Taashshuq Lakhnavi

Taashshuq Lakhnavi

@taashshuq-lakhnavi

Taashshuq Lakhnavi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Taashshuq Lakhnavi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

13

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे
सब फूल तिरे बाग़ थे इक ख़ार हमीं थे

हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी
सब ख़्वाब में थे रात को बेदार हमीं थे

सौदा तिरी ज़ुल्फ़ों का गया साथ हमारे
मर कर भी न छूटे वो गिरफ़्तार हमीं थे

कल रात को देखा था जिसे ख़्वाब में तुम ने
रुख़्सार पे रक्खे हुए रुख़्सार हमीं थे

दिल-सोख़्ता थे चाहने वालों में तुम्हारे
लेकिन सबब-ए-गर्मी-ए-बाज़ार हमीं थे

कल कूचा-ए-क़ातिल में जो था ख़ल्क़ का मजमा
खाए हुए उस हाथ की तलवार हमीं थे

ऐ इश्क़-ए-मिज़ा कौन हमें देखने आता
आँखों में खटकते थे वो बीमार हमीं थे

तुर्बत में भी आँखें न हुईं बंद हमारी
ऐसे तिरे इक तालिब-ए-दीदार हमीं थे

ठंडे किए ग़ैरों के दिल और हम को जलाया
इक थे तो मोहब्बत के गुनहगार हमीं थे

मिलते ही लब-ए-यार से लब दिल निकल आया
मारा जिसे ईसा ने वो बीमार हमीं थे

तुम ग़ैरों से डर डर के लिपट जाते थे पैहम
कल रात को नालाँ पस-ए-दीवार हमीं थे

सब राज़ 'तअश्शुक़' से बयाँ होते थे दिल के
पहले तिरे इक महरम-ए-असरार हमीं थे
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं
मिरे जज़्ब-ए-दिल के बुलाए हुए हैं

कजी पर जो अफ़्लाक आए हुए हैं
उन आँखों के शायद सिखाए हुए हैं

कभी तो शहीदों की क़ब्रों पे आओ
ये सब घर तुम्हारे बसाए हुए हैं

किया है जो कुछ ज़िक्र मुझ दिल-जले का
पसीने में बिल्कुल नहाए हुए हैं

ज़रा फूल से पाँव मैले न होंगे
तुम आओ हम आँखें बिछाए हुए हैं

कहीं ख़ाक भी अब न बैठेगी अपनी
कि उन की गली से उठाए हुए हैं

गिरेगा ज़मीं पे न ख़ून-ए-शहीदाँ
अबस आप दामन उठाए हुए हैं

फ़क़त पास है उन के तीर-ए-निगह का
जो सीने से दिल को लगाए हुए हैं

जनाज़ा मिरा दोस्तो कल उठाना
कि वो आज मेहंदी लगाए हुए हैं

उन्हें पास है दिल हमारा मुक़र्रर
वही हम से आँखें चुराए हुए हैं

जो है घर के अंदर वही घर के बाहर
वो आँखों में दिल में समाए हुए हैं

मेरे ब'अद जाने के उतरेंगे क्यूँ-कर
ये कपड़े जो मेरे पिन्हाए हुए हैं

न हो सब्ज़ा-रंगों में क्यूँ उन की शोहरत
मिरे क़त्ल पर ज़हर खाए हुए हैं

मिरे ख़त के पुर्ज़े उड़ाए उन्हों ने
किसी के सिखाए पढ़ाए हुए हैं

ख़ुदा ज़ुल्फ़ से दिल जिगर को बचाए
बड़े पेच में दोनों आए हुए हैं

तड़प कर शब-ए-हिज्र में क्यूँ न रोऊँ
चमकती ही बर्क़ अब्र आए हुए हैं

'तअश्शुक़' वो जो चाहें बातें सुनाएँ
सर-ए-इज्ज़ हम तो झुकाए हुए हैं
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
जोश पर थीं सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें
ब गईं आँसुओं के साथ हमारी आँखें

हैं जिलौ में सिफ़त-ए-अब्र-ए-बहारी आँखें
उठने देती हैं कहाँ गर्द-ए-सवारी आँखें

क्यूँ असीरान-ए-क़फ़स की तरफ़ आना छोड़ा
फेर लीं तू ने भी ऐ बाद-ए-बहारी आँखें

सामने आ गई गुल-गश्त में नर्गिस शायद
पलकों से चीं-ब-जबीं हैं जो तुम्हारी आँखें

क्या दुर्र-ए-अश्क से हैं दामन-ए-मिज़्गाँ ममलू
कब ज़बाँ है कि करें शुक्र-गुज़ारी आँखें

देखते हैं तरफ़-ए-चाह-ए-ज़क़न उल्फ़त से
मुफ़्त में हम को डुबोती हैं हमारी आँखें

शोख़ियाँ आहुओं की ज़ेहन में कब आती हैं
कुछ दिनों हम ने भी देखी थीं तुम्हारी आँखें

क़तरा-ए-आब को मुहताज किया गर्दूं ने
याद-ए-अय्याम कि थीं चश्मा-ए-जारी आँखें

दूर से देख के तुम को कोई जी भरता है
कर रही हैं फ़क़त अय्याम-गुज़ारी आँखें

अब्र को देख के हर मर्तबा जोश आता है
अब तो आईं हैं मिरे ज़ब्त से आरी आँखें

जब हटा आइना आगे से हुईं क्या बेचैन
अपने पर आप ही आशिक़ हैं तुम्हारी आँखें

लुत्फ़ देखा न किसी चीज़ का अश्कों के सिवा
आईं थीं रोने को दुनिया में हमारी आँखें

कहती है भर के दम-ए-सर्द ख़िज़ाँ में बुलबुल
ढूँढती हैं तुझे ऐ फ़स्ल-ए-बहारी आँखें

तुम को शर्म आती है हम क़ाबिल-ए-नज़्ज़ारा नहीं
न रहा हुस्न तुम्हारा न हमारी आँखें

क्यूँ चरागाह-ए-ग़ज़ालाँ न कहूँ पलकों को
फिर रही हैं मेरी नज़रों में तुम्हारी आँखें

रोऊँ किस वास्ते गर सामने आना छोड़ा
आप को हुस्न है प्यारा मुझे प्यारी आँखें

कोर हो जाऊँ मगर इश्क़ में रोने को न रोक
नासेहा दिल से ज़ियादा नहीं प्यारी आँखें

सैकड़ों शीशा-ए-दिल बादा-कशों के तोड़े
मोहतसिब से हैं ज़ियादा वो ख़ुमारी आँखें

फूल नर्गिस के गिरे शाख़ से डाली जो नज़र
तेरी आँखों की इताअत में हैं सारी आँखें

फ़र्श हो जाती हैं तुम पाँव जहाँ रखते हो
अदब-आमोज़-ए-मोहब्बत हैं हमारी आँखें

ब'अद मुद्दत के ज़रा होश में आया हूँ आज
फिर दिखा दे मुझे साक़ी वो ख़ुमारी आँखें

अश्क-ए-ख़ूनीं से असीरी में उठा लुत्फ़-ए-बहार
है क़फ़स रश्क-ए-चमन अबर-ए-बहारी आँखें

क्या करें बज़्म-ए-हसीनाँ में 'तअश्शुक़' जा कर
न रहीं क़ाबिल-ए-नज़्ज़ारा हमारी आँखें
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
अपनी फ़रहत के दिन ऐ यार चले आते हैं
कैफ़ियत पर गुल-ए-रुख़्सार चले आते हैं

पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
लड़खड़ाते हुए मय-ख़्वार चले आते हैं

याद कीं नश्शा में डूबी हुई आँखें किस की
ग़श तुझे ऐ दिल-ए-बीमार चले आते हैं

राह में साहिब-ए-इक्सीर खड़े हैं मुश्ताक़
ख़ाकसारान-ए-दर-ए-यार चले आते हैं

बाग़ में फूल हँसे देते हैं बेदर्दी से
नाला-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार चले आते हैं

देख कर अबरू-ए-ख़मदार फिरे यूँ आशिक़
ग़ुल है खाए हुए तलवार चले आते हैं

जिस तरह नर्ग़े में चलते हैं ग़ज़ाल-ए-सहरा
यूँ तिरी चश्म के बीमार चले आते हैं

हूँ वो बे-ख़ुद कि ये है नाला-ए-सोज़ाँ पे गुमाँ
शोला-ए-आतिश-ए-रुख़्सार चले आते हैं

चाहिए शोर-ए-क़यामत पए-ताज़ीम उठ्ठे
आप के आशिक़-ए-रफ़्तार चले आते हैं

शोर सुनते हैं जो हम चाक-गरेबानों का
बंद खोले सर-ए-बाज़ार चले आते हैं

हर तरफ़ हश्र में झंकार है ज़ंजीरों की
उन की ज़ुल्फ़ों के गिरफ़्तार चले आते हैं

चल गई तेग़-ए-निगह आज 'तअश्शुक़' पे ज़रूर
लोग उस कूचा से ख़ूँ-बार चले आते हैं
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
दिल जल के रह गए ज़क़न-ए-रश्क-ए-माह पर
इस क़ाफ़िला को प्यास ने मारा है चाह पर

गेसू को नाज़ है दिल-ए-रौशन की चाह पर
परवाना ये चराग़ है मार-ए-सियाह पर

नींद उड़ गई गिराँ है ये शब रश्क-ए-माह पर
बिजली न क्यूँ फ़लक से गिरे मेरी आह पर

है याद ख़ुफ़्तगान-ए-ज़मीं का जो ख़त्त-ए-सब्ज़
भूले से मैं क़दम नहीं रखता गियाह पर

लुटता है ख़ाना-ए-दिल-ए-आशिक़ बचाइए
बिगड़ी हुई है फ़ौज-ए-मिज़ा किस गुनाह पर

तासीर का है ख़ौफ़ उन्हें ऐन शौक़ में
है दिल पे हाथ कान हैं आवाज़-ए-आह पर

महशर बपा है बंद हैं कुश्तों के रास्ते
क़द बाढ़ पर है बाढ़ है तेग़-ए-निगाह पर

क्या आदमी की ख़ाक को रौंदूँ मैं रहम-दिल
रोता है पाएमाली-ए-मर्दुम-गियाह पर

कहते हो किस के क़ल्ब में उठता है शब को दर्द
रोता है दिल मिरा मिरे हाल-ए-तबाह पर

आख़िर तलाश-ए-गोर हुई दिल को इश्क़ में
बरसों तबाह हो के अब आया है राह पर

दिल के मुआमले में न हो दख़्ल ग़ैर को
लेना जो हो तो लीजिए अपनी निगाह पर

ऊपर की साँस लेने का आज़ार हो गया
जिस की नज़र पड़ी तिरी तिरछी निगाह पर

बख़िया जराहत-ए-दिल-ए-नाज़ुक-मिज़ाज का
मौक़ूफ़ है हुज़ूर के तार-ए-निगाह पर
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
बाग़ में फूलों को रौंद आई सवारी आप की
किस क़दर मम्नून है बाद-ए-बहारी आप की

बेवफ़ाई आप की ग़फ़लत-शिआरी आप की
मेरे दिल ने आदतें सीखी हैं सारी आप की

है यक़ीं बाहम गले मिलने को उट्ठें दस्त-ए-शौक़
हो अगर तस्वीर भी यकजा हमारी आप की

मय-कदे में टूटे जाते हैं बहम लड़ लड़ के जाम
मुफ़सिदा-पर्दाज़ है चश्म-ए-ख़ुमारी आप की

जज़्ब इसे कहते हैं आए कहने मेरी क़ब्र तक
अब यहाँ से बढ़ नहीं सकती सवारी आप की

करती हैं अंधेर हाथों की ये काली मैलियाँ
क़ातिल-ए-आलम हुई है सोगवारी आप की

जा-ब-जा होते हैं दामन-गीर दिल उश्शाक़ के
हर क़दम पर आज रुकती है सवारी आप की

याद-ए-अय्यामे कि था ज़ोरों पे जज़्ब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
वो मिरे दिल का तड़पना बे-क़रारी आप की

है शब-ए-महताब गोरे रंग से कपड़े सियाह
हुस्न को चमका रही है सोगवारी आप की

दो तरह के एक साग़र में लबालब है शराब
ख़्वाब-आलूदा नहीं चश्म-ए-ख़ुमारी आप की

मेरे लाशे को लिए फिरते हैं उन राहों में लोग
जिन गली-कूचों में फिरती थी सवारी आप की

आज किस पर रहम आया किस को रोए हैं हुज़ूर
है नसीब-ए-दुश्मनाँ आवाज़ भारी आप की

अहद में मजनूँ के लैला का रहा क्या दौर दौर
अब 'तअश्शुक़' के ज़माने में है बारी आप की
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे
बाग़बान-ए-चमन-ए-महफ़िल-ए-जानाँ हम थे

क़ाबिल-ए-क़त्ल न ऐ लश्कर-ए-मिज़्गाँ हम थे
दिल की उजड़ी हुई बस्ती के निगहबाँ हम थे

धज्जियाँ जेब की हाथों में हैं आज ऐ वहशत
जामा-ज़ेबों से कभी दस्त-ओ-गरेबाँ हम थे

जान ली गेसूओं ने उल्फ़त-ए-रुख़ में आख़िर
काफ़िरों ने हमें मारा कि मुसलमाँ हम थे

ग़ैर के घर की तरफ़ के जो उठे थे पर्दे
इत्र बालों में वो मलते थे परेशाँ हम थे

क़फ़स-ए-तंग में घुट घुट के न मरते क्यूँ-कर
नाज़-पर्वर्दा-ए-आग़ोश-ए-गुलिस्ताँ हम थे

रूह तड़पी है प-ए-लाला-ए-सहरा क्या क्या
फ़स्ल-ए-गुल जोश पे थी क़ैदी-ए-ज़िंदाँ हम थे

दिल के देने में तअम्मुल हमें होता क्यूँ-कर
ये हसीनों की अमानत थी निगहबाँ हम थे

आज थी शब को बहुत दाग़-ए-जिगर में सोज़िश
कहती थी उन की मलाहत नमक-अफ़्शाँ हम थे

शो'ला-ए-हुस्न से था दूद-ए-दिल अपना अव्वल
आग दुनिया में न आई थी कि सोज़ाँ हम थे

हर तरफ़ दहर में था ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर का गुल
मगर ऐ जोश-ए-जुनूँ सिलसिला-जुम्बाँ हम थे

क़ाफ़िले रात को आते थे उधर जान के आग
दश्त-ए-ग़ुर्बत में जिधर ऐ दिल-ए-सोज़ाँ हम थे

कहते हैं आरिज़-ए-महबूब कि थी रात जो गर्म
चाँद पर ओस पड़ी थी अरक़-अफ़्शाँ हम थे

तौक़ मिन्नत के गले में थे वो दिन याद करो
तुम पर उस अहद में भी चाक-गरेबाँ हम थे

देते फिरते थे हसीनों की गली में आवाज़
कभी आईना-फ़रोश-ए-दिल-ए-हैराँ हम थे

डूब जाते हैं जो रह रह के 'तअश्शुक़' तारे
मिस्ल-ए-अब्र आख़िर-ए-शब वस्ल में गिर्यां हम थे
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
न डरे बर्क़ से दिल की है कड़ी मेरी आँख
उस की ज़ंजीर-ए-तलाई से लड़ी मेरी आँख

अपने बीमार को रखती है छुपा कर तह-ए-ख़ाक
कहते हैं साहब-ए-ग़ैरत है बड़ी मेरी आँख

ख़ाक में मिल के अयाँ हूँ गुल-ए-नर्गिस बन कर
देख ले गर तिरी फूलों की छड़ी मेरी आँख

इस तरह ज़ब्ह किया तेग़-ए-निगह से मुझ को
ख़ुद वो कहते हैं कि ज़ालिम है बड़ी मेरी आँख

दिल में है कुछ असर-ए-जोश-ए-मोहब्बत अब तक
तर हुई देख के सावन की झड़ी मेरी आँख

हसरत-ए-दीद में पथरा के बनी संग-ए-दर
न हटी फिर तिरे दर पर जो अड़ी मेरी आँख

रात भर अश्क के दानों पे गिना करती है
फ़ुर्क़त-ए-यार में एक एक घड़ी मेरी आँख

दिल के टुकड़े मिरी पलकों में जो देखा तो कहा
जानती थी इन्हें फूलों की छड़ी मेरी आँख

रख लिए पेश-ए-हुबाब-ए-लब-ए-जू मुँह पर हाथ
नज़र आई उन्हें दरिया में पड़ी मेरी आँख

दौड़ कर मुझ से गले मिल गए मिलते ही नज़र
दिल की तक़दीर लड़ी या कि लड़ी मेरी आँख

ऐ शब-ए-वस्ल न मालूम ये क्या कर गई तू
बंद होती नहीं अब कोई घड़ी मेरी आँख

कहते हैं आँख लड़ाते ही तू पत्थर बन जाए
है तिरा दिल तो बहुत नर्म कड़ी मेरी आँख

याद-ए-ख़ाल-ए-रुख़-ए-जानाँ की मदद से नासेह
शब फ़ुर्क़त के सितारों से लड़ी मेरी आँख

हो गई फ़र्त-ए-नज़ाकत से हया की शोहरत
आ गया उन को पसीना जो लड़ी मेरी आँख

है जो अश्कों में उदाहट तो न घबरा ऐ दिल
रोई है देख के मिस्सी की धड़ी मेरी आँख
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
उन्स है ख़ाना-ए-सय्याद से गुलशन कैसा
नाज़-पर्वर्द-ए-क़फ़स हूँ मैं नशेमन कैसा

हम वो उर्यां हैं कि वाक़िफ़ नहीं ऐ जोश-ए-जुनूँ
नाम किस शय का गरेबान है दामन कैसा

अपनी आज़ुर्दा-दिली ब'अद-ए-फ़ना काम आई
ढेर यहाँ गर्द-ए-कुदूरत के हैं मदफ़न कैसा

कह दिया बस कि तिरी आह में तासीर नहीं
ये न देखा कि ये सीना में है रौज़न कैसा

छुट के उस फूल से बर्बाद पड़े फिरते हैं
हम तो अब ताइर-ए-निगहत हैं नशेमन कैसा

दिल उसे दे के चले मुल्क-ए-अदम को बे-ख़ौफ़
माल रखते नहीं अंदेशा-ए-रहज़न कैसा

दिल-ए-बेताब की है सीना-ए-सोज़ाँ में सदा
अस्ल पारा की है क्या दाना-ए-गुलख़न कैसा

था कभी दौर-ए-असीरान-ए-क़फ़स ऐ सय्याद
अब तो इक फूल की मुहताज हैं गुलशन कैसा

चार दिन में ये ज़माना भी गुज़र जाएगा
अभी रोएँगे जवानी को लड़कपन कैसा

सख़्त-जाँ हैं तिरी तलवार से क्या ख़ौफ़ हमें
सख़्ती-ए-मर्ग से दबते नहीं आहन कैसा

जल गए सूरत-ए-परवाना तब इश्क़ से हम
फेंक दे लाश उठा कर कोई मदफ़न कैसा

एक दिन अबलक़-ए-अय्याम करेगा पामाल
मुझ से रह रह के बिगड़ता है ये तौसन कैसा

इश्क़ से काम न था हुस्न की पर्वा भी न थी
याद आता है जवानी में लड़कपन कैसा

खेलते हो दिल-ए-बेताब से फूलों की तरह
और होता है मिरी जान लड़कपन कैसा

शम्अ से आप के सोज़ाँ ये सुना करते हैं
कोई मुहताज-ए-कफ़न भी न हो मदफ़न कैसा

चाहता हूँ कोई देखे न तेरी तेग़ के ज़ख़्म
चश्म-ए-जर्राह है क्या दीदा-ए-सोज़न कैसा

नक़्श-ए-पा हैं हवस-ए-नाम-ओ-निशाँ ख़ाक नहीं
हम तो उठने के लिए बैठे हैं मस्कन कैसा

आँधियाँ गर्म जो चलती हैं मिरी आहों से
मुँह छुपाता है चराग़-ए-तह-ए-दामन कैसा

सीना अपना है हमारा दिल-ए-सोज़ाँ अपना
शम्-ए-फ़ानूस ओ चराग़-ए-तह-ए-दामन कैसा

दूर जब से सिफ़त-ए-बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-दीदा है
याद आता है शब-ओ-रोज़ वो गुलशन कैसा
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
सू-ए-दरिया ख़ंदा-ज़न वो यार-ए-जानी फिर गया
मोतियों की आबरू पर आज पानी फिर गया

सूइयाँ सी कुछ दिल-ए-वहशी में फिर चुभने लगीं
ठीक होने को लिबास-ए-अर्ग़वानी फिर गया

हथकड़ी भारी है मेरे हाथ की आज ऐ जुनूँ
दस्त-ए-जानाँ का कहीं छल्ला निशानी फिर गया

ज़ोर पैदा कर कि पहुँचे जेब तक दस्त-ए-जुनूँ
अब तो मौसम ऐ वफ़ूर-ए-ना-तवानी फिर गया

सरफ़रोशान-ए-मोहब्बत से न होगी आँख चार
मुँह जो उस की तेग़ का ऐ सख़्त-जानी फिर गया

कहते हो हम आज मुल्क-ए-हुस्न के हैं बादशाह
क्या हुमा बाला-ए-सर ऐ यार-ए-जानी फिर गया

क्यूँ कबूतर के एवज़ हुदहुद न लाया ख़त्त-ए-शौक़
इस ख़ता पर मुझ से वो बिल्क़ीस-ए-सानी फिर गया

बोसा कैसा इक लब-ए-शीरीं से गाली भी न दी
आज फिर उम्मीद-वार-ए-मेहरबानी फिर गया

ऐ ज़ईफ़ी साया सर पर से गया धूप आ गई
फ़स्ल बदली आफ़्ताब-ए-ज़िंदगानी फिर गया

गिर पड़े आँसू उरूज-ए-माह-ए-कामिल देख कर
मिरी नज़रों में तिरा अहद-ए-जवानी फिर गया
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
दो दमों से है फ़क़त गोर-ए-ग़रीबाँ आबाद
तुम हमेशा रहो ऐ हसरत-ओ-अरमाँ आबाद

तुझ से ऐ दर्द है क़स्र-ए-दिल-ए-वीराँ आबाद
किया सर-अफ़राज़ किया ख़ाना-वीराँ आबाद

जिस जगह बैठ के रोए वो मकाँ डूब गए
शहर होने नहीं देते तिरे गिर्यां आबाद

क़ैस-ओ-फ़रहाद के दम से भी अजब रौनक़ थी
कुछ दिनों ख़ूब रहे कोह-ओ-बयाबाँ आबाद

वहशत-ए-दिल ये बढ़ी छोड़ दिए घर सब ने
तुम हुए ख़ाना-नशीं हो गईं गलियाँ आबाद

आमद-ए-क़ाफ़िला-ए-दर्द-ओ-अलम है सद-शुक्र
आज होती है सरा-ए-दिल-ए-वीराँ आबाद

मिट गए दाग़-ए-जिगर हुस्न-ए-रुख़-ए-यार गया
कल की है बात कि था क्या ये गुलिस्ताँ आबाद

तेरे दीवानों के जिस दश्त से उठ्ठे बिस्तर
वहशियों से न हुआ फिर वो बयाबाँ आबाद

सूरत-ए-शम्अ हुआ ख़ाक-ए-बदन जल जल कर
हम ने तुर्बत भी न की ऐ शब-ए-हिज्राँ आबाद

सोहबतें हो गईं बर्बाद गुल-अंदामों की
ख़ाक उड़ती है वहाँ थे जो गुलिस्ताँ आबाद

सीना ओ दिल में ख़ुशी से न जगह थी ग़म की
ऐ 'तअश्शुक़' ये मकाँ भी थे कभी हाँ आबाद
Read Full
Taashshuq Lakhnavi
ता-सहर की है फ़ुग़ाँ जान के ग़ाफ़िल मुझ को
रात भर आज पुकारा है मिरा दिल मुझ को

दर्द-ओ-ग़म से जो तपाँ था वो मिला दिल मुझ को
इस लिए दफ़्न किया है लब-ए-साहिल मुझ को

बार-ए-हुस्न आप से लैला का उठाया न गया
न लिया क़ैस ने जिस को वो मिला दिल मुझ को

ग़ैर फिर ग़ैर हैं आख़िर हैं फिर अपने अपने
याद करता है तिरे पास मिरा दिल मुझ को

बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे
आप को हुस्न मुबारक हो मिरा दिल मुझ को

फ़स्ल-ए-गुल आते ही सहरा-ए-अदम को पहुँचा
रोकते रह गए अग़लाल-ओ-सलासिल मुझ को

मर गया अश्क जो आँखों से बहे आह के साथ
आ गई नींद हवा में लब-ए-साहिल मुझ को

क्या अदावत है कि जिस दिन से हुआ हूँ ज़ख़्मी
देख जाता है वो रश्क-ए-मह-ए-कामिल मुझ को

शब को तुम सोई थी क्या सू-ए-फ़लक मुँह कर के
नज़र आया न सहर तक मह-ए-कामिल मुझ को

पाँव तक ज़ुल्फ़ तिरी यार बढ़ आई शायद
आज भारी नज़र आती है सलासिल मुझ को

असर-ए-ज़ोफ़ से हूँ क़तरा-ए-अश्क-ए-ख़ूनी
रहम कर दे कफ़न-ए-दामन-ए-क़ातिल मुझ को
Read Full
Taashshuq Lakhnavi