Urooj Zaidi Badayuni

Urooj Zaidi Badayuni

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Urooj Zaidi Badayuni shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Urooj Zaidi Badayuni's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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एहतिमाम-ए-रंग-ओ-बू से गुलिस्ताँ पैदा करें
आओ मिल-जुल कर बहार-ए-बे-ख़िज़ाँ पैदा करें

क्यूँ सुकूत-ए-बे-महल से दास्ताँ पैदा करें
दीदा-ओ-दानिस्ता अपने राज़दाँ पैदा करें

रास आ सकता है मीर-ए-कारवाँ बनने का ख़्वाब
शर्त ये है पहले अपना कारवाँ पैदा करें

कार-आराई तो ख़ुद है हासिल-ए-तकमील-ए-कार
दिल में क्या अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ पैदा करें

अपना एजाज़-ए-तसव्वुर देखने की चीज़ है
हम जो चाहें तो मकाँ में ला-मकाँ पैदा करें

वक़्त को ज़िद ही बदल दो रस्म-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ'
दिल ये कहता है कि हंगामा कहाँ पैदा करें

आप की मर्ज़ी का है पाबंद-ए-रंग-ए-गुलिस्ताँ
आप चाहें तो बहार-ए-जावेदाँ पैदा करें

रूह पर हावी न हो जाए फ़ज़ा-ए-सोगवार
हम ग़म-ए-दिल से निशात-ए-जावेदाँ पैदा करें

कोशिश-ए-तामीर की तख़रीब-सामानी न पूछ
आशियाँ-बरदार शाख़ें बिजलियाँ पैदा करें

हाँ सिखा दें रंग-ए-रुख़ को आइना-दारी का फ़न
बहर-ए-अर्ज़-ए-मुद्दआ' हम तर्जुमाँ पैदा करें

फिर बुलाता तूँ के ये तेवर कहाँ बाक़ी 'उरूज'
हाल-ए-दिल कह कर जवाब-ए-दरमियाँ पैदा करें
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Urooj Zaidi Badayuni
ख़्वाब का अक्स कहाँ ख़्वाब की ता'बीर में है
मुझ को मा'लूम है जो कुछ मिरी तक़दीर में है

मेरी रूदाद-ए-मोहब्बत को न सुनने वाले
तुझ में वो बात कहाँ जो तिरी तस्वीर में है

पैकर-ए-ख़ाक भी हूँ बाइ'स-ए-कौनैन भी हूँ
कितना ईजाज़ नुमायाँ मिरी तफ़्सीर में है

फूल बन कर भी ये एहसास शगूफ़े को नहीं
मेरी तख़रीब का पहलू मिरी ता'मीर में है

हुस्न के साथ तुझे हुस्न-ए-वफ़ा भी मिलता
इसी हल्क़े की ज़रूरत तिरी ज़ंजीर में है

वुसअ'त-ए-दामन-ए-रहमत की क़सम खाता हूँ
उज़्र-ए-तक़्सीर भी दाख़िल-ए-हद-ए-तक़्सीर में है

एक तहदार ये मिस्रा है जवाब-ए-ख़त में
किस क़दर शोख़-बयानी तिरी तहरीर में है

क्या तमाशा है ये ऐ पा-ए-जुनून-ए-रुस्वा
कभी ज़ंजीर से बाहर कभी ज़ंजीर में है

जाने कब उस पे उजाले को तरस आएगा
वो सियह-पोश फ़ज़ा जो मिरी तक़दीर में है

गुफ़्तुगू होती है अक्सर शब-ए-तन्हाई में
एक ख़ामोश तकल्लुम तिरी तस्वीर में है

मेरी नज़रों में यही हुस्न-ए-तग़ज़्ज़ुल है 'उरूज'
शेर-गोई का मज़ा पैरवी-ए-'मीर' में है
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Urooj Zaidi Badayuni
मुझ को मजबूर-ए-सर-कशी कहिए
आप अँधेरे को रौशनी कहिए

उन से बछड़ा तो इस अज़ाब में हूँ
मौत कहिए कि ज़िंदगी कहिए

सर-ए-साहिल भी लोग प्यासे हैं
इस को आशोब-ए-तिश्नगी कहिए

क्यूँ तजाहुल को आरिफ़ाना कहूँ
मेरे चेहरे को अजनबी कहिए

चार दिन की है चाँदनी लेकिन
चाँदनी है तो चाँदनी कहिए

मौत भी ज़िंदगी का इक रुख़ है
इस को मेआ'र-ए-आगही कहिए

ग़म से हम बे-मज़ा नहीं होते
लज़्ज़त-ए-ग़म को चाशनी कहिए

मुझ को बख़्शी है फ़िक्र-ए-अर्ज़-ओ-समा
दोस्त की बंदा-परवरी कहिए

जलता-बुझता ये किर्मक-ए-शब-ताब
उस को पुर-कार-ए-सादगी कहिए

मुझ को मुड़ मुड़ के देखने वाले
क्या इसे तर्ज़-ए-बे-रुख़ी कहिए

धूप में साथ साथ साया है
रौशनी में भी तीरगी कहिए

रहबरी भी है हम-रकाब-ए-उरूज
उस को फ़ैज़ान-ए-ख़ुद-रवी कहिए
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Urooj Zaidi Badayuni
तल्ख़ी-ए-ग़म मिरे एहसास का सरमाया है
हुस्न से मैं ने ये इनआम-ए-वफ़ा पाया है

जब कभी इशरत-ए-रफ़्ता का ख़याल आया है
मैं नय पहरों दिल-ए-बे-ताब को समझाया है

हाए ये बे-ख़ुदी इश्क़ को मा'लूम नहीं
कौन आया है कब आया है कहाँ आया है

दिल को सीमाब सिफ़त कह के गुज़रने वाले
ख़ुद पे तड़पा है कि तू ने उसे तड़पाया है

काफ़िर-ए-इश्क़ न समझूँ तो उसे क्या समझूँ
मेरे इख़्लास को इक दोस्त ने ठुकराया है

अपनी इस हार को मैं जीत न क्यूँ कर समझूँ
ख़ुद को खोया है तो ऐ दोस्त तुझे पाया है

तुम मिरे हाल-ए-परेशाँ पे न तन्क़ीद करो
तुम ने दामन कभी काँटों में भी उलझाया है

मंज़िल-ए-दिल भी वही कू-ए-मलामत भी वही
इश्क़ का जज़्बा-ए-बे-ताब कहाँ लाया है

आँख झपकेगी तो शीराज़ा बिखर जाएगा
किस की आवाज़ थी जिस ने मुझे चौंकाया है

जिस को कहते हैं ग़ज़ल उस की बदौलत ही 'उरूज'
रुख़-ए-उर्दू पे ये रंग और निखार आया है
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Urooj Zaidi Badayuni
चाँद-तारों का तिरे रू-ब-रू सज्दा करना
ख़्वाब देखा है तो क्या ख़्वाब का चर्चा करना

हुस्न-ए-बरहम से मिरा अर्ज़-ए-तमन्ना करना
जैसे तूफ़ान में साहिल से किनारा करना

रास आएगा न ये कोशिश-ए-बेजा करना
बद-गुमानी को बढ़ा कर मुझे तन्हा करना

मेरी जानिब से है ख़ामोश दरीचे का सवाल
कब से सीखा तिरी आवाज़ ने पर्वा करना

हर-क़दम पर मिरी काँटों ने पज़ीराई की
जुर्म पूछो तो बहारों की तमन्ना करना

दावत-ए-शोख़ी-ए-तक़दीर उसे कहते हैं
कार-ए-इम्रोज़ न करना ग़म-ए-फ़र्दा करना

उन की मोहतात-निगाही ने भरम खोल दिया
जिन को मंज़ूर न था राज़ का इफ़्शा करना

वक़्त के हाथों में तिरयाक भी है ज़हर भी है
उस को यक-रंग समझ कर न भरोसा करना

तर्जुमान-ए-ग़म-ए-दिल उन की नज़र होती है
जिन को आता नहीं इज़्हार-ए-तमन्ना करना

ख़ुद-नुमाई नहीं इंसान की ख़ुद्दारी है
परचम-ए-अज़्मत-ए-किरदार को ऊँचा करना

ज़ुल्मत-ए-जुम्बिश-ए-लब की नहीं उम्मीद मगर
निगह-ए-नाज़ न भूलेगी इशारा करना

गो मैं यूसुफ़ नहीं दामन तो मिरे पास भी है
तुम ज़रा पैरवी-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा करना

ऐ कि तू नाज़िश-ए-सन्नाई-ए-दस्त-ए-फ़ितरत
काश आता न तुझे ख़ून-ए-तमन्ना करना

जादा-ए-इश्क़ में इक ऐसा मक़ाम आता है
शर्त-ए-अव्वल है जहाँ तर्क-ए-तमन्ना करना

आप के अहद-ए-वफ़ा पर मिरा ईमाँ जैसे
किसी गिरती हुई दीवार पे तकिया करना

कोशिश-ए-ज़ब्त में हर साँस क़यामत है 'उरूज'
खेल समझे हो ग़म-ए-दिल को गवारा करना
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Urooj Zaidi Badayuni
दिल ने ठोकर खा के समझा हादसा क्या चीज़ है
ग़म किसे कहते हैं दर्द-ए-ला-दवा क्या चीज़ है

महव-ए-हैरत हूँ ये दुनिया से जुदा क्या चीज़ है
आप का पैग़ाम बे-हर्फ़-ओ-सदा क्या चीज़ है

इस के मा'नी ख़ुद-पसंदी के सिवा कुछ भी नहीं
दिल में पैहम ख़्वाहिश-ए-दाद-ए-वफ़ा क्या चीज़ है

अब अँधेरा ही अँधेरा है उफ़ुक़-ता-ब-उफ़ुक़
इस हक़ीक़त में ख़िलाफ़-ए-माजरा क्या चीज़ है

कुफ़्र है ये सोचना भी कारोबार-ए-इश्क़ में
मुद्दआ' क्या शय है तर्क-ए-मुद्दआ क्या चीज़ है

सर है ज़ेब-ए-दार लेकिन लब तबस्सुम-आश्ना
हक़-नवाई पर मैं ख़ुश हूँ ये सज़ा क्या चीज़ है

कार-आराई-ए-सई-ए-शौक़ है पेश-ए-नज़र
वर्ना सोचो जुम्बिश-ए-पर्दा-कुशा क्या चीज़ है

हम रज़ा-ए-दोस्त में राज़ी हैं ये सच है तो फिर
देखना होगा कि दस्तूर-ए-दुआ क्या चीज़ है

रफ़्ता रफ़्ता तुम पे सब कुछ आइना हो जाएगा
क्या बताऊँ सई-ए-तर्क-ए-मुद्दआ' क्या चीज़ है

जल्वा-गाह-ए-नाज़ से उठना कोई आसाँ नहीं
पहले ये देखो यहाँ ज़ंजीर-ए-पा क्या चीज़ है

जिन की फ़ितरत ना-शनास-ए-ज़ौक़-ए-मोहकम है 'उरूज'
मैं उन्हें ये कैसे समझाऊँ वफ़ा क्या चीज़ है
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Urooj Zaidi Badayuni
बंद हैं दिल के दरीचे रौशनी मादूम है
अब जो अपना हश्र होना है हमें मा'लूम है

हस्ब-ए-नैरंग-ए-जहाँ दिल शाद या मग़्मूम है
आदमी जज़्बात का हाकिम नहीं महकूम है

अब तकल्लुफ़ बरतरफ़ ये आप को मा'लूम है
क्यूँ मिरा ख़्वाब-ए-वफ़ा ता'बीर से महरूम है

हुस्न ख़ुद तड़पा किया है मुझ को तड़पाने के बा'द
सोचना पड़ता है वो ज़ालिम है या मज़लूम है

ख़्वाब आख़िर ख़्वाब है इस ख़्वाब का क्या ए'तिबार
जन्नत-ए-नज़्ज़ारा गोया जन्नत-ए-मौहूम है

हाए ये तरफ़ा मआल-ए-आरज़ू-ए-सुब्ह-ए-नौ
जिस तरफ़ नज़रें उठाता हूँ फ़ज़ा मस्मूम है

मेरे किरदार-ए-वफ़ा की आईना-दारी ब-ख़ैर
क्यूँ ज़बान-ए-दोस्त पर अल-शाज़-ओ-कल-मादूम है

देखने की चीज़ है ये सेहर-ए-अंदाज़-ए-नज़र
उन का हर मुबहम इशारा हामिल-ए-मफ़्हूम है

ख़ार भी ना-मुतमइन हैं फूल भी ना-मुतमइन
बाग़बाँ के इस निज़ाम-ए-गुलिस्ताँ की धूम है

अब उसे माहौल जिस क़ालिब में चाहे ढाल दे
फ़ितरतन तो आदमी इक पैकर-ए-मफ़्हूम है

जो भरी महफ़िल में नज़रों की हुई है गुफ़्तुगू
हुस्न को मा'लूम है या इश्क़ को मा'लूम है

कितनी कैफ़-आवर है इन की शिरकत-ए-ग़म भी 'उरूज'
मातम-ए-दिल की जगह जश्न-ए-दिल-ए-मरहूम है
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Urooj Zaidi Badayuni
फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं उन की रज़ा के सामने
ये मुझे तस्लीम है अर्ज़-ओ-समा के सामने

जो तलब-ना-आश्ना हो मा-सिवा के सामने
हाथ फैलाती है दुनिया उस गदा के सामने

ये कमाल-ए-जज़्ब-ए-दिल मेरी नज़र से दूर था
आप ख़ुद आ जाएँगे पर्दा उठा के सामने

सोचना पड़ता है क्यूँ बेबस हूँ क्यूँ मजबूर हूँ
मैं सर-ए-आग़ाज़-ओ-फ़िक्र-ए-इंतिहा के सामने

वो तो कहिए मेरा दिल आमाज-गाह-ए-शौक़ है
वर्ना कौन आता है तेरे बे-ख़ता के सामने

क्या बताऊँ मेरी ग़र्क़ाबी में किस का हाथ था
नाख़ुदा को पेश होना है ख़ुदा के सामने

टूट जाएगा तिलिस्म-ए-रास्ती-ओ-रहबरी
मैं अगर आईना रख दूँ रहनुमा के सामने

ऐ ज़मीर-ए-ज़िंदा मेरे हर-क़दम पर एहतिसाब
नामा-ए-आमाल जाएगा ख़ुदा के सामने

आँधियाँ उन को बुझा दें आँधियों की क्या मजाल
मैं ने वो शमएँ जलाई हैं हवा के सामने

शिद्दत-ए-एहसास-ए-तौबा का वो आलम है 'उरूज'
जाम मेरे सामने है मैं ख़ुदा के सामने
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Urooj Zaidi Badayuni
पा-ए-तलब की मंज़िल अब तक वही गली है
आग़ाज़ भी यही था अंजाम भी यही है

जिस दास्तान-ए-ग़म का उन्वान रौशनी है
हर लफ़्ज़ की सियाही ख़ुद मुँह से बोलती है

तर्ज़-ए-तपाक क़ाएम लुत्फ़-ए-नज़र वही है
लेकिन ये वाक़िआ' है फिर भी कोई कमी है

उन की नज़र से दिल की ये बहस हो रही है
क्या चीज़ ज़िंदगी में मक़्सूद-ए-ज़िंदगी है

हर लग़्ज़िश-ए-बशर पर तन्क़ीद करने वालो
तुम ये भुला चुके हो इंसान आदमी है

ये साज़िश‌‌‌‌-ए-तग़य्युर है कितनी जान-लेवा
मुझ को जगा के मेरी तक़दीर सो गई है

हाँ मेरे वास्ते है तख़सीस का ये पहलू
दुनिया समझ रही है अंदाज़-ए-बेरुख़ी है

मुमकिन नहीं कि दामन बे-दाग़ हो किसी का
सच पूछिए तो दुनिया काजल की कोठरी है

ताबिंदा हर-नफ़स है उम्मीद की बदौलत
मेहराब-ए-ज़िंदगी में इक शम्अ' जल रही है

देखे तो कोई शान-ए-सहर-ए-निगाह-ए-साक़ी
साग़र में खिंच के रूह-ए-मय-ख़ाना आ गई है

वाबस्ता-ए-नफ़स है नज़्म-ओ-निज़ाम-ए-हस्ती
या'नी हवा पे क़ाएम बुनियाद-ए-ज़िंदगी है

कब तक ये ख़्वाब-ए-ग़फ़लत जागो 'उरूज' जागो
अब धूप बढ़ते बढ़ते सर पर ही आ गई है
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Urooj Zaidi Badayuni
इश्क़ के हाथों में परचम के सिवा कुछ भी नहीं
उस का आलम तेरे आलम के सिवा कुछ भी नहीं

बे-यक़ीनी सू-ए-ज़न ईमान-ए-नाक़िस की दलील
फ़िक्र-ए-राहत खतरा-ए-ग़म के सिवा कुछ भी नहीं

हम से पूछो हम बताएँ ग़ायत-ए-कौन-ओ-मकाँ
कारगाह-ए-इब्न-ए-आदम के सिवा कुछ भी नहीं

आतिश-ए-नफ़रत से अब दुनिया है ऐसे मोड़ पर
दीदा-वर गो ये जहन्नम के सिवा कुछ भी नहीं

याद-ए-अय्यामे कि ये भी जान-ए-रज़्म-ओ-बज़्म थे
जिन के पास अब चश्म-ए-पुर-नम के सिवा कुछ भी नहीं

हम नहीं मिनजुमला अहल-ए-रज़ा क्यूँ कर कहें
जिन के लब पर क़िस्सा-ए-ग़म के सिवा कुछ भी नहीं

अहल-ए-दुनिया के लिए जो अब्र-ए-नैसाँ था 'उरूज'
अब वो इंसाँ अश्क-ए-शबनम के सिवा कुछ भी नहीं
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Urooj Zaidi Badayuni
तकलीफ़-ए-इल्तिफ़ात-ए-गुरेज़ाँ कभी कभी
यूँ भी हुई है पुर्सिश-ए-पिन्हाँ कभी कभी

मेराज-ए-दीद जल्वा-ए-जानाँ कभी कभी
हम भी रहे हैं नाज़िश-ए-दौराँ कभी कभी

ये और बात रब्त-ए-मुसलसल न कह सकें
चूमा है हम ने दामन-ए-जानाँ कभी कभी

नक़्श-ए-ख़याल आप की तस्वीर बन गया
ये मो'जिज़ा हुआ है नुमायाँ कभी कभी

बंदा-नवाज़ी-ए-करम-ए-गाह गाह से
हम भी थे कायनात-ब-दामाँ कभी कभी

लग़्ज़िश की बात विरसा-ए-आदम की बात है
खाता है ठोकरें दिल-ए-इंसाँ कभी कभी

करवट बदल गई है तिरी वज़-ए-इल्तिफ़ात
देखा है ये भी ख़्वाब-ए-परेशाँ कभी कभी

ये सर-कशी के नाम से मंसूब ही सही
होता है दिल भी सर-ब-गरेबाँ कभी कभी

अक्सर नशात-ए-सैर-ए-गुलिस्तान-ए-बे-ख़िज़ाँ
अंदाज़ा-ए-फ़रेब-ए-बहाराँ कभी कभी

मेरे लबों पे मौज-ए-तबस्सुम के बावजूद
ग़म हो गया है रुख़ से नुमायाँ कभी कभी

कहना पड़ा है जल्वा-ए-सद-रंग रोकिए
नज़रें हुई हैं इतनी परेशाँ कभी कभी

ख़ुद अपने आस-पास अँधेरों को देख कर
घबरा उठी है सुब्ह-ए-बहाराँ कभी कभी

दामन बचा के हम तो गुज़र जाएँ ऐ 'उरूज'
ख़ुद छेड़ती है गर्दिश-ए-दौराँ कभी कभी
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