Saba Naqvi

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@saba-naqvi

Saba Naqvi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Saba Naqvi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
हैवान की मंज़िल में बशर है कि नहीं है
इंसान को इंसान का डर है कि नहीं है

मेआ'र-ए-तजल्ली से तो वाक़िफ़ हैं निगाहें
जलवों को भी अंदाज़-ए-नज़र है कि नहीं है

फ़रज़ाना-ए-दौराँ भी है इस बात पे ख़ामोश
दीवाना सर-ए-राहगुज़र है कि नहीं है

जिस अज़्म से मंज़िल पे पहुँचते हैं मुसाफ़िर
वो अज़्म ब-ईं ज़ौक़-ए-सफ़र है कि नहीं है

बे-साख़्ता मंज़िल की तरफ़ भागने वालो
रफ़्तार-ए-ज़माना की ख़बर है कि नहीं है

रंगीनी-ए-आग़ाज़-ए-बहाराँ के असीरो
अंजाम-ए-बहाराँ पे नज़र है कि नहीं है

ना-क़दरी-ए-अफ़्कार के इस दौर-ए-फ़लक में
माइल बा-क़लम दस्त-ए-हुनर है कि नहीं है

अरबाब-ए-मोहब्बत पे जो ढाई है क़यामत
उस शाम-ए-शब-ए-ग़म की सहर है कि नहीं है

जिस दर से नसीम-ए-सहरी घर में हो दाख़िल
काशाना-ए-इम्काँ में वो दर है कि नहीं है

बातिल का गला काट दे जो हक़ की मदद से
ख़ून-ए-रग-ए-जाँ में वो असर है कि नहीं है

जिस दाग़ की तारीफ़ है दाग़-ए-ग़म-ए-जानाँ
वो दाग़ ब-मेआ'र-ए-जिगर है कि नहीं है

वो ज़ख़्म-ए-तमन्ना जो मुक़द्दर है 'सबा' का
उस ज़ख़्म पे हिकमत की नज़र है कि नहीं है
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Saba Naqvi
तमाम उम्र हो न पाई वो नज़र अपनी
रह-ए-हयात में बनती जो हम-सफ़र अपनी

हज़ार संग-ए-गराँ ज़िंदगी की राह में थे
न जाने कैसे जहाँ में हुई बसर अपनी

ज़मीं पे ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ सई-ए-राएगाँ ठहरा
फ़लक पे जा के हुई आह बे-असर अपनी

किसी रिसाले में शाए हो जैसे कोई ग़ज़ल
कुछ इस तरह से हुई बात मुश्तहर अपनी

मुझे शिकायत-ए-अग़्यार से ग़रज़ क्यों हो
हँसी उड़ाई है यारों ने ख़ास कर अपनी

वो क्या किसी को मुलाक़ात का शरफ़ देगा
जो ख़ैरियत भी न लिख पाए दो सतर अपनी

मिला न चैन तिरी जुस्तुजू में सारा दिन
लगी न आँख तिरे ग़म में रात भर अपनी

सुराग़-ए-मंज़िल-ए-इरफ़ाँ न मिल सकेगा कभी
ग़लत-रवी से हज़ीमत है सर-बसर अपनी

गुलों का ख़ून था रंग-ए-बहार के पीछे
फ़रेब खा न सकी चश्म-ए-मो'तबर अपनी

हवा-ए-शौक़ के पीछे ग़ुबार बन के उड़ी
बिसात भूल गई हस्ती-ए-बशर अपनी

मैं इंकिशाफ़ करूँ भी तो किस तरह से 'सबा'
तवील राज़ है और उम्र मुख़्तसर अपनी
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Saba Naqvi
लब-ए-ख़मोश को अरमान-ए-गुफ़्तुगू ही सही
जिगर में हौसला-ए-अर्ज़-ए-आरज़ू ही सही

असर क़ुबूल है मुझ को बदलती क़द्रों का
रग-ए-हयात में अस्लाफ़ का लहू ही सही

नमाज़-ए-इश्क़ अदा हो रही है मक़्तल में
ये पुर-ख़ुलूस इबादत है बे-वुज़ू ही सही

उसे भी ख़ौफ़ है गुलशन में ज़र्द मौसम का
वो सुर्ख़ फूल की मानिंद शो'ला-रू ही सही

जुनून-ए-इश्क़ के लश्कर से हार जाएगी
सिपाह-ए-होश-ओ-ख़िरद लाख जंग-जू ही सही

वो मेरी तिश्नगी-ए-दिल बुझा नहीं सकता
खनकता जाम छलकता हुआ सुबू ही सही

मैं एक हर्फ़-ए-मलामत हूँ उस के दामन पर
वो मेरी पाक मोहब्बत की आबरू ही सही

मिरी निगाह का मरकज़ नहीं तो कुछ भी नहीं
वो ख़ुद-पसंद निगाहों में ख़ूब-रू ही सही

'सबा' कि शाइर-ए-ख़ुश-फ़िक्र है मगर गुमनाम
हर एक उस से है वाक़िफ़ वो ख़ुश-गुलू ही सही
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Saba Naqvi
राह-ए-हयात में दिल-ए-वीराँ दुहाई दे
दुश्मन को भी ख़ुदा न ग़म-ए-आश्नाई दे

मैं साहिब-ए-क़लम हूँ मुझे ऐ शुऊर-ए-फ़न
आए न जो गिरफ़्त में ऐसी कलाई दे

दुनिया फ़रेब-ए-रिश्ता-ए-बाहम न दे मुझे
जो भाई-चारगी का हो पैकर वो भाई दे

मैं अपना हाथ अपने लहू में डुबो न लूँ
जब तक वो मेरे हाथ में दस्त-ए-हिनाई दे

ख़ंजर है जिस के हाथ में पत्थर है जिस का दिल
क्या उस के सामने कोई अपनी सफ़ाई दे

जिस पर मिरे लहू ने सजाया था नक़्श-ए-दिल
ऐ काश फिर मुझे वो हथेली दिखाई दे

इस ताज़ा कर्बला में भी यारब दुआ ये है
ईसार को नशेब वफ़ा को तराई दे

दूरी क़रीन-ए-मस्लहत-ए-वक़्त है अगर
क़ुर्बत के नाम पर मुझे दाग़-ए-जुदाई दे

सेहन-ए-चमन में गोश-बर-आवाज़ है 'सबा'
शायद दिल-ए-शमीम की धड़कन सुनाई दे
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Saba Naqvi
बे-मा'नी ला-हासिल रद्दी शे'रों का है जाल उधर
जो चीज़ें बे-कार हैं प्यारे उन चीज़ों को डाल उधर

कुछ तज्वीज़ें पास करेगा वक़्त के हाथों ये इजलास
मजबूर-ओ-नादार इधर हैं आसूदा ख़ुश-हाल उधर

बीच में हाइल कर दे कोई काश तकल्लुफ़ की दीवार
उधर है रेला गुल-चीनों का और गुलों में काल इधर

ख़ून-ए-तमन्ना की सुर्ख़ी से दिल की हिकायत है रंगीं
दामन की तक़दीर इधर है गुलशन का इक़बाल उधर

उन की बज़्म से आने वाले थाम के दिल फ़रमाते हैं
जाने वालो उधर न जाओ जुर्म है अर्ज़-ए-हाल उधर

जल्सा-ए-ग़म की तय्यारी में उधर हैं जीते जी मसरूफ़
पैदाइश का जश्न मनाया यारों ने हर साल उधर

इक मुद्दत से देख रहा हूँ होता है हर बार यही
इधर 'सबा' ने ख़्वाब सजाया वक़्त ने बदली चाल उधर
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