमाँ का ख़ुद मज़ार हूँ मैं

'ज़हीर' ओ 'अरशद' ओ 'ग़ालिब' का हूँ जिगर-गोशा
जनाब-ए-'दाग़' का तिल्मीज़ ओ यादगार हूँ मैं

अमीर करते हैं इज़्ज़त मिरी हूँ वो 'साइल'
गुलों के पहलू में रहता हूँ ऐसा ख़ार हूँ मैं
Read Full
Saail Dehlvi
मिले ग़ैरों से मुझ को रंज ओ ग़म यूँ भी है और यूँ भी
वफ़ा-दुश्मन जफ़ा-जू का सितम यूँ भी है और यूँ भी

कहीं वामिक़ कहीं मजनूँ रक़म यूँ भी है और यूँ भी
हमारे नाम पर चलता क़लम यूँ भी है और यूँ भी

शब-ए-वादा वो आ जाएँ न आएँ मुझ को बुलवा लें
इनायत यूँ भी है और यूँ भी करम यूँ भी है और यूँ भी

उदू लिक्खे मुझे नामा तुम्हारी मोहर उस का ख़त
जफ़ा यूँ भी है और यूँ भी सितम यूँ भी है और यूँ भी

न ख़ुद आएँ न बुलवाएँ शिकायत क्यूँ न लिख भेजूँ
इनायत की नज़र मुझ पर करम यूँ भी है और यूँ भी

ये मस्जिद है ये मय-ख़ाना तअज्जुब इस पर आता है
जनाब-ए-शैख़ का नक़्श-ए-क़दम यूँ भी है और यूँ भी

तुझे नव्वाब भी कहते हैं शाइर भी समझते हैं
ज़माने में तिरा 'साइल' भरम यूँ भी है और यूँ भी
Read Full
Saail Dehlvi
ख़िज़ाँ का जो गुलशन से पड़ जाए पाला
तो सेहन-ए-चमन में न गुल हो न लाला

लिया तेरे आशिक़ ने बरसों सँभाला
बहुत कर गया मरने वाला कसाला

पए-फ़ातेहा हाथ उठावेगा कोई
सर-ए-तुर्बत-ए-बेकसाँ आने वाला

इसी गिर्या के तार से मेरी आँखें
बना देंगी नद्दी बहा देंगी नाला

बिठा कर तुम्हें शम्अ' के पास देखा
तुम आँखों की पुतली वो घर का उजाला

ख़त-ए-शौक़ को पढ़ के क़ासिद से बोले
ये है कौन दीवाना ख़त लिखने वाला

दिया हुक्म साक़ी को पीर-ए-मुग़ाँ ने
पय-ए-मुहतसिब जाम-ओ-मीना उठा ला

ये सुनते ही मय-ख़्वार बोले ख़ुशी से
हमीं सा है ये नेक अल्लाह वाला

हक़ीक़त में 'साइल' ने ज़ौक़-ए-अदब से
जहाँ तक उछाला गया नाम उछाला
Read Full
Saail Dehlvi
हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले
ज़रा तुम भी तो देखो हम को तुम भी हो नज़र वाले

नज़र आएँगे नक़्श-ए-पा जहाँ उस फ़ित्नागर वाले
चलेंगे सर के बल रस्ता वहाँ के रहगुज़र वाले

सितम-ईजादियों की शान में बट्टा न आ जाए
न करना भूल कर तुम जौर चर्ख़-ए-कीना-वर वाले

जफ़ा-ओ-जौर-ए-गुल-चीं से चमन मातम-कदा सा है
फड़कते हैं क़फ़स की तरह आज़ादी में पर वाले

अलिफ़ से ता-ब-या लिल्लाह अफ़्साना सुना दीजे
जनाब-ए-मूसा-ए-इमराँ वही हैरत-नगर वाले

हमें मालूम है हम मानते हैं हम ने सीखा है
दिल आज़ुर्दा हुआ करते हैं अज़ हद चश्म-ए-तर वाले

कटाने को गला आठों पहर मौजूद रहते हैं
वो दिल वाले जिगर वाले सही हम भी हैं सर वाले

तमाशा देख कर दुनिया का 'साइल' को हुई हैरत
कि तकते रह गए बद-गौहरों का मुँह गुहर वाले
Read Full
Saail Dehlvi
हक़-ओ-नाहक़ जलाना हो किसी को तो जला देना
कोई रोए तुम्हारे सामने तुम मुस्कुरा देना

तरद्दुद बर्क़-रेज़ों में तुम्हें करने की क्या हाजत
तुम्हें काफ़ी है हँसता देख लेना मुस्कुरा देना

दिलों पर बिजलियाँ गिरने की सूरत गर कोई पूछे
तो मैं कह दूँ तुम्हारा देख लेना मुस्कुरा देना

हुई बिजली से किस दिन नक़्ल अंदाज़-ए-सितमगारी
तुम्हारी तरह सीखा लाख उस ने मुस्कुरा देना

सितमगारी की तालीमें उन्हें दी हैं ये कह कह कर
कि रोता जिस किसी को देख लेना मुस्कुरा देना

तकल्लुफ़-बर-तरफ़ क्यूँ फूल ले कर आओ तुर्बत पर
मगर जब फ़ातिहा को हाथ उठाना मुस्कुरा देना

न क्यूँ हम इंक़िलाब-ए-दहर को मानें अगर देखें
गुलों का नाला करना बुलबुलों का मुस्कुरा देना

न जाना ना-तवानी पर कि अब भी सई-ए-नाख़ुन से
दिखा सकते हैं हम ज़ख़्म-ए-कुहन का मुस्कुरा देना

तुम्हारे नाम में क्या ज़ाफ़राँ की शाख़ है 'साइल'
कि जो सुनता है इस को उस को सुन कर मुस्कुरा देना
Read Full
Saail Dehlvi
अमानत मोहतसिब के घर शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी
तो ये समझो कि बुनियाद-ए-ख़राबात-ए-मुग़ाँ रख दी

कहूँ क्या पेश-ए-ज़ाहिद क्यूँ शराब-ए-अर्ग़वाँ रख दी
मिरी तौफ़ीक़ जो कुछ थी बराए मेहमाँ रख दी

यहाँ तक तो निभाया मैं ने तर्क-ए-मय-परस्ती को
कि पीने को उठा ली और लीं अंगड़ाइयाँ रख दी

जनाब-ए-शैख़ मय-ख़ाने में बैठे हैं बरहना-सर
अब उन से कौन पूछे आप ने पगड़ी कहाँ रख दी

तुम्हें पर्वा न हो मुझ को तो जिंस-ए-दिल की पर्वा है
कहाँ ढूँडूँ कहाँ फेंकी कहाँ देखूँ कहाँ रख दी

लगा लेंगे उसे अहल-ए-वफ़ा बे-शुबह आँखों से
अगर पा-ए-अदू पर उस ने ख़ाक-ए-आस्ताँ रख दी

इधर पर नोच कर डाला क़फ़स में उफ़ रे बेदर्दी
उधर इक जलती चिंगारी मियान-ए-आशियाँ रख दी

ज़मीर उस का डुबो देगा उसे आब-ए-ख़जालत में
वफ़ादारी की तोहमत ग़ैर पर क्यूँ बद-गुमाँ रख दी

हवस मस्ती की 'साइल' को नहीं काफ़ी है थोड़ी सी
प्याले में अगर पस-ख़ुर्दा-ए-पीर-ए-मुग़ाँ रख दी
Read Full
Saail Dehlvi
बसा-औक़ात आ जाते हैं दामन से गरेबाँ में
बहुत देखे हैं ऐसे जोश अश्क-ए-चश्म-ए-गिर्यां में

नहीं है ताब ज़ब्त-ए-ग़म किसी आशिक़ के इम्काँ में
दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता या दामन में होगा या गरेबाँ में

मुबारक बादिया-गर्दो बहार आई बयाबाँ में
नुमूद-ए-रंग-ए-गुल है हर सर-ए-ख़ार-ए-मुग़ीलाँ में

ज़ियादा ख़ौफ़-ए-रुस्वाई नहीं है सोज़-ए-पिन्हाँ में
धुआँ होता है लेकिन कम चराग़-ए-ज़ेर-ए-दामाँ में

हमेशा पी के मय जाम ओ सुराही तोड़ देता हूँ
न मेरा दिल तरसता है न फ़र्क़ आता है ईमाँ में

मज़ा क्यूँ काविश-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर का आज कम कम है
नमक की कोई चुटकी रह गई होगी नमक-दाँ में

जनाब-ए-क़ैस ने दिल से भुलाया दोनों आलम को
जुनूँ के चार हर्फ़ों का सबक़ लेकर दबिस्ताँ में

बहार आई मिला ये हुक्म मुझ को और बुलबुल को
कि वो काटे क़फ़स में ख़ाक छानूँ मैं बयाबाँ में

तरन्नुम-रेज़ियाँ बज़्म-ए-सुख़न में सुन के 'साइल' की
गुमाँ होता है बुलबुल के चहकने का गुलिस्ताँ में
Read Full
Saail Dehlvi