Tabassum Fatma

Tabassum Fatma

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Tabassum Fatma shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Tabassum Fatma's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Nazm
ज़रा दूर चलने की हसरत रही है
मोहब्बत ही सिर्फ़ ज़िंदगी तो नहीं है
कि तुम से अलग भी मोहब्बत रही है
ख़ुशी के लिए घर ही काफ़ी नहीं है
कि घर से अलग की भी चाहत रही है
ज़रा दूर चलने की हसरत रही है
मैं वीरानियों की उदासी की तन्हाइयों की पसंद हूँ
जज़ीरे बनाती हूँ फिर तोड़ती हूँ
मैं ख़्वाबों को आबाद करती भी हूँ राख करती भी हूँ
मैं आज़ाद उड़ता परिंदा हूँ जिस के लिए
आसमाँ की उड़ानें भी कम पड़ गई हैं
ज़मीं थम गई है
चराग़ों को जलने की आदत रही है
ज़रा दूर चलने की हसरत रही है
मैं नादीदा ख़्वाबों का एहसास हूँ
फ़लक तक जो गूँजे वो आवाज़ हूँ
दिलों तक जो पहुँचे मैं वो साज़ हूँ
घुटन क़ैद बंदिश के एहसास से कोरे जज़्बात से दूर हूँ मुतमइन
मैं समुंदर हूँ बहती हवा और गरजती हुई मौज हूँ
मैं सिकंदर कोलंबस हूँ आज़ाद हूँ
कहकशाँ से अलग कहकशाँ और भी हैं
जहानों में क्यों ख़ुद को मैं क़ैद रक्खूँ जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
मेरी फ़ितरत में मेरी ताक़त रही है
मोहब्बत ही सिर्फ़ ज़िंदगी तो नहीं है
कि तुम से अलग भी मोहब्बत रही है
ज़रा दूर चलने की हसरत रही है
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कोई आवाज़ थी जिस के तलातुम में
यूँ बह जाना कहाँ मंज़ूर मुझ को था
कहीं वहशत के अन-देखे भँवर के सात पर्दे थे
जो ज़िंदानों में खुलते थे
हर एक ज़िंदाँ में मैं थी
और मिरी सरशार तबीअत के हर एक लम्हे की साँसों में
कहीं मेरी अना थी मेरी ताक़त थी मोहब्बत थी
मैं कब ऐसी किसी आवाज़ की ज़द में
मोहब्बत ढूँढती तहलील होती
और आवारा सी कुछ मौजों में मिल कर ख़ुद को खो देती
मोहब्बत जिस्म है माना
मगर सरशार रूहों की अलग भी एक बस्ती है
ख़यालों से परे भी इक नगर है
जिस में हम तुम ज़िंदगी की फ़ाक़ा-मस्ती और उदासी और ख़ामोशी के जंगल से गुज़रते हैं
जहाँ वीरानियों की सल्तनत में
दीदा-ओ-नादीदा ख़्वाब बनते और उजड़ते हैं
कहीं हम रास्ते के संग-पारों से उलझ कर
एक लम्हे में हज़ारों बार जीते और मरते हैं

मोहब्बत जिस्म के छोटे से हुजरे के
किसी गोशे में रहती है
यहाँ रौज़न नहीं कोई
कहीं से रौशनी की इक किरन अंदर नहीं आती
बहुत गहरा अंधेरा है
तसव्वुर और ख़यालों की गुज़रगाहों पे पहरा है
मोहब्बत एक ला हासिल सफ़र का सातवाँ पर्दा है
जिस में इक समुंदर उस की तुग़्यानी ख़मोशी का बसेरा है
समुंदर शांत होता है तो पिस्तानों से लहरें यूँ लिपटती हैं
कि जैसे घन गरज के बा'द सरशारी का लम्हा हो
उसी लम्हे में वक़्फ़े में
मोहब्बत बे-कराँ होती है जीती है
मोहब्बत गुनगुनाती और बिखरती है
मोहब्बत जावेदाँ होती महकती है
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मेरा क्या है
मैं क्यों सोचूँ
आगे रस्ता बंद पड़ा है या कोई मंज़िल भी है
चारों तरफ़ पुर-शोर समुंदर या कोई साहिल भी है
चलते चलते पाँव में छाले पड़ जाएँ और दर्द का भी एहसास नहीं हो
मैं क्यों सोचूँ कोई जो मुझ से ग़ाफ़िल भी है
मेरा क्या है
बचपन की पहली ठोकर से जिस ने सँभलना सीख लिया हो
नाज़ुक कच्ची उम्र से जिस ने आग पे चलना सीख लिया हो
डर से बाहर आ कर जिस ने हर पल मरना सीख लिया हो
उड़ना जिस का मक़्सद हो और जिस ने उड़ना सीख लिया हो
मैं क्यों सोचूँ
आने वाला लम्हा मेरा दोस्त है या कि दुश्मन है
दिल का मिलना क़ैद-ए-घुटन है या सुंदर सा बंधन है
मेरे जैसा मेरा साया उस पर तन-मन अर्पण है
जीवन में है प्रेम छुपा या प्रेम में सारा जीवन है
मैं क्यों सोचूँ
मेरा क्या है
इश्क़ अगर है आग का दरिया
फिर मुझ को ये आग पसंद है
एक मोहब्बत सब का हल है
मुझ को बस ये राग पसंद है
मैं क्यों सोचूँ
मेरा क्या है
अपनी आग में जलना क्या है अब मैं चिल्लाती हूँ
मैं भी पत्थर हो सकती हूँ याद दिलाती हूँ
रस्ता बंद जहाँ होता है ढूँड के आती हूँ
अपने दम से पतझड़ की भी प्यास बुझाती हूँ
मेरा क्या है
तुम सोचो ना
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